क्यों ठनी है रार
हम पहले ही बता चुके हैं कि ओपीएस की वजह से राजस्थान, झारखंड और छत्तीसगढ़ का केंद्र के साथ रार ठन चुकी है। इन राज्यों ने पेंशन क्षेत्र के नियामक के पास के सब्सक्राइबर के पैसों को वापस करने के लिए प्रस्ताव भेजा है। लेकिन केन्द्र ने राज्यों को पैसे वापस करने से इनकार कर दिया है। यदि पीएफआरडीएस से राज्यों को पैसा वापस नहीं मिलता है तो इन राज्यों को हजारों करोड़ रुपये अपनी जेब से लगाना पड़ेगा। यदि राज्य कर्मचारियों के पेंशन के लिए अपनी निधि लगाएगी तो जाहिर है कि कल्याणकारी कार्यों के लिए फंड का टोटा होगा।
केंद्र ने दे दिया है दो टूक जवाब
पिछले दिनों की केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री भगवत कराड Bhagwat Karad ने लोकसभा में बताया था कि केंद्र के पास ओल्ड पेंशन स्कीम को फिर से शुरू करने संबंधी काई प्रस्ताव लंबित नहीं है। हालांकि कराड ने इस बात को स्वीकार किया था कि राजस्थान, छत्तीसगढ़ और झारखंड सरकार की तरफ से ओपीएस को फिर से शुरू करने की जानकारी केंद्र को मिली है। पीएफआरडीए का कहना है कि इस योजना में एम्प्लॉयी के फंड को एम्प्लॉयर को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता है।
आर्थिक रूप से आत्मघाती कदम?
कुछ राज्य ये भी कह रहे हैं कि चाहे केंद्र सरकार समर्थन दे या न दें, वे तो ओपीएस लागू करेंगे। लेकिन ऐसा करना राज्यों के लिए आर्थिक रूप से आत्मघाती कदम होगा। भारतीय रिजर्व बैंक ने इसी साल जून में ओपीएस पर एक स्टडी की थी। इसमें बताया गया था कि ओल्ड पेंशन स्कीम की तरफ लौटना राज्यों के लिए घातक हो सकता है। स्टडी में हवाला दिया गया है कि कुछ राज्यों की माली हालात ओल्ड पेंशन स्कीम लागू करने लायक नहीं है। इस योजना को लागू करने के लिए कुछ राज्यों को कर्ज भी लेना पड़ सकता है। इससे राज्य को लोक कल्याणकारी योजनाओं के लिए भी निधि का अभाव हो सकता है।
क्या सभी राज्यों में लागू है एनपीस?
केंद्र सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए एक जनवरी 2004 से एनपीएस लागू किया था। कालांतर में इसे धीरे धीरे अधिकतर राज्य सरकारों ने भी लागू कर दिया। हालांकि, इस समय सभी राज्यों में एनपीएस लागू नहीं है। दिल्ली और पुड्डुचेरी समेत 29 राज्यों में ही यह लागू है। पश्चिम बंगाल ने शुरू में ही एनपीएस स्कीम को लागू करने से मना कर दिया था। तमिलनाडु सरकार की भी अपने कर्मचारियों के लिए अलग स्कीम है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े राज्यों ने इस अपना लिया है।