नई दिल्ली : गए वो दिन जब पश्चिमी देश कथित मानवाधिकारों के नाम पर इंडिया पर लेक्चर दिया करते थे। धौंस दिखाया करते थे। आज का भारत पलटकर जवाब भी देता है। आईना भी दिखाता है। गए वो दिन जब अंतरराष्ट्रीय दबावों पर भारत बहुत सतर्क और नपा-तुला, संतुलित प्रतिक्रिया देता था। डिफेंसिव अप्रोच अपनाता था। न्यू इंडिया अब वैश्विक मंचों पर बेबाक, दो टूक और टू द पॉइंट बात रखता है। डंके की चोट पर। और न्यू इंडिया की सबसे बुलंद आवाज बनकर उभरे हैं विदेश मंत्री एस. जयशंकर। ‘मैं चीन का नाम ले रहा हूं…’, राहुल गांधी पर पलटवारअंतरराष्ट्रीय संबंधों को लेकर अक्सर अपने बेबाक और दो टूक बयानों की वजह से सुर्खियों में रहने वाले जयशंकर फिलहाल अपने एक हालिया इंटरव्यू की वजह से चर्चाओं में हैं। न्यूज एजेंसी एएनआई को दिए इंटरव्यू में उनका एक कूटनीतिज्ञ के साथ-साथ एक मंझे हुए राजनीतिज्ञ का रूप भी दिखा। विपक्ष के इस नैरेटिव कि ‘मोदी सरकार चीन का नाम लेने से डरती है’ की जयशंकर ने किसी मंझे हुए राजनेता की तरह हवा निकाल दी। उन्होंने कहा, ‘चीन की सीमा पर आज हमारे पास इतिहास की सबसे बड़ी तैनाती है और मैं चीन का नाम ले रहा हूं। अगर हम रक्षात्मक हो रहे थे तो इंडियन आर्मी को एलएसी पर किसने भेजा? राहुल गांधी ने उन्हें नहीं भेजा, नरेंद्र मोदी ने भेजा।’ एस जयशंकर ने कहा, ‘आज चीन सीमा पर शांतिकाल में हमारे इतिहास की सबसे बड़ी सैन्य तैनाती है। हम अपने जवानों को तैनात किए हुए हैं। हमने अपनी सरकार के दौरान बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च को 5 गुना बढ़ाया है। अब बताइए कौन रक्षात्मक है? कौन सच्ची बात कह रहा है? कौन सही-सही बता रहा है?’ ‘डिप्लोमैटिक’ नहीं, दो टूक जवाबएस. जयशंकर ज्वलंत मुद्दों पर ‘डिप्लौमैटिक’ जवाब नहीं देते। अपने यहां डिप्लोमैटिक का अर्थ ही गोल-मोल हुआ करता था। वह सीधे मुद्दे की बात कहने के लिए जाने जाते हैं। अमेरिका या वहां की कोई संस्था जब मानवाधिकार, धार्मिक आजादी वगैरह के बहाने भारत पर सवाल खड़ी करती है तो जयशंकर को उनके ही मंच पर उन्हें आईना दिखाते हुए देखा जा चुका है। उन्हें रूस से तेल खरीद पर यूरोप के पाखंड की धज्जी उड़ाते दुनिया ने एक से ज्यादा कई मौकों पर देखा है। वह अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कई बार दो टूक कह चुके हैं कि भारत की विदेश नीति, उसके फैसले उसके और उसके लोगों के हितों के लिहाज से ही तय होंगे।आतंकवाद पर पाकिस्तान को लगा चुके हैं लताड़जब वह पाकिस्तान को ‘आतंकवाद का केंद्र’ (Epicentre of Terrorism) ठहराते हैं तो साथ में ये भी कहते हैं कि वह सीमा-पार आतंकवाद फैलाने में पाकिस्तान की भूमिका बताने के लिए ‘इससे भी कड़े शब्दों’ का इस्तेमाल कर सकते हैं। पिछले महीने ऑस्ट्रेलिया में ZIB2 पॉडकास्ट को दिए इंटरव्यू में जयशंकर ने कहा, ‘आप डिप्लोमैट हैं तो इसका मतलब ये नहीं कि आप सच नहीं बोलेंगे। मैं एपिसेंटर से भी तल्ख शब्दों का इस्तेमाल कर सकता हूं…हमारे साथ जो हो रहा है, उसे देखते हुए एपिसेंटर बहुत ही डिप्लोमैटिक शब्द है।’ जयशंकर जब एलएसी पर तनाव और चीन के साथ संबंधों की बात करते हैं तो वह भी बिना लाग-लपेट के दो टूक होता है। एलएसी पर तनाव को हल्का करके दिखाने की चीन की कोशिश पर वह दो टूक कह चुके हैं कि सीमा पर हालात से ही द्विपक्षीय रिश्ते भी तय होंगे। भारतीय विदेश नीति पर एस. जयशंकर की छापअंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की बुलंद आवाज देश की बढ़ती हुई ताकत को भी दिखाता है। वैसे ये न्यू इंडिया रातों-रात नहीं खड़ा हुआ। हां, आज विदेश नीति पर एस जयशंकर की छाप है। केंद्रीय मंत्री बनने से पहले वह विदेश सेवा के तेजतर्रार अफसर थे। अंतरराष्ट्रीय कूटनीति और दांव-पेच के वह माहिर खिलाड़ी रह चुके हैं। वह एक राजनेता से इतर खांटी कूटनीतिज्ञ हैं जो अंतरराष्ट्रीय मसलों खासकर भारत से जुड़े मुद्दों पर काफी मुखर, स्पष्ट और बेबाक हैं। अंदाज में आक्रामक जरूर मगर अभद्र नहींजयशंकर की मुखरता न्यू इंडिया की बुलंद आवाज है, न कि किसी विदेश मंत्री का बड़बोलापन। उनका अंदाज आक्रामक जरूर है मगर अभद्र नहीं। बड़बोला नेता अगले ही पल भीगी बिल्ली बना दिख सकता है। पाकिस्तान के पूर्व विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी का ही उदाहरण देख लीजिए। दिसंबर 2021 में कुरैशी सऊदी अरब के विदेश मंत्री नवाफ बिन सैद अल मलकी के सामने अकड़ में बैठे…अशिष्ट अंदाज में। उनकी तरफ अपने जूते करके बैठे। हालांकि, खोखलेपन से भरी ये अकड़ और हेकड़ी जल्द ही निकल गई और पाकिस्तान को ‘मदद’ के लिए सऊदी का मान-मनुहार और चिरौरी करनी पड़ी और ये सिलसिला अब भी जारी है।