‘हम तेरी पार्टी में आएंगे मुसाफिर की तरह’, स्विच ओवर मूड में चल रहे कुशवाहा को लेकर सियासत तेज

पटना : बिहार की सियासत में हलचल है। जेडीयू नेता उपेंद्र कुशवाहा बिहार लौट आए हैं। उपेंद्र कुशवाहा और उनसे जुड़ी बाकी बातों की चर्चा होगी। सबसे पहले जान लेते हैं कि बीजेपी नेता और पूर्व डिप्यूटी सीएम तारकिशोर प्रसाद ने क्या कहा। तारकिशोर प्रसाद ने एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में बहुत सारी बातें कही। पूर्व डेप्यूटी सीएम ने एनबीटी से बातचीत में कहा ये सच है कि एम्स में भर्ती होने के दौरान उपेंद्र कुशवाहा से बीजेपी के कुछ नेताओं ने मुलाकात की। हालांकि, वे इस बात को जोड़ना भी नहीं भूले की ये मुलाकात औपचारिक थी। प्रसाद ने कहा कि कुशवाहा की तबीयत खराब थी, इसलिए बीजेपी नेताओं ने उनसे मिलकर हाल-चाल जाना। कुशवाहा के बीजेपी में शामिल होने के कयासों पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए प्रसाद ने कहा कि यदि कुशवाहा को शीर्ष नेतृत्व की ओर से प्रस्ताव दिया जाता है तो निश्चित तौर पर उनका स्वागत किया जाएगा।

जेडीयू दिशा विहीन-बीजेपी

तारकिशोर प्रसाद ने कहा कि देखिए जेडीयू एक दिशा विहीन पार्टी है। उसके मुखिया नीतीश कुमार हैं। जेडीयू भटकाव के दौर से गुजर रही है। नीतीश कुमार खुद कह चुके हैं कि वे 2025 में तेजस्वी को सीएम की कमान सौंप देंगे। इससे पार्टी के भीतर भगदड़ की स्थिति है। प्रसाद ने कहा कि मुख्यमंत्री की विश्वसनीयता राष्ट्रीय स्तर पर खत्म हो गई है। राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में उनके ऊपर भरोसा अब कठिन है। वे विपक्षी एकता के लिए निकले थे। उन्हें किसी ने भाव नहीं दिया। नीतीश कुमार अपने सबसे मजबूत साथी के साथ संबंध नहीं निभा सके तो वे अन्य पार्टियों के साथ कैसे निभाएंगे। दूसरे दल इस बात को जानते हैं कि संख्या बल अधिक रहने के बाद भी बीजेपी ने उन्हें सीएम बनाया। तारकिशोर प्रसाद ने एनबीटी से बातचीत में कहा कि आरजेडी के भूमि सुधार मंत्री आलोक मेहता का बयान सामाजिक ताने-बाने को तोड़ने वाला है।

कुशवाहा का स्वागत है- बीजेपी

तारकिशोर प्रसाद ने स्पष्ट किया कि बीजेपी बिहार में अपने दम पर सरकार बनाएगी। जिस तरीके से नीतीश कुमार ने धोखा देने का काम किया है। बीजेपी अपने और सहयोगियों के बल पर लोकसभा और विधानसभा चुनाव में जाएगी। हम अपने दम पर सबकुछ करेंगे। ये तो रही तारकिशोर प्रसाद की बात। अब सवाल ये उठता है कि अचानक बीजेपी नेता को उपेंद्र कुशवाहा के स्वागत की जरूरत क्यों पड़ने लगी? सियासी जानकार मानते हैं कि कुशवाहा एक ऐसे राजनेता रहे हैं जो चुनाव से पहले पाला जरूर बदलते हैं। चाहे वो लोकसभा का चुनाव हो या फिर राज्यों में विधानसभा का चुनाव हो। पिछले 17 साल में उन्होंने कई बार जेडीयू को छोड़ा और अनेक बार बाहर हुए। अपनी पार्टी भी बनाई। हालांकि, वे अपनी पार्टी का जेडीयू में विलय करने की बात कहते हैं। उनकी पार्टी चुनाव आयोग की वेबसाइट पर अभी भी जिंदा है। इन्होंने विलय की प्रक्रिया को कानूनी रूप से पूरा नहीं किया है।

‘हम तेरी पार्टी में आए हैं’

जानकार मानते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा पहले भी एनडीए और महागठबंधन में शामिल रह चुके हैं। एक बार फिर उनके पाला बदलने की चर्चा जोरों पर है। तारकिशोर प्रसाद इन चर्चाओं के आधार पर कह रहे हैं कि कुशवाहा का बीजेपी में स्वागत है। नीतीश कुमार जब खुद लोकसभा चुनाव में बेहतरीन नहीं कर सके तो उन्होंने कुशवाहा को पार्टी में लौटने का ऑफर दिया। दोनों गले भी लगे। 2010 के विधानसभा चुनाव में कुशवाहा ने घर वापसी की। सीधे उन्हें राज्यसभा भी मिल गया। कुशवाहा की उछल-कूद यहां भी कम नहीं हुई। आखिरकार पार्टी से निकलना पड़ा। कुशवाहा ने 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी बनाई। मोदी के समर्थन में रहे। इनाम के तौर पर उन्हें कैबिनेट में जगह दी गई। फिर उछलने लगे और अपनी गति को प्राप्त हुए। जानकारों का कहना है कि उनके सियासी भविष्य में चक्र का दोष है। वे एक जगह ठहर नहीं सकते। कुशवाहा की पार्टी बिखर गई। इनके विधायक गायब होने लगे। आखिरकार इन्हें महागठबंधन और तेजस्वी के पास लौटना पड़ा।

‘न इधर के रहे न उधर के हम’

राजनीतिक जानकारों की मानें, तो कुशवाहा के मन में बिहार को लेकर हमेशा एक द्वंद चलता रहा। वे समझ ही नहीं पाए कि बिहार की सीएम की कुर्सी पाने के लिए उन्हें अभी बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। कुशवाहा के पास नीतीश और तेजस्वी की तरह संगठन नहीं है। उनके पास कुशवाहा वोटरों को छोड़कर किसी का सहारा नहीं है। वे आगे बढ़ने के लिए सहारा की तलाश करते हैं। उन्हें कई बार अच्छे सपोर्ट भी मिले। वो चाहते तो केंद्र में मंत्री और राज्यसभा सदस्य रहते हुए अपना जनाधार बढ़ा सकते थे। उन्हें अचानक लगा कि बिहार में जमीन पर मेहनत कर चुनाव जीता जा सकता है। उन्हें झटका तब लगा जब वे 2019 में खुद भी चुनाव हार गए। उसके बाद से लगातार उन्हें झटका लगता गया। उनके वोट शेयर गिर गए। जानकारों की मानें, तो बिहार जीतने के लिए उन्हें कुशवाहा वोटरों से आगे की रणनीति बनानी होगी। फिलहाल, बिहार की कुर्सी खाली नहीं दिख रही है। वे बेचैन तब और ज्यादा हो गये कि उनके सामने कल का राजनीति में आया छोकरा भी अब सीएम बनेगा। ये महज बोर्ड के अध्यक्ष भर रह जाएंगे।