
मोदी सरकार भारत से किसी स्पॉन्सर के बिना पाकिस्तानी हिंदू तीर्थयात्रियों को प्रवेश की अनुमति नहीं देती है। द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की खबर के अनुसार नई दिल्ली ने संकेत दिया है कि मृत हिंदू के परिवार के सदस्यों को उनकी अस्थियां विसर्जित करने के लिए भारत का 10 दिनों का वीजा दिया जाएगा। साल 2011 और 2016 के बीच 295 हिंदुओं की अस्थियां भारत-पाकिस्तान के बीच वाघा बॉर्डर पर भेजी गई थीं।
भारत के कदम को पाकिस्तान ने सराहा
यह पहली बार होगा जब परिवार का कोई सदस्य खुद अस्थियों को लेकर हरिद्वार जाएगा। पाकिस्तान की मीडिया ने इस ‘कदम को सराहा’ है। भारत और पाकिस्तान के बीच 2019 से व्यापार बंद है। दोनों के संबंध अक्सर तनावपूर्ण बने रहते हैं। ऐसे में नागरिकों को दूसरे देश का वीजा मिलना लगभग ‘असंभव’ है। कराची के सोल्जर बाजार और रणछोर लाइन में बड़े पैमाने पर हिंदू समुदाय रहता है जो विभाजन से बहुत पहले से यहां रह रहे हैं। अनुमान है कि इनकी आबादी 100,000 और 150,000 के बीच है।
वीजा के लिए रिश्तेदार की सिफारिश जरूरी
थारपारकर जिले के कुनरी, नगरपारकर और इस्लामकोट में करीब पांच लाख हिंदू रहते हैं। पाकिस्तानी हिंदू अपने मृतकों का अंतिम संस्कार करते थे और अस्थियों को मंदिर या श्मशान घाटों में इस उम्मीद में रखते थे कि एक दिन वे इन्हें गंगा नदी में विसर्जित कर सकेंगे। भारत सरकार की पॉलिसी के अनुसार, परिवार के किसी सदस्य को अस्थियों को हरिद्वार ले जाने के लिए वीजा तभी जारी किया जा सकता है, जब भारत से परिवार का कोई सदस्य या वहां बसा कोई परिचित उन्हें स्पॉन्सर करे। ज्यादातर पाकिस्तानी हिंदुओं के भारत में रिश्तेदार नहीं हैं। कराची में ओल्ड गोलिमार के पास सोनपुरी श्मशान घाट के अस्थि कलश पैलेस में 300 हिंदुओं की अस्थियां रखी हुई हैं। इसके अलावा 128 लोगों की अस्थियां भी गंगा में विसर्जन के इंतजार में हैं।