वर्ल्ड कप हारने के बावजूद मालामाल हुए प्रज्ञानंदा, मामूली बैंक बाबू के बेटे की छप्परफाड़ कमाई

बाकू (अजरबैजान): प्रज्ञानंदा विश्व कप भले ही नहीं जीत सके हों, लेकिन दिग्गजों को धराशायी करके उन्होंने शतरंज को अखबारों के पहले पन्ने पर ला दिया। खेल की लोकप्रियता में इजाफा किया जो अमूमन देश के कुछ राज्यों में ही मशहूर है। बैंक की एक साधारण सी नौकरी करने वाले पिता रमेशबाबू का अब यह 18 वर्षीय बेटा अपने अकाउंट में आने वाले पैसे गिनेगा, जो उन्हें बतौर वर्ल्ड कप उपविजेता मिले। 10 अगस्त, 2005 को जन्में प्रज्ञानंदा को लगभग 66,13,444 ($80k) रुपये मिले। अगर वह चैंपियन बनते तो उन्‍हें लगभग 90,93,551 ($110k) रुपये मिलते। टूर्नामेंट का कुल पुरस्कार पूल लगभग 1,51,392,240 रुपये था।विश्वनाथन आनंद के उत्तराधिकारीइस 18 वर्षीय खिलाड़ी को पिछले कुछ समय से पांच बार के विश्व चैंपियन विश्वनाथन आनंद का संभावित उत्तराधिकारी माना जा रहा है और उन्होंने बाकू में फिडे विश्व कप में शानदार प्रदर्शन करके इसे सही साबित भी कर दिया। प्रज्ञानंदा को अब कैंडिडेट टूर्नामेंट में भाग लेने का मौका मिलेगा जिसका विजेता मौजूदा विश्व चैंपियन डिंग लीरेन के सामने चुनौती पेश करेगा। आनंद के बाद प्रज्ञानंदा दूसरे भारतीय खिलाड़ी हैं, जिन्होंने कैंडिडेट टूर्नामेंट में जगह बनाई है। प्रज्ञानंदा ने साढ़े चार साल की उम्र से शतरंज खेलना शुरू किया था तथा अपने करियर में वह अभी तक कई उपलब्धियां हासिल कर चुके हैं।18 साल की उम्र में बड़े कारनामेप्रज्ञानानंदा ने विशेषकर विश्वकप में दिखाया कि वह कभी हार नहीं मानते। दुनिया के दूसरे नंबर के खिलाड़ी हिकारू नाकामुरा के खिलाफ उन्होंने अपने जज्बे का शानदार नमूना पेश किया तथा अपने से अधिक रेटिंग वाले खिलाड़ी को हराया। सेमीफाइनल में उनका मुकाबला विश्व के तीसरे नंबर के खिलाड़ी फैबियानो कारूआना से था जिन्हें उन्होंने रक्षण का अच्छा नमूना पेश करके टाई ब्रेकर में पराजित किया। प्रज्ञानानंदा को आनंद की तरह शुरू से ही अपने परिवार विशेषकर अपनी मां का साथ मिला। उनकी मां नागालक्ष्मी प्रत्येक टूर्नामेंट के दौरान उनके साथ रहती है जिसका इस युवा खिलाड़ी को भावनात्मक लाभ मिलता है।