Opinion: लोकसभा चुनाव में BJP के साथ विपक्ष के ‘मेन सब्जेक्ट’ बने PM मोदी, सियासी कंफ्यूजन का शिकार इंडी ब्लॉक

पटना: लोकसभा चुनाव के परिणाम चाहे जैसे आएं, पर एक बात तो साफ हो गई है कि इलेक्शन की धुरी पीएम ही हैं। भाजपा के लिए तो यह स्वाभाविक ही है, पर विपक्ष भी उनकी आलोचना के कारण मोदी के भ्रमजाल से आगे नहीं निकल पा रहा। मोदी को उखाड़ फेंकना है। मोदी संविधान बदल देंगे। मोदी आरक्षण हटा देंगे। मोदी सरकार ने लोकतंत्र को खत्म करने की ठान ली है। मोदी तीसरी बार सत्ता में आए तो फिर चुनाव कभी नहीं होंगे। विपक्ष के ये कुछ ऐसे आरोप-उलाहने और अंदेशे हैं, जो उसे कितना लाभ पहुंचाएंगे, यह पक्के तौर पर बताना मुश्किल है, लेकिन इसी बहाने मोदी को बहुचर्चित बनाने में विपक्ष की भूमिका तो स्पष्ट दिखाई दे रही है।400 पार के नारे की चर्चाचुनाव में हिन्दू, मुसलमान, पाकिस्तान, पीओके, मंदिर, संविधान और आरक्षण की गूंज तो रही, लेकिन सर्वाधिक चर्चा नरेंद्र मोदी के उस नारे की रही है, जिसमें उन्होंने अबकी बार 400 पार की बात कही है। विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ में शामिल पार्टियां अब इसी प्रेडिक्शन में उलझ कर रह गई हैं कि भाजपा और एनडीए को इस बार कितनी सीटें आएंगी। कोई 200 से नीचे भाजपा के रहने की बात कह रहा तो कोई बहुमत की 272 सीटों से भाजपा या एनडीए के पीछे छूट जाने की बात कर रहा। हालांकि भाजपा के नेता मोदी के 400 पार के नारे पर अब भी अड़े हुए हैं। विपक्ष में कोई यह आकलन करने की जरूरत नहीं समझ रहा कि मोदी को कम सीटें अगर आएंगी तो विपक्षी पार्टियों में किसे कितनी सीटें मिलेंगी। भाजपा के बरक्स कांग्रेस ही बड़ी पार्टी है। कांग्रेस को कितनी सीटें मिलेंगी, इस पर कोई चर्चा नहीं हो रही। दो चुनावों में कांग्रेस की जैसी स्थिति रही है, अगर वह बरकरार रही तो फिर विपक्ष के आकलन का कोई औचित्य ही नहीं रह जाएगा। 2014 में कांग्रेस को 44 सीटों आई थीं तो 2019 में 52 सीटों से ही संतोष करना पड़ा।मोदी बने मुख्य मुद्दा दरअसल विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस को छोड़ दें तो बाकी तो क्षेत्रीय दल ही हैं, जिनकी सारी कवायद राज्य की राजनीति तक ही सीमित रहती है या उनका जोर राज्य की राजनीति पर ही रहता है। कांग्रेस की खैरख्वाह एक पार्टी बिहार में आरजेडी है। यह जगजाहिर है कि आरजेडी का उद्देश्य बिहार की सत्ता पर ही काबिज होना है। बिहार के बारे में सबको यह पता है कि यहां चुनाव जातीय आधार पर होते हैं। टिकट बंटवारे से लेकर मतदाताओं की गोलबंदी करने में हर दल जातीय समीकरण बना कर चलते हैं। अब बिहार के सबसे बड़े विपक्षी दल आरजेडी को देखें तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि लोकसभा चुनाव के बहाने पार्टी ने कैसे विधानसभा चुनाव के लिए नया जातीय समीकरण तैयार करने का प्रयास किया है। अभी तक आरजेडी को मुस्लिम-यादव के गठजोड़ वाला दल ही माना जाता रहा है। इस बार आरजेडी ने जातीय समीकरण का विस्तार भी किया है। पहली बार ऐसा हुआ है कि आरजेडी ने जीत-हार की परवाह किए बगैर कई कोइरी (कुशवाहा) उम्मीदवारों को भी मैदान में उतारा है। राजनीतिक जानकार मानते हैं कि आरजेडी की नजर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव पर है। आरजेडी ने लोकसभा चुनाव के लिए घोषणा पत्र के रूप में जो परिवर्तन पत्र जारी किया है, उसमें विधानसभा चुनाव की स्पष्ट झलक मिलती है। एक करोड़ नौकरी, पुरानी पेंशन योजना, दो सौ यूनिट मुफ्त बिजली जैसे वादे आरजेडी ने भले लोकसभा चुनाव के लिए किए हैं, लेकिन पार्टी ने विधानसभा चुनाव को ध्यान में रख कर ही ऐसा किया है। चुनाव प्रचार में भी आरजेडी के नेता महागठबंधन सरकार के 17 महीने के कार्यकाल की उपलब्धियां ही अधिक गिना-बता रहे हैं। बंगाल, उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में भी विपक्षी दल लोकसभा चुनाव के बहाने राज्य में अपना दबदबा बनाने या बनाए रखने का ही अधिक प्रयास कर रहे हैं।भाजपा का जन जुड़ावभाजपा आरंभ से अब तक राम के भरोसे ही रही है। राम पर उसके इस अटूट भरोसे का उसे सुफल भी मिला है। लोकसभा में कभी दो सीटों पर रहने वाली भाजपा अगर 303 तक पहुंची है तो इसमें राम के प्रति उसकी श्रद्धा ही है। भाजपा ने राम को हिन्दुत्व के प्रतीक के रूप में उभारा और अब तक हिन्दुत्व की लीक पर ही चलती रही है। इस बार भी भाजपा ने हिन्दुत्व का तेवर बरकरार रखा है। विपक्षी पार्टियों के नेता भाजपा के शासन काल में अयोध्या में बने राम मंदिर को लेकर तरह-तरह की बात करते रहे हैं। भाजपा उसे राम मंदिर के उनके विरोध के तौर पर प्रचारित करती रही है। यह भाजपा के हित में साबित हुआ है। नरेंद्र मोदी ने अपनी मुफ्त राशन योजना, जन धन खाते, किसान सम्मान निधि, शौचालय, पीएम आवास और उज्जवला जैसी कई योजनाओं के जरिए देश की बड़ी आबादी से अपना जुड़ाव कायम किया तो विपक्ष ने इन योजनाओं पर छींटाकशी कर अपनी ही स्थिति कमजोर की है।विपक्ष राह बदलता रहायह भी सच है विपक्ष नरेंद्र मोदी पर जितने वार करता है, उसे वे अपने पक्ष में घुमा देते हैं। विपक्ष ने संविधान बदलने की कोशिश का आरोप भाजपा पर लगाया तो मोदी ने यह कह कर विपक्ष की हवा निकाल दी कि बाबा साहेब आ जाएं, तब भी संविधान नहीं बदल सकते। विपक्ष मुसलमानों को लेकर मोदी पर आरोप लगाता रहा है कि उन्होंने गंगा-जमुनी तहजीब को नुकसान पहुंचाया है। मोदी ने इसे विपक्ष के मुस्लिम तुष्टिकरण से जोड़ दिया। भाजपा ने हिंदुत्व की राह पकड़ी तो अभी तक उसी पर चलती रही है, लेकिन विपक्षी नेता तरह-तरह के रंग बदलते रहे। हिन्दुत्व की वजह से भाजपा की कामयाबी देख कर विपक्षी नेता कभी मंदिर में जाने लगते हैं। कभी अपने को विशुद्ध हिन्दू साबित करने की कोशिश करते हैं। कभी मुस्लिम वोटों के लालच में वे पाकिस्तान की तारीफ करने लगते हैं। जम्मू कश्मीर से धारा 370 खत्म करने की बात कहते हैं। विपक्ष को नागरिकता संशोधन कानून में खोट दिखती है तो नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) पर वे तिलमिला जाते हैं। समान नागरिक संहिता (यूसीसी) में विपक्ष को बुराई दिखने लगती है। ये ऐसे मुद्दे हैं, जो भारत के बहुसंख्यक समाज को भाते हैं। विपक्ष की अगर पिछले दो चुनावों में दुर्गति हुई है, तो इसके पीछे उनके ही खड़े किए ऐसे मुद्दे रहे हैं। 2014 में कांग्रेस की पराजय पर एके एंटनी के नेतृत्व में कांग्रेस ने जो समीक्षा समिति बनाई, उसने स्पष्ट कारण यही माना था कि अल्पसंख्यकों के प्रति कांग्रेस का झुकाव उसे इस हाल में आने का बड़ा कारण रहा।