कराची: चीन और पाकिस्तान एक दूसरे के बेहद करीबी और हर मुश्किल में साथ रहने वाले देश, लेकिन इस समय जब एक दोस्त मुसीबत में है तो दूसरा मदद नहीं कर रहा है। साल 2015 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग पाकिस्तान गए थे। यहां पर उन्होंने कहा था कि इस मुल्क में आना उन्हें ऐसा लगता है कि जैसे वह अपने छोटे भाई के घर आए हों। जिनपिंग ने साल 2013 में बड़े अरमानों के साथ बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (BRI) लॉन्च किया था। इसके तहत फ्लैगशिप प्रोजेक्ट चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) भी लॉन्च किया गया। सोचा गया था कि यह प्रोजेक्ट पाकिस्तान की तकदीर को बदल देगा। मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ। आज पाकिस्तान बर्बादी की दहलीज पर खड़ा है। सिंगापुर में बढ़ता गया निवेश चीन ने सन् 1970 के दशक में सिंगापुर के साथ अनौपचारिक रिश्ते कायम किए थे। इसके बाद से ही दोनों देशों के बीच व्यापार और बाकी संबंध भी आगे बढ़ते गए। बीआरआई को पहले वन बेल्ट वन रोड (OBOR) के तौर पर जाना जाता था। सन् 2014 से इस प्रोजेक्ट की वजह से सिंगापुर में निवेश बढ़ता गया। कई लोग मान रहे थे कि जिस तरह से सिंगापुर की सूरत बदली, वैसे ही चीन की मदद से छोटे भाई की किस्मत बदल जाएगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। पाकिस्तान और सिंगापुर में बहुत अंतर है। शायद इसी वजह से अब चीन भी पीछे हटने लगा है। चीन के लिए आकर्षण सिंगापुर सिंगापुर भी कभी पाकिस्तान की तरह ही ब्रिटिश कॉलोनी रहा है। यह एक द्वीप है जिसकी आबादी पाकिस्तान की तुलना में 42 गुना कम है। साथ ही क्षेत्रफल के हिसाब से यह देश 1093 गुना छोटा है। मगर पिछले साल सिंगापुर में विदेशी निवेश 92 अरब डॉलर तक था जबकि पाकिस्तान को निवेश के तौर पर सिर्फ दो अरब डॉलर ही मिल सके। सिंगापुर की अर्थव्यवस्था अमेरिकी और चीनी कंपनियों के लिए आकर्षण का केंद्र है। यहां पर कई बड़ी चीन और अमेरिकी कंपनियां हैं जो सेमीकंडक्टर्स डिजाइन और मैन्युफैक्चरिंग के अलावा कम्युनिकेशंस, रोबोटिक्स, फाइनेंशियल टेक्नोलॉजी, बिजनेस और प्रोफेशनल सर्विसेज से जुड़ी हैं। ये अंतर अपने आप में बताने के लिए काफी हैं कि दोनों देशों कितने अलग हैं। सिंगापुर शांत देश, पाकिस्तान में हर तरफ अशांति जहां सिंगापुर एक शांत देश है तो पाकिस्तान आतंकवाद और हिंसा की वजह से कमजोर हो चुका है। विशेषज्ञों की मानें तो आतंकवाद उन जेहादी संगठनों की देन है जिन्होंने फिर से पाकिस्तान को दहलाना शुरू कर दिया है। ऐसे में इस मुल्क में मौजूद चीनी मजदूरों को भले ही 10,000 सुरक्षाकर्मियों की फौज सुरक्षित कर रही हो, वो हमेशा डर के साऐ में ही रहते हैं। ईशनिंदा से जुड़ी लिंचिंग की कई घटनाएं हुई हैं जिनमें श्रीलंका की एक फैक्ट्री के मैनेजर की भी जान चली गई। इन घटनाओं ने चीन की चिंताओं को बढ़ा दिया है। चीन के नागरिक ऐसे डर की वजह से पाकिस्तान के लोगों से घुल-मिल नहीं पाते हैं और दूरी बढ़ती जाती है। इसलिए चीन ने पूरे नहीं किए वादे विशेषज्ञों की मानें तो सिंगापुर में कोई भी हो, कानूनों का पालन करना अनिवार्य है। जबकि पाकिस्तान में कानून तोड़ने के लिए बनाए जाते हैं। इस कम-भरोसेमंद कारोबारी माहौल में, अंडर-द-टेबल सौदे उतने ही आम हैं जितने कि कानूनी। सीपीईसी डील में कई बार अपारदर्शिता बरती गई और इसे राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर छिपा दिया गया। सिंगापुर में एक ऐसी वर्कफोर्स है जो कड़ी मेहनत में यकीन रखती है और बहुत कुशल है। पाकिस्तान में ऐसा कुछ नहीं है और यहां के लोगों के पास टेक्नोलॉजी का टैलेंट भी नहीं है। ऐसे में चीन की तरफ से जितने भी वादे किए गए थे, सब के सब धरे के धरे रह गए।