बांदाः उत्तर प्रदेश में धान का कटोरा कहा जाने वाला बुंदेलखंड दलहन का गढ़ बन चुका है। अब केंद्र सरकार ने बुंदेलखंड में मोटे अनाजों को प्रोत्साहन देने के लिए न सिर्फ इनका नाम ‘श्रीअन्न’ कर दिया है बल्कि आम बजट में स्टार्टअप और स्टैंडअप के कई फैसले किए हैं। इससे एक बार फिर यह क्षेत्र मोटे अनाजों से समृद्ध हो सकता है।यह क्षेत्र मोटे अनाजों के लिए मशहूर थायूपी का बुंदेलखंड क्षेत्र 7 जनपदों में बंटा है। यहां खरीफ रबी का 24 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल है। एक जमाने में यह मोटे अनाजों के लिए मशहूर था। दो दशक पहले यहां 6 से 8 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में मोटे अनाज (ज्वार, बाजरा, सांवा, कोदा, काकुन) की भरपूर खेती होती थी। पौष्टिकता से भरपूर मोटे अनाज को सही बाजार और कीमत न मिलने से धीरे-धीरे यहां किसानों ने इसकी खेती से तौबा कर ली। यही वजह है कि मोटे अनाजों का रकबा घटकर 50 हजार हेक्टेयर रह गया है। अब यहां के किसान मोटे अनाज का उत्पादन सिर्फ अपने इस्तेमाल के लिए करते हैं।बड़े क्षेत्रफल में बोया जाता था मोटा अनाजबताते हैं कि पहले यहां की किसानी कई मायनों में अलग थी। उस दौर में यहां बड़े क्षेत्रफल में मोटा अनाज बोया जाता था। इसमें पानी और उर्वरक भी कम लगता था लेकिन बदलते समय के साथ किसान धीरे-धीरे इसे भूल गए। मौजूदा केंद्र सरकार प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन दे रही है। ताकि खेतों की उर्वरता कम न हो और लोगों को रासायनिक खादों से युक्त अनाज खाना न पड़े। करने वाले किसानों को सही बाजार व दाम मिले इसके लिए केंद्र सरकार ने बजट में स्टार्टअप व स्टैंडअप के फैसले किए हैं। इससे निश्चित ही एक बार फिर दाल के कटोरे में मोटे अनाज समृद्ध होंगे।पौष्टिकता से भरपूर हैं मोटे अनाजइस बारे में कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक दिनेश शाहा का कहना है कि मोटे अनाज ज्वार, बाजरा, सांवा कोदो आदि पौष्टिकता से भरपूर व सुपाच्य है। परीक्षण में पाया गया है कि मोटे अनाज में विटामिन बी, फोलिक एसिड, पोटेशियम, मैग्नीशियम जस्ता आदि पाया जाता है। इसी तरह प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह का कहना है कि मोटे अनाजों को प्रोत्साहन देने का सरकार का कदम निश्चित ही सराहनीय है। इससे जैविक खेती को बढ़ावा मिलेगा और लोगों को पौस्टिक अनाज खाने को मिलेगा। मोटे अनाजों में पानी व उर्वरक दोनों कम लगता है।रिपोर्टः अनिल सिंह