
यही कारण था कि जुलाई में भाजपा के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह ने हैदराबाद में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पीएम नरेंद्र मोदी के सामने मुस्लिम समाज में भाजपा की बढ़ती पहुंच का जिक्र किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कैसे भाजपा ने आजमगढ़ और रामपुर जैसी लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की, जहां मुस्लिम समाज निर्णायक की भूमिका में रहता है। इसी पर पीएम नरेंद्र मोदी ने बीजेपी को पसमांदा समाज के लिए काम करने का मंत्र दिया। उन्होंने पसमांदा मुस्लिम समाज में काम करने की जरूरत पर बल दिया।
‘अब्दुल अब दरी नहीं बिछाएगा, कुर्सी पर बैठेगा’
पीएम मोदी के इस मंत्र का असर भी दिखने लगा। इस बार के रामपुर विधानसभा उपचुनावों में ‘अब्दुल’ चर्चा में आ गया। इसकी व्याख्या आजम खान के ही करीबी रहे और हाल ही में भाजपा ज्वाइन करने वाले फसाहत अली शानू ने की। उन्होंने कहा कि अब्दुल सिर्फ एक नाम नहीं, एक प्रतीक है। हमेशा से अब्दुल का राजनीतिक उत्पीड़न किया गया। उसे भाजपा का डर दिखाया गया लेकिन आज अब्दुल आजाद है, वह खुश है, विकास का हिस्सा बन रहा है। फसाहत अली ने सपा पर तंज करते हुए कहा कि अब्दुल ने साबित कर दिया है कि वह अब दरी नहीं बिछाएगा, बल्कि सम्मान के साथ कुर्सी पर बैठेगा।
हालांकि आजम खान ने फसाहत अली को ही ‘अब्दुल’ दर्शाते हुए अपने अंदाज में कहा था कि अब्दुल दरी नहीं बिछाएगा, वह पोछा लगाएगा। हमारे कार्यालय पर अब दरी नहीं बिछती, जब बिछाई जाती थी तो सबसे पहले मैं ही बिछता था। 45 साल दरी बिछाकर, पोस्टर चिपकाकर ही तो यहां तक पहुंचा हूं। लेकिन जिस अब्दुल की बात की जा रही है, उसने पार्टी को बहुत नुकसान पहुंचाया है।
बहरहाल, भले ही भाजपा खतौली की अपनी विधानसभा सीट हार गई, मैनपुरी में भी रघुराज शाक्य कुछ कमाल नहीं कर सके लेकिन रामपुर की जीत ने पार्टी को उम्मीद जरूर दे दी है। एक तो आजम खान का ये गढ़ पूरी तरह से टूट गया है। दूसरा पसमांदा समाज में भाजपा ने पैठ बनानी शुरू कर दी है। दरअसल रामपुर की विधानसभा सीट में 50 फीसदी से ज्यादा आबादी मुस्लिमों की है। पहली बार भाजपा इस सीट पर जीती है और आकाश सक्सेना को मिले वोटों में मुस्लिमों की भी भागीदारी से इंकार नहीं किया जा सकता।
भाजपा की पसमांदा मुस्लिम समाज को जोड़ने की रणनीति की बात करें तो दो प्रमुख नेताओं दानिश आजाद अंसारी और डिप्टी सीएम बृजेश पाठक को विशेष तौर पर लगाया गया है। दरअसल बृजेश पाठक के पास बसपा में भी काम करने का अनुभव है और उनकी प्रदेश में मुस्लिम सियासत की अच्छी समझ मानी जाती है। वहीं दानिश आजाद अंसारी वर्तमान में योगी सरकार का मुस्लिम चेहरा हैं। इसी क्रम में अक्टूबर में लखनऊ में पसमांदा मुस्लिम सम्मेलन आयोजित किया गया। इसके बाद रामपुर सहित प्रदेश के दूसरे जिलों में इसका आयोजन किया गया।
निकाय चुनावों में पसमांदा मुस्लिमों को टिकट देने की तैयारी
वैसे बीजेपी की पसमांदा समाज को जोड़ने की रणनीति सिर्फ उपचुनावों तक ही नहीं रुकी है। यूपी में जल्द ही नगर निकाय चुनाव होने जा रहे हैं। इन चुनावों को कहीं न कहीं 2024 के लोकसभा चुनावों के सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है। इस चुनाव में बीजेपी अपने मिशन पसमांदा को आगे बढ़ाने की तैयारी में है। माना जा रहा है प्रदेश भर में कई ऐसी सीटें हैं, जहां भाजपा पसमांदा समाज को प्रत्याशी के तौर पर उतारेगी।
पसमांदा मुस्लिम समाज में अंसारी, सलमानी, इदरीसी, फकीर, अल्वी, कुरैशी, घोसी, राईन, रंगरेज, बुनकर, धुनिया, मंसूरी, धोबी, नाई, गुजर, लोहार, सैफी, कासगर, मल्लाह, गद्दी-घोसी, नट, राजमिस्त्री आदि मुसलमान आते हैं। भाजपा तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाने के रास्ते इस समाज में पार्टी अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रही है। सरकारी में दानिश आजाद के अलावा बीजेपी संगठन की बात की जाए तो अल्पसंख्य मोर्चे में तीन चौथाई सदस्य पसमांदा समाज से ही हैं।