साहब गाड़ी मत रोकिए, गुहार लगाता रहा ड्राइवर लेकिन नहीं माने डीएम, जानिए जी कृष्णैया के मौत की आंखोंदेखी कहानी

गोपालगंज/पटना: आखिरकार 16 साल के बाद ‘आजाद’ हो गए। लेकिन उनकी रिहाई के साथ ही वो मंजर ताजा हो गया जब एक डीएम को सरेआम सरकारी गाड़ी से उतार कर पत्थरों से कुचल डाला गया। इससे भी जी न भरा तो उनके सिर में गोलियां दाग दी गईं। ये तत्कालीन लालू सरकार के इकबाल पर ऐसा दाग था जो कभी नहीं छूटेगा। वो दाग, जिसने बिहार में जंगलराज की पहली इबारत लिखी थी। इसी हत्याकांड का एक गवाह () अब कैमरे पर सामने आया है। वैसे तो उस हत्याकांड के तीन चश्मदीद थे, पहला डीएम जी कृष्णैया बॉडीगार्ड टी एम हेम्ब्रम, दूसरे थे एक फोटोग्राफर पी एल टांगरी और तीसरे सबसे अहम गवाह थे कृष्णैया के ड्राइवर दीपक कुमार। दीपक कुमार ने NBT के कैमरे पर एक इंटरव्यू में बताया कि कैसे 05 दिसंबर की शाम भीड़ की शक्ल में मौत ने मुजफ्फरपुर के खबरा में तांडव किया था। डीएम कृष्णैया का ड्राइवर दीपक की आंखों देखीदीपक ने NBT के कैमरे पर उस शाम का एक एक खौफनाक पल बयां किया। दीपक आज भी गोपालगंज के डीएम की गाड़ी ही चलाते हैं। अब तक वो कुल 36 डीएम के ड्राइवर की जिम्मेवारी संभाल चुके हैं। के रूप में उसका काम कलेक्टर साहब (डीएम जी कृष्णैया) को बाहरी बैठकों में ले जाना था। दीपक ने इंटरव्यू में उस काली शाम के एक एक लम्हे का जिक्र किया है। दीपक के मुताबिक ‘हम सब लोग हाजीपुर से वापस गोपालगंज जा रहे थे मुजफ्फरपुर होते हुए। हम जीरो माइल के पास पहुंचे, वहां भीड़ जा रही थी, किसका जुलूस था, ये तो उस वक्त मालूम नहीं था। हम अपनी गाड़ी साइड से लेकर गाड़ी निकाल रहे थे। तभी आगे-पीछे से हमें घेरना शुरू कर दिया गया। जब उन्होंने हमें घेर लिया तो बॉडीगार्ड को गाड़ी से बाहर खींच लिया।’ 5 दिसंबर 1994 का सच सुनिए5 दिसंबर 1994 को डीएम जी कृष्णैया की कार में से जैसे ही भीड़ ने बॉडीगार्ड टीएस हेम्ब्रम को खींचा, दीपक को अनहोनी का पूरा आभास हो गया। ड्राइवर दीपक के मुताबिक ‘उसके बाद मैंने गाड़ी भगानी शुरू कर दी साहब (डीएम जी कृष्णैया) को लेकर। थोड़ा आगे गए तो साहब बोले कि गाड़ी रोको, हम नहीं रोकना चाह रहे थे, लेकिन साहब ने गाड़ी कहा- हम कहते हैं कि गाड़ी रोको। उसके बाद गाड़ी रोकी तो आगे पीछे से भीड़ ने घेर लिया, मेरी गर्दन दबाने लगे। मुक्के से कान पर मारा तो खून आने लगा। फिर साहब (डीएम जी कृष्णैया) को भी गाड़ी से खींच लिया। थोड़ी देर में भीड़ चली गई, तभी हमको पुलिस की गाड़ी देखी तो रुकवाई। आगे बड़े तो देखा कि हमारी गाड़ी उलटी पड़ी थी और डीएम साहब खाई में गिरे थे। वहां से उनको अस्पताल लेकर गए। अगर गाड़ी नहीं रोकते तो डीएम साहब बच जाते।’ इस बात को ऐसे समझिए कि डीएम जी कृष्णैया अपने बॉडीगार्ड को भीड़ के हत्थे नहीं छोड़ना चाहते थे। इसीलिए उन्होंने दीपक को गाड़ी रोकने से मना किया। दीपक को आज भी इस बात का मलाल है और वो कैमरे पर दोहरा कर कहते हैं कि ‘अगर गाड़ी नहीं रोकी होती तो डीएम साहब (जी कृष्णैया) बच जाते।’