महाराष्ट्र में सोमवार को मीजल्स से मरने वाले बच्चों की संख्या बढ़कर 10 हो गई। इनमें से 9 कन्फर्म और 1 संदिग्ध केस है। गोवंडी में एक 15 महीने की बच्ची की मौत के पीछे खसरा संक्रमण को ही माना जा रहा है लेकिन अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है। बच्ची की 3 नवंबर को मौत हुई थी। उसे दो अस्पतालों में वेंटिलेटर नहीं मिल पाया था। बाद में उसे एक प्राइवेट हॉस्पिटल में ले जाया गया लेकिन रास्ते में उसकी मौत हो गई।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, महाराष्ट्र में खसरा संक्रमण के 3,208 संदिग्ध केस सामने आ चुके हैं। इनमें से 9 प्रतिशत केस 9 महीने से कम उम्र के बच्चों में देखे जा रहे हैं। इसी एज ग्रुप के बच्चों में मौतें भी ज्यादा हुई हैं। संक्रमण से हालत गंभीर होने के मामले भी 9 महीने से कम उम्र के बच्चों में ज्यादा दिख रहे हैं। पिछले हफ्ते मुंबई के कस्तूरबा अस्पताल में एक 6 माह के बच्चे की मौत हुई। वहां 9 महीने से कम उम्र के कुछ बच्चों की हालत गंभीर है जो ऑक्सिजन सपोर्ट पर हैं।
क्या है मीजल्स
मीजल्स यानी खसरा एक बहुत ही तेजी से फैलने वला संक्रमण है जो रेस्पिरेटरी सिस्टम यानी श्वसन तंत्र से शुरू होता है। इसे सिर्फ वैक्सीनेशन से रोका जा सकता है। दुनियाभर में इसके कारण हर साल हजारों बच्चों की मौत होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 2017 में दुनियाभर में खसरा से 1 लाख 10 हजार मौतें हुई थीं। इनमें सबसे ज्यादा मौतें 5 साल से कम उम्र के बच्चों की थीं। भारत में इस साल सितंबर तक खसरा संक्रमण के 11,156 केस सामने आ चुके हैं।
खसरा का संक्रमण पैरामाइक्सोवायरस फैमिली के वायरस की वजह से होता है जो सबसे पहले रेस्पिरेटरी सिस्टम को प्रभावित करता है। इसका संक्रमण बहुत तेजी से फैलता है। अगर कोई व्यक्ति संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आ जाए तो उसके संक्रमित होने का चांस 90 प्रतिशत होता है। अगर किसी बच्चे या वयस्क में खसरा संक्रमण का लक्षण दिखे तो रैशेज के दिखने के बाद 4 दिनों तक उसे आइसोलेशन रखना चाहिए।
खसरा जिसे ग्रामीण इलाकों में ‘छोटी माता’ के नाम से भी जाना जाता है, का पहला संकेत तेज बुखार है। वायरस के संपर्क में आने के करीब 10-12 दिन बाद बुखार आता है जो 4 से 7 दिनों तक रहता है। बुखार के अलावा संक्रमित व्यक्ति में खांसी, नाक बहने, आंखे लाल होने, गले में दर्द और मुंह में सफेद धब्बे भी दिख सकते हैं। जिस लक्षण से इसकी सबसे ज्यादा पहचान होती है, वह है शरीर पर रैशेज। ये रैशेज 7 दिनों तक रह सकते हैं। ये रैशेज आम तौर पर सबसे पहले सिर में आते हैं और उसके बाद शरीर के दूसरे हिस्सों में फैलते हैं।
जिन बच्चों को मीजल्स का टीका नहीं लगा होता है, उनमें इससे संक्रमित होने का खतरा ज्यादा होता है। उनकी हालत गंभीर होने और यहां तक कि मौत का जोखिम ज्यादा होता है। खसरा के संक्रमण को खत्म करने के लिए सरकार ने नैशनल स्ट्रैटजिक प्लान अपनाया है जिसके तहत 2023 के अंत तक इसे खत्म करने का लक्ष्य रखा गया है।
9 महीने की उम्र में मीजल्स वैक्सीन का पहला डोज देने के पीछे का विज्ञान
एक्सपर्ट के मुताबिक, वैक्सीन कारगर हो इसके लिए सबसे मुफीद ये है कि 12 महीने की उम्र के बाद लगाई जाए। हालांकि, बच्चों में मीजल्स के ज्यादातर केस 12 महीने से कम उम्र में सामने आते हैं। इसके अलावा, बच्चे में मां से मिले एंटीबॉडी की वजह से 20 प्रतिशत वैक्सीन नाकाम हो जाती है। इसीलिए वैक्सीन के लिए 9 महीने की उम्र तय की गई है। इंडियन अकैडमी ऑफ पेडियाट्रिक्स (IAP) समेत इंटरनैशनल और नैशनल गाइडलाइंस के मुताबिक अगर कहीं पर खसरा संक्रमण फैला हुआ हो तो वहां वैक्सीन की पहली डोज 6 महीने में ही दी जानी चाहिए। वैसे नवजात बच्चों में अपनी मां से एंटीबॉडी मिली हुई होती है लेकिन अगर संक्रमण का दौर चल रहा हो तो 9 महीने से पहले दी गई वैक्सीन ज्यादा सुरक्षा देती है।
मीजल्स रुबेला वैक्सीन की टाइमलाइन
-मीजल्स-रुबेला की पहली डोज 9-12 महीने में दी जाती है। इसके बाद 16-24 महीने में मीजल्स, मंप्स और रुबेला (MMR) वैक्सीन की डोज दी जाती है
-अगर बच्चों को पहली या दूसरी डोज नहीं लग पाई है तो 5 साल की उम्र तक दोनों डोज लगाई जा सकती है
-वैक्सीनेशन से न सिर्फ संक्रमण के मामलों में कमी होती है बल्कि मौत का खतरा भी कम होता है।
बीएमसी की एक्जिक्यूटिव ऑफिसर डॉक्टर मंगला गोमरे ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि 9 के बजाय 6 महीने में वैक्सीन दिए जाने पर चर्चा हो रही है। राज्य सरकार को इसका प्रस्ताव भेजा जाएगा। उन्होंने पुष्टि की कि संक्रमण के मामलों में 8-9 प्रतिशत 9 महीने से कम उम्र के बच्चों के बीच है। उन्होंने बताया, ‘हम राज्य सरकार और दूसरे एक्सपर्ट्स से ये नतीजे शेयर करने की योजना बना रहे हैं। अगर तय समय से पहले वैक्सीन दी जाएगी तो इसका फैसला राज्य सरकार को करना है।’
स्किन पर रैशेज दिखने से पहले ही बच्चे की हालत हो गई गंभीर
गोवंडी में ही एक 8 महीने के बच्चे की मीजल्स संक्रमण से हालत नाजुक बनी हुई है। उसे बुखार, खांसी और सांस लेने में दिक्कत की शिकायत के बाद पिछले हफ्ते शुक्रवार को सायन हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। चूंकि उसके शरीर पर रैशेज नहीं थे, इसलिए न्यूमोनिया मानकर उसका इलाज किया जा रहा था। सायन अस्पताल में पेडियाट्रिकस की हेड डॉक्टर राधा घिल्डियाल ने बताया कि रविवार को उसकी हालत बिगड़ गई और उसे फुल लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखना पड़ा। सोमवार को जब बच्चे के शरीर पर रैशेज दिखाई देने लगे तब पता चला कि ये न्यूमोनिया नहीं बल्कि खसरा का मामला है। आनन-फानन में बच्चे को वहां से शिफ्ट किया गया क्योंकि दूसरे बच्चों में भी खसरा फैल सकता था। फिलहाल वह बच्चा कस्तूरबा में वेंटिलेटर पर है।