
चिराग की राजनीत का क्या रहेगा स्वरूप
जहां तक चिराग की राजनीति का सवाल है तो वह एक स्वतंत्र पार्टी की हैसियत के साथ बरकरार रहेगा। और एनडीए की छतरी के तले अपना विस्तार भी करेगा। इसकी कुछ खास वजह भी है। सबसे पहले तो पशुपति पारस की उम्र की वजह से पासवान या दुशाद की राजनीत पूरी तरह से चिराग की तरफ शिफ्ट होते दिखा। गत दिनों गोपालगंज और मोकामा चुनाव में यह दिखा भी। अब भी जिस जोशों खरोश से कुढ़नी उपचुनाव को चिराग ने गंभीरता से लिया है, यह उसे संदेश के लिए काफी है कि रामविलास पासवान के वोटर ने चिराग को अपना नेता माना है। दूसरी वजह है कि चिराग की उम्र कम है और वे भविष्य की राजनीति के लंबी रेस के घोड़े साबित होंगे।
क्या होगा पशुपति पारस का?दरअसल, पशुपति पारस उम्र के बोझ तले राजनीत में सक्रिय भूमिका अब नहीं निभा पाएंगे। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा है कि पारस बीजेपी के साथ चले जायेंगे और पार्टी को बीजेपी में मर्ज कर देंगे। उनके सांसद अपनी मर्जी से जहां जायेंगे वह उनके मन पर निर्भर करता है। ऐसे में महबूब अली केसर और वीणा सिंह संभवतः महागठबंधन की तरफ का रुखसत कर सकते हैं। लोजपा के चंदन सिंह बीजेपी में बने रह सकते हैं। जहां तक प्रिंस का सवाल है तो वह चिराग की तरफ ही पेंग बढ़ा रहे हैं।
बीजेपी क्या चाहती है?
बीजेपी के रणनीतिकारों की माने तो वह चाहती है कि चिराग का स्वतंत्र अस्तित्व बना रहे। इस अस्तित्व के साथ ही बीजेपी ने जेडीयू के कद को कम करने की रणनीति में कामयाब हुई थी। इसलिए बीजेपी उसके स्वतंत्र अस्तित्व की हिमायती है। और आगामी चुनाव में चिराग के इसी रूप में बीजेपी को लाभ हो सकता है।