भारत के खिलाफ आतंकियों को पालना पाक को पड़ रहा भारी, जिन सांपों को दूध पिलाया अब वही काट रहे

इस्लामाबाद: पेशावर में सोमवार को हुए आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान में एक बार फिर से आतंकवाद को लेकर चिंता बढ़ गई है। इस हमले में अब तक 93 लोगों की मौत हो चुकी है। फिदायीन हमले में 150 से ज्यादा लोग घायल हो चुके हैं। पेशावर में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के एक धड़े ने ली है। भारत के खिलाफ पाकिस्तान ने जिन आतंकियों को पाला है, अब वही उसकी नाक में दम कर रहे हैं। पाकिस्तान में पिछले तीन साल में आतंकवाद के मामलों में वृद्धि देखी गई है। 2021 की तुलना में 2022 में आतंकवाद की घटनाओं में 28 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ कॉनफ्लिक्ट एंड सिक्योरिटी स्टडीज की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक 2017 के बाद एक साल में पहली बार देश में आतंकवाद की 300 से ज्यादा घटनाएं हुई हैं। सुरक्षा विशेषज्ञ भी आतंकी घटनाओं को लेकर चिंता जाहिर कर रहे हैं। ये घटनाएं तब और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं, जब देश राजनीति और खराब अर्थव्यवस्था की चुनौतियों से जूझ रहा है। आतंकवाद के मुद्दे पर भी पाकिस्तान में राजनीति हुई है। पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान ने स्वीकार किया था कि उनकी सरकार प्रतिबंधित आतंकी संगठन TTP के साथ बातचीत कर रही थी। इमरान ने कहा कि शहबाज सरकार और सेना ने बातचीत को खत्म कर दिया, इसलिए आतंकवाद बढ़ा है।

पाकिस्तान में आतंकवाद का लंबा इतिहास

पाकिस्तान में आतंकवाद कोई नया नहीं है। अमेरिका में 9/11 हमले से पहले भी यहां आतंकवादी घटनाएं देखने को मिलती थी। 2008 में जनरल मुशर्रफ के कार्यकाल में यह अपने चरम पर था। बातचीत और लगातार ऑपरेशन के बावजूद पाकिस्तान में रोजाना 2013 तक आतंकवाद की घटनाएं हुईं। हालांकि 2014 से 2020 तक इन घटनाओं में कमी देखने को मिली। 2021 में 2014 की ही तरह आतंकवाद में एक बार फिर वृद्धि देखने को मिली। 2014 में TTP ने पेशावर के आर्मी स्कूल पर आतंकी हमला किया था, जिसमें 122 मासूम छात्र और 22 शिक्षक मारे गए थे। इसी घटना के बाद सरकार ने सख्ती की, जिससे इसमें गिरावट देखने को मिली।

आतंकवाद को रोक नहीं सका पाकिस्तान

पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ पीस स्टडीज की 2015 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक नेशनल एक्शन प्लान के लागू होने के बाद आतंकवाद के मामले में कमी देखी गई है। 2014 में 600 आतंकी घटनाएं देखी गई थीं। 2016 में यह 441 तक पहुंच गया। 2007 के बाद यह सबसे बड़ी गिरावट थी। हालांकि चाहे जितने प्लान पाकिस्तान ने लागू किए हों, उससे आतंकवाद में सिर्फ कमी हुई है। लेकिन उसे पूरी तरह खत्म नहीं किया जा सका। पाकिस्तान इंस्टीट्यूट ऑफ पीस स्टडीज की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में 370, 2018 में 262 और 2019 में 229 आतंकी घटनाएं हुईं।

इमरान ने की थी तालिबान की तारीफ

2020 में आतंकी घटनाएं कम होते-होते 146 तक पहुंच गईं। लेकिन 2021 में आतंकी मामलों में फिर बढ़ोतरी दिखी। यह वही साल था जब अमेरिका अफगानिस्तान से बाहर निकला था। पाकिस्तान ने इसी साल आतंकियों से बातचीत शुरू की थी। पाकिस्तान को उम्मीद थी कि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार आतंकियों को उसकी जमीन का इस्तेमाल नहीं करने देगी। अमेरिका के अफगानिस्तान से निकलने के बाद तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने तालिबान का समर्थन किया था। वह अपने भाषणों में कहते रहे कि तालिबान ने नाटो और अमेरिका को हरा दिया। अफगान तालिबान हो या TTP दोनों की विचारधारा एक ही है। इमरान जिस तालिबान को लेकर खुशी जाहिर कर रहे थे, अब उसने अपने धमाकों से पाकिस्तान की नींद उड़ा दी है।