रियाद: सऊदी अरब ने उन्नत अमेरिकी और ब्रिटिश लड़ाकू विमानों से बनी एक विशाल वायु सेना के निर्माण में दशकों का समय बिताया है। लेकिन, बड़ी संख्या में फ्रांसीसी लड़ाकू विमान राफेल खरीदने में रियाद की रुचि एक संकेत हो सकती है कि उसे नहीं लगता कि उसके पुराने दोस्त पहले जितने विश्वसनीय हैं। फ्रांस के ला ट्रिब्यून अखबार ने अज्ञात स्रोत का हवाला देते हुए बताया कि सऊदी अरब 100 से 200 डसॉल्ट राफेल लड़ाकू विमानों को खरीदने पर विचार कर रहा है। यह रिपोर्ट ऐसे समय आई है, जिसमें बताया गया था कि रियाद अपने पारंपरिक विमान आपूर्तिकर्ता देशों से भविष्य में लड़ाकू विमानों की खरीद नहीं करेगा।अमेरिका के भरोसे नहीं रहना चाहता सऊदीपिछले साल अक्टूबर में प्रिंस सलमान के तेल उत्पादन में कटौती को लेकर गुस्से के कारण अमेरिकी सांसदों ने सभी अमेरिकी हथियारों की सऊदी अरब को बिक्री पर रोक लगाने वाले कानून का प्रस्ताव रखा। गनीमत रही कि यह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका। अगर ऐसा हो जाता तो सऊदी अरब की पूरी वायु सेना जमीन पर आ जाती, क्योंकि उसके लड़ाकू विमानों के लिए आवश्यक पुर्जे और दूसरे साजो-सामान नहीं मिल पाते। जुलाई में जर्मनी ने घोषणा की कि वह सऊदी अरब को और अधिक यूरोफाइटर टाइफून बेचने की अनुमति नहीं देगा। सऊदी वायु सेना 72 यूरोफाइटर टाइफून विमानों का संचालन करती है।राफेल का मुरीद क्यों हुआ सऊदी अरबसऊदी अरब के पड़ोसी संयुक्त अरब अमीरात और कतर ने पहले ही पश्चिमी लड़ाकू विमानों की बदौलत बड़ी और ताकतवर वायु सेना का निर्माण कर चुके हैं। इनमें दोनों के पास दर्जनों राफेल लड़ाकू विमान भी हैं। ला ट्रिब्यून की रिपोर्ट में कहा गया है कि सऊदी अरब अपने पड़ोसियों की इसी ताकत से परेशान है। इस कारण सऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान फ्रांसीसी लड़ाकू विमान को खरीदने में रुचि जता रहे हैं। मिलिट्री एयरक्राफ्ट विशेषज्ञ सेबस्टियन रॉबलिन ने कहा कि सऊदी अरब के लिए और अधिक टाइफून खरीदना ज्यादा समझदारी भरा कदम होगा, क्योंकि उसके पास पहले से ही ट्रेनिंग और ऑपरेशनल फैसिलिटी मौजूद है, लेकिन इसमें जर्मनी रोड़ा डाल रहा है।अमेरिका से F-15EX नहीं खरीदेंगे प्रिंस सलमानसऊदी क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान भी वर्तमान में F-15EX का ऑर्डर देकर वाशिंगटन को किसी भी तरह की छूट देने के इच्छुक नहीं हैं। ऐसा यमन युद्ध से अमेरिका के पीछे हटने के चलते हुआ है। अमेरिका के ही कहने पर सऊदी अरब ने यमन के हूति विद्रोहियों के खिलाफ एक गठबंधन बनाया और उनपर हमले किए। लेकिन, अमेरिका में जैसे ही सत्ता परिवर्तन हुआ और जो बाइडन कुर्सी पर बैठे, उन्होंने सऊदी अरब से समर्थन वापस ले लिया। इस कारण यमन युद्ध में सऊदी अरब अकेले पड़ गया और उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा। बाइडन के इस फैसले से नाराज सऊदी अरब ने तेल उत्पादन में कटौती का ऐलान कर दिया था।