वॉशिंगटन: यूक्रेन युद्ध को लेकर चल रहे तनाव के बीच भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका का दौरा कर रहे हैं। इस दौरे पर अमेरिका और भारत के बीच तेजस फाइटर जेट के इंजन और प्रीडिएटर हमलावर ड्रोन को लेकर समझौता होना है। इसके अलावा अमेरिका ने भारत को कई अन्य हथियारों का ऑफर दिया है। अमेरिकी विश्लेषकों का कहना है कि अमेरिका की योजना भारत को घातक हथियार बेचकर रूस से दूर करने की है लेकिन यह निकट भविष्य में संभव होता नहीं दिख रहा है। उनका कहना है कि यह दोस्ती की निशानी साल 2065 तक भारतीय सेना में बनी रह सकती है। आइए जानते हैं क्यों भारत को रूस से अलग नहीं किया जा सकता है….अमेरिकी अखबार वॉशिंगटन पोस्ट की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के सबसे खतरनाक हथियारों में से एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मोस है जिसे भारत ने रूस से मिलकर बनाया है। भारतीय रक्षा अधिकारी इसे अपना ‘ब्रह्मास्त्र’ कहते हैं। यह मिसाइल समुद्र, जमीन और हवा कहीं से भी लॉन्च की जा सकती है। भारत इस मिसाइल को अपनी सैन्य क्षमता आवश्यक हिस्सा मानता है और उसने इसे चीन की सीमा पर तैनात किया है। यह वही चीन है जिसके साथ भारत का सीमा पर विवाद चल रहा है। भारत ने इसे वियतनाम को दिया है और अब इंडोनेशिया को भी बेचने की तैयारी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ब्रह्मोस मिसाइल यह दर्शाती है कि भारत किस तरह से रूसी तकनीक और हथियारों पर निर्भर है जो उसे यूक्रेन युद्ध में पश्चिमी देशों के साथ खड़ा होने से रोकती है। भारत के 85 फीसदी हथियार रूसी मूल के रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने अमेरिका की नाराजगी मोल लेते हुए यूक्रेन पर हमले का विरोध नहीं किया है। अमेरिकी विदेशी मामलों के विशेषज्ञ रिचर्ड रोसोव कहते हैं कि हथियारों का रिश्ता ही भारत को रूसी हमले का विरोध करने से प्रमुखता से रोकता है। अमेरिकी इंस्टीट्यूट ऑफ पीस के विशेषज्ञ समीर ललवानी के मुताबिक भारत और रूस के बीच हथियारों का यह रिश्ता 1960 के दशक से ही है और अब भारत के कुल हथियारों के जखीरे में 85 फीसदी रूसी मूल के हैं। रूस ने भारत को फाइटर जेट, परमाणु सबमरीन, क्रूज मिसाइल, युद्धक टैंक, क्लाश्निकोव राइफल समेत कई घातक और अत्याधुनिक हथियार दिए हैं। ललवानी के मुताबिक इनमें से कुछ हथियार तो साल 2065 तक भारतीय सेना में बने रह सकते हैं। भारत आने वाले कई दशक तक कल पुर्जों और मरम्मत के लिए रूस पर निर्भर बना रहेगा। भारत ने पिछले 5 साल में भी अपने 45 फीसदी हथियार रूस से खरीदे हैं। इस दौर में अमेरिका ने भारतीय सेना को केवल 1 फीसदी, नौसेना और वायुसेना को 4 फीसदी हथियारों की आपूर्ति की। साल 2018 से 2022 के बीच में रूस ने अमेरिका के मुकाबले 4 गुना ज्यादा कीमत के हथियार भारत को बेचे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक रूस का भारत प्रभाव अन्य तरीकों से भी काफी बना हुआ है। रूस संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक मंचों पर भारत का समर्थन करता है। चीन के खिलाफ जरूरी हैं भारत के रूसी हथियार यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद रूस ने भारत को सस्ता तेल दिया है जिससे दोनों के बीच मजबूत रिश्ता बना हुआ है। ललवानी कहते हैं कि भारत और रूस के बीच सैन्य निर्भरता सबसे ज्यादा है और दोनों के बीच सबसे ज्यादा स्थायी रिश्ता है। वहीं कुछ अन्य विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले 6 दशक से चले आ रहे भारत और रूस के रिश्ते को एक झटके में नहीं खत्म किया जा सकता है। पीएम मोदी की यात्रा के दौरान अब अमेरिका रूसी प्रभाव को कम करने की कोशिश करेगा। रोसोव कहते हैं कि अमेरिका रूसी हथियारों को लेकर खुश नहीं है लेकिन ये हथियार चीन के साथ तनाव के बीच भारत के लिए बेहद अहम हैं। वही चीन जिसके साथ अमेरिका का तनाव अपने चरम पर है।