नई दिल्ली: आर्टिकल-370 को रद्द करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से कहा गया है कि याचिका अलगाववाद का अजेंडा है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि कोई भी यह नहीं कह सकता क्योंकि याची ने आर्टिकल-32 के तहत यह अर्जी दाखिल की है। साथ ही उन्होंने कहा कि कोई भी संवैधानिक अधिकार के लिए बात रख सकता है। के बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया।लोन को बयान वापस लेना चाहिए: केंद्रसुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता की ओर से कपिल सिब्बल ने जब दलील शुरू की तब सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह कहना चाहते हैं कि याची सांसद अकबर मोहम्मद लोन ने पब्लिक रैली में क्या कहा था यह देखा जाए। आतंकी घटना के बाद उन्होंने आम लोगों के साथ-साथ आतंकवादियों के प्रति सहानुभूति जताई थी। उन्होंने भारत को विदेश की तरह बताया था। इस मामले में लोन हलफनामा देकर अपने बयान को वापस लें और कहें कि वह अलगाववाद और आतंकवाद का समर्थन नहीं करते हैं। सिब्बल ने कहा कि इस तरह का हलफनामा तो यूनिफॉर्म होना चाहिए और सबके लिए होना चाहिए।‘आर्टिकल-370 को एकतरफा रद्द नहीं कर सकते’कपिल सिब्बल ने दलील पेश करते हुए कहा कि देशभर के राज्यों का यूनिफॉर्म तरीके से एकीकरण किया गया, लेकिन जम्मू-कश्मीर का मसला अपवाद है। सिब्बल ने कहा कि आप 370 के लिए स्वतंत्र पावर का इस्तेमाल नहीं कर सकते हैं। 370 एकीकरण की प्रक्रिया का हिस्सा है और एकतरफा घोषणा से उसे रद्द नहीं किया जा सकता। अनुच्छेद-370 (1) बी में सहमति जरूरी है। अनुच्छेद-370 (3) को बिना सहमति लिए खत्म कर दिया गया। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता।‘आर्टिकल-370 अस्थायी नहीं है’सिब्बल ने कहा कि जब आर्टिकल रद्द किया गया तब राष्ट्रपति शासन था। 356 का इस्तेमाल कर इसे रद्द नहीं किया जाना चाहिए था। मंत्रिपरिषद से भी मशविरा नहीं हुआ। अगर 356 का इस्तेमाल कर संसद अपने पास शक्ति ले ले तो वह कुछ भी कर सकती है। आप कैसे राज्य को केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील कर सकते हैं। किस कानून के तहत यह किया गया? इसके लिए कहां से पावर आया? इस दौरान एडवोकेट गोपाल सुब्रह्मण्यम ने दलील दी कि शुरुआत में आर्टिकल-370 अस्थायी था लेकिन वह बाद में स्थायी स्वरूप ले लिया। भारतीय संविधान भी जम्मू-कश्मीर के संविधान को मान्यता देता है। प्रेजिडेंट भी संसद के पार्ट हैं। संसद में लोकसभा, राज्यसभा और राष्ट्रपति होते हैं। प्रेजिडेंट मंत्रिमंडल की सलाह से काम करते हैं।लोकतंत्र, फेडरल स्ट्रक्चर ताक परइसके बाद एक अन्य याची की ओर से सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने कहा कि 370 के साथ समझौता किया गया। केंद्र सरकार यह नहीं बता पाई है कि राज्य का दर्जा कब वापस होगा। उसका रोडमैप क्या होगा। भारतीय संविधान की संप्रभुता पर किसी का कोई सवाल ही नहीं है। देशभर में वह लागू है। आंतरिक संप्रुभता और बाहरी संप्रभुता अलग बात है। सीनियर एडवोकेट दुष्यंत दवे ने एक याची की ओर से कहा कि लोकतंत्र, फेडरल सिस्टम और रूल ऑफ लॉ संविधान का बेसिक स्ट्रक्चर है, लेकिन उन्होंने सभी को ताक पर रख दिया। सरकार ने अनुच्छेद-370 को निरस्त कर दिया इसलिए वह अस्थायी नहीं हो जाता है।