नई दिल्ली: ‘ऊंचे से ऊंचा साहित्य पढ़ा जाना चाहिए। कहते हैं वो किताबें पढ़नी चाहिए जो सौ साल से भी ज्यादा पुरानी हैं, प्रतिष्ठित हैं। पॉपुलर लिटरेचर लिखने वाले भी उन किताबों को पढ़कर आप तक नया साहित्य लेकर आते हैं। हम यही कोशिश कर रहे हैं कि अखबार के माध्यम से साहित्य को लिटरेचर फेस्टिवल के जरिए से करोड़ों लोगों तक पहुंचाएं क्योंकि ये किताबें करोड़ों लोग नहीं पढ़ते हैं। इनका सारांश अखबार के माध्यम से आप सब तक पहुंचाया जा सकता है।’ 7वें टाइम्स लिटरेचर फेस्टिवल () में यह कहते हुए टाइम्स ग्रुप के वाइस चेयरमैन और एमडी ने खासतौर पर स्टूडेंट्स का स्वागत किया।सीरी फोर्ट ऑडिटोरियम में दो दिन के टाइम्स लिटरेचर फेस्टिवल का शनिवार को आगाज हुआ। इस मौके पर स्कूलों और कॉलेज के स्टूडेंट्स से भरे ऑडिटोरियम को देखकर टाइम्स ग्रुप के वाइस चेयरमैन और एमडी समीर जैन ने कहा, ‘सबसे अधिक उल्लास और उमंग इस बात से हो रही है कि यहां ‘किशोरावस्था के संत’ बैठे हैं। आप हमारे खास वीआईपी हैं। कबीर की पंक्तियों से शुरू करते हुए समीर जैन ने कहा, ‘कबीरदास जी कहते हैं ‘आंख ना मूंदो, कान ना रूंधो, काया कल्प ना धारो, खुले नैन में हंस हंस देखूं, सुंदर रूप निहारूं’… यही सत्य है, शिव है। साहित्य की अहमियत पर जोर देते हुए उन्होंने स्टूडेंट्स से कहा, ‘अपने फील्ड का ऊंचे से ऊंचा साहित्य पढ़िए। हर भाषा के ऊंचे से ऊंचे साहित्य की साधारण किताबें छापने के लिए हमारे परिवार ने ‘ज्ञानपीठ’ शुरू किया क्योंकि ऊंचे साहित्य को कम लोग पढ़ते हैं।”मीडिया हो Watch God, सिर्फ Watchdog नहीं’समीर जैन ने अपने संबोधन में मीडिया के रोल पर कहा, ‘जबसे मैंने टाइम्स में जॉइन किया, पत्रकार कहते थे मीडिया Watchdog होता है। यह अच्छा शब्द है कि अगर हम डॉग को इंसान का सबसे अच्छा दोस्त मानें। मगर अगर आपका अर्थ है भौंकने वाला कुत्ता, तो वो रोल हमारा नहीं होगा। हम हर समय हर मुद्दे का कटाक्ष करने के लिए मीडिया नहीं चाहते हैं। मेरा पाठकों के दिल से जो कनेक्ट है वह यह है कि हिंदुस्तान में रोज अखबार पढ़कर लोगों को उल्लास से भरना चाहिए।’ उन्होंने कहा, ‘नया शब्द निर्माण किया गया है ‘Watch God (वॉच गॉड)’, सिर्फ ‘Watchdog (वॉचडॉग)’ नहीं। ये शब्द आप अखबार के मास्ट हेड पर पाएंगे। तो मीडिया इंसान का सबसे अच्छा दोस्त वाला डॉग है जो हर जगह भगवान को देखता है और ऊंची से ऊंची दृष्टि से देखकर उसमें प्रकट करता है।’ ‘यूनिवर्सिटी में नहीं मिलता यूनिवर्स का ज्ञान’फेस्ट के एक सेशन का जिक्र करते हुए टाइम्स ग्रुप के वीसी ने कहा कि धर्म, अध्यात्म और देश को जोड़ा जा सकता है। हम यह ना बोलें कि धार्मिक देश बल्कि हमारा आध्यात्मिक देश है। आध्यात्मिक शिक्षा पर उन्होंने कहा कि जो आप स्कूल-कॉलेज में पढ़ेंगे वो फिजिकल साइंसेज हैं- जैसे फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायॉलजी। यह बहुत छोटी बातें हैं। यूनिवर्सिटी वालों ने बहुत बड़ा शब्द ‘यूनिवर्स’ धर लिया है मगर यूनिवर्सिटी में यूनिवर्स का ज्ञान नहीं दिया जाता है। स्प्रिचुअल एजुकेशन का मतलब है कि ना दिखाई देने वाली चीजों को सीखना, जो स्कूल-कॉलेज में नहीं पढ़ाई जाएगी। वहां सिर्फ जॉब मार्केट के लिए पढ़ाया जाएगा। हमें ना दिखाई देने वाली साइंस को जानना होगा, जैसे प्रेम जो देखने की चीज नहीं है। फिर आकाश की पढ़ाई जो शिव और शक्ति से भरपूर है और टस से मस नहीं हो सकती है। माइथॉलजी को भी अगर आप पढ़ते हैं तो यह इतिहास से भरपूर है। रामायण और महाभारत पढ़कर तो आपको केंद्र बिंदु मिल जाता है। गुरुनानक की निर्गुण – सगुण भक्ति का जिक्र करते हुए समीर जैन ने कहा, ‘निरगुन आप सगुन भी सोही। निर्गुण और सगुण दोनों ही आप ही हैं। तो आप ही साकार हैं, आप ही निराकार। कबीर कहते हैं, प्रेम गली अति सांकरी, तामें दो न समाहिं। जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।’ उन्होंने स्टूडेंट्स को संबोधित करते हुए कहा, ‘भारत विश्व गुरु होने वाला है, अध्यात्म को धारण करके। आप इसके बहुत महत्वपूर्ण हिस्से होंगे।’ राजपथ से बदले नाम ‘कर्तव्यपथ’ का जिक्र करते हुए समीर जैन ने स्टूडेंट्स को बताया, ‘कर्तव्य के ऊपर शास्त्र ले जाते हैं। वीर रस में हमने दिनकर जी (रामधारी सिंह दिनकर) से आमने-सामने सीखा था। उन्होंने एक दिन मुझसे पूछा कि स्कूल में क्या पढ़ा? तो मैंने बताया कि मास्टर जी ने दिनकर की कविता का अर्थ समझाया और मैंने उन्हें अर्थ पेश किया। तो दिनकर जी बोले इतना तो मैंने सोचा ही नहीं था। तो आपकी यह पावर है जो दिनकर, महाश्वेता देवी, हरिवंशराय बच्चन ने भी सोचा भी नहीं, वो अर्थ आप उनकी कविताओं को दे सकते हैं।’ उन्होंने कहा, ‘कर्तव्य के ऊपर भी एक जगह है, जो गीता में कहा है कि जो आत्मा में आत्मा से संतुष्ट है, उसके लिए कोई कर्तव्य कर्म नहीं है। इसके ऊपर भी एक अवस्था होती है, जो जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य है। योगवाशिष्ठ कहता है, बर्थ एंड डेथ आर वर्बल कन्वेंशन लाइक द राइजिंग एंड सेटिंग ऑफ द सन (Birth and death are verbal convention like the rising and setting of the sun)। यह एक लाइन… क्या यह साहित्य है, यह अध्यात्म है, यह आप तय करें। हम कहते हैं कि यह दोनों का संगम है।’ ‘अध्यात्म में नहीं मिलेगा स्याह पक्ष’साहित्य के डार्क साइड पर बोलते हुए समीर जैन ने कहा, ‘अध्यात्म में आपको स्याह पक्ष (Dark Side) नहीं मिलेगी, मगर दिल और दिमाग को ऊंचे आकाश में ले जाने की प्रतिक्रिया मिलती जाएगी।’ उन्होंने कहा, ‘जैसे शेक्सपियर का मैकबेथ हमने तीन-तीन साल स्कूल और कॉलेज में पढ़ा। उसमें लेडी मैकबेथ अपने पति को राजा की हत्या करके राजा बन जाने को कहती है। वह बहुत लंबी स्पीच है। यंग एज में वो अनायास याद हो जाती है और दिमाग से निकालना बहुत मुश्किल होता है। यह साहित्य का स्याह पक्ष है जो अध्यात्म में नहीं मिलेगा।’समीर जैन ने कहा, ‘साहित्य में, गानों में विरह के गीत ही प्राइज जीतते हैं। मगर आध्यात्मिक साहित्य में बिछड़ने वाला प्रेम नहीं मिलेगा या बहुत कम अंश में मिलेगा। मनुष्य-मनुष्य का प्रेम बहुत कम समय तक चलता है। भगवान का प्रेम सदियों तक चलता है। फिल्म वालों ने भी इसे धारण किया ‘सौ साल पहले मुझे तुमसे प्यार था…’ यह आध्यात्मिक प्रेम की झलक है, जहां दो ना रहकर प्रेम में एक हो जाते हैं। फिल्म डायरेक्टर्स भी कोशिश करते हैं कि पॉप म्यूजिक के साथ जोड़कर ऊंची चीज सबके सामने पेश करें।’