सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक बार फिर गुजरात हाई कोर्ट को उस तरीके के लिए आड़े हाथों लिया, जिस तरह उसने एक बलात्कार पीड़िता की गर्भपात की मांग वाली याचिका पर आदेश पारित किया था। यह देखते हुए कि विवाहेतर गर्भधारण हानिकारक और तनाव का कारण है, सुप्रीम कोर्ट ने बलात्कार पीड़िता को 27 सप्ताह से अधिक के गर्भ का चिकित्सीय समापन कराने की भी अनुमति दी। पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट पर ध्यान देते हुए जस्टिस बीवी नागरत्ना और उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि गर्भावस्था को समाप्त करने की प्रार्थना को खारिज करने में हाई कोर्ट सही नहीं था।इसे भी पढ़ें: SC On Social Media: माफी मांगकर बच नहीं सकते, SC ने कहा- सोशल मीडिया उपयोगकर्ताओं को इसके प्रभाव, पहुंच के बारे में अधिक सावधान रहना चाहिएहम सुप्रीम कोर्ट के आदेशों पर हाई कोर्ट के पलटवार की सराहना नहीं करते हैं। गुजरात हाई कोर्ट में क्या हो रहा है? क्या न्यायाधीश किसी हाई कोर्ट के आदेश पर इस तरह उत्तर देते हैं? हम इसकी सराहना नहीं करते। हमने जो कुछ कहा है, उसे टालने के लिए हाई कोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा इस प्रकार के प्रयास किए जा रहे हैं। अदालत ने कहा कि हाआ कोर्ट के किसी न्यायाधीश को अपने आदेश को उचित ठहराने की कोई जरूरत नहीं है। शीर्ष अदालत ने कहा कि भारतीय समाज में विवाह संस्था के तहत गर्भावस्था न केवल जोड़े के लिए बल्कि परिवार और दोस्तों के लिए भी खुशी और जश्न का कारण है।