शुरुआत कुछ सवालों से करते हैं। क्या भारतीय जनता पार्टी लोकसभा की कार्यवाही अपने हिसाब से चलाना चाहती है? हिंडनबर्ग रिसर्च रिपोर्ट के बाद जिस तरह की गरमी सदन में दिखी, उसे देखते हुए अगर कांग्रेस का डिप्टी स्पीकर चेयर पर होता तो क्या होता.. क्या भाजपा को इस तरह की आशंका भी सता रही है? राहुल गांधी के भाषण के कई हिस्से कार्यवाही से हटा दिए गए, अगर उस समय चेयर पर कोई और होता तो क्या ऐसा फैसला नहीं होता? ये सवाल सिर्फ मेरे नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट में डिप्टी स्पीकर का मुद्दा जा चुका है। सुप्रीम कोर्ट मोदी सरकार से एक बार फिर खफा है। इस बार मामला अलग है। कलीजियम सिस्टम पर तनातनी से बिल्कुल अलग। दरअसल बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चार साल का कार्यकाल पूरा करने वाले हैं। मतलब नई लोकसभा के गठन में एक साल से कुछ ही ज्यादा का समय बचा है। लेकिन अभी तक मोदी सरकार लोकसभा का डिप्टी स्पीकर नहीं बना पाई। ऐसी पार्टी जो 30 साल बाद पूर्ण बहुमत से 2014 में सत्ता में आई और जिसे दूसरी बार 2019 में प्रचंड बहुमत मिला उसे किस बात का डर है। लोकसभा में बहुमत का जादुई आंकड़ा 273 है। और भारतीय जनता पार्टी को अकेले 303 सीटें मिलीं। इसके बावजूद डिप्टी स्पीकर न बना पाना हैरान करने वाला है। इसी मसले पर सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका डाली गई है जिसकी सुनवाई के दौरान कोर्ट ने दो हफ्तों में मोदी सरकार से जवाब मांगा है। लोकसभा के डिप्टी स्पीकर का जिक्र संविधान के अनुच्छेद 93 में है। वहीं राज्यों में विधानसभा के डिप्टी स्पीकर का जिक्र अनुच्छेद 178 में है। सिर्फ मोदी सरकार ही नहीं राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, मणिपुर और झारखंड की सरकारों ने भी विधानसभा के डिप्टी स्पीकर नहीं बनाए हैं। राजस्थान और झारखंड को छोड़ बाकी जगहों में बीजेपी ही सत्ता पर काबिज है।नरसिंह राव को दीजिए दादअब याद कीजिए पीवी नरसिंह राव को जो 1991 में प्रधानमंत्री बने। ये दसवीं लोकसभा थी। तभी से एक नई परंपरा ने जन्म लिया। सत्तारूढ़ पार्टी ने डिप्टी स्पीकर का पद विपक्षी पार्टी को देने की सकारात्मक परंपरा शुरू की। इससे पहले जिस पार्टी की सरकार उसी के पास दोनों पद होते थे। पहली बार 1991 में भाजपा के एस मल्लिकार्जुनैया डिप्टी स्पीकर बनाए गए। कांग्रेस अगर चाहती तो मना कर सकती थी। लोकसभा में कांग्रेस के 252 सदस्य थे और भाजपा के सिर्फ 121 सदस्य। 11 वीं लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी सिर्फ 13 दिनों तक पीएम रह सके इसलिए नियुक्ति की नौबत ही नहीं आई। बिना चुनाव हुए संयुक्त मोर्चा की सरकार एक जून 1996 को बनती है। एचडी देवगौड़ा पीएम बनते हैं। लालू प्रसाद यादव के विद्रोह और जनता दल में टूट के बाद इंद्र कुमार गुजराल नया पीएम बनते हैं। लेकिन इस दौरान कांग्रेस के पीए संगमा लोकसभा अध्यक्ष बने रहे तो भाजपा के सूरज भान उपाध्यक्ष। सूरज भान की गिनती हरियाणा में बीजेपी के बड़े नेताओं में होती थी। संयुक्त मोर्चा को 332 लोकसभा सदस्यों का समर्थन प्राप्त था। मतलब भाजपा को ये पद देने की कोई बाध्यता नहीं थी। फिर भी परंपरा निबाही गई। जब अटलजी ने 1998 में 13 महीनों वाली सरकार बनाई तो एनडीए के घटक तेलुगु देशम पार्टी को लोकसभा अध्यक्ष का पद मिला। जीएमसी बालयोगी इस पद पर काबिज हुए। लेकिन डिप्टी स्पीकर का पद कांग्रेस के धाकड़ नेता पीएम सईद को दिया गया जो 1964 से 2004 तक लक्षद्वीप से सांसद रहे। हालांकि तब भी 270 दिनों की देरी हुई थी। इसके बाद त्रिशंकु सदन से जनता तौबा करती है। 1999 में अटलजी की अगुआई में एनडीए को पूर्ण बहुमत मिलता है और आजादी के बाद पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार अपना टर्म पूरा करती है। ये बात गौर करने वाली है कि इस दौरान अटलजी पीएम सईद को ही डिप्टी स्पीकर बनाए रखते हैं। चार साल से इंतजारदेश की सबसे बड़ी पंचायत में बहुमत से हासिल सत्ता के दंभ के दूर विपक्ष की भूमिका बनाए रखने में इस परंपरा के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। 2004 में शाइनिंग इंडिया के ताप से बीजेपी झुलस गई। मनमोहन सिंह की अगुआई में यूपीए सरकार बनती है। स्पीकर सोमनाथ चटर्जी बनाए जाते हैं। लेकिन डिप्टी स्पीकर का पद एनडीए के घटक अकाली दल के नेता चरणजीत सिंह अटवल को मिलता है। मनमोहन अपनी दूसरी पारी में भी ये परंपरा निभाते हैं। भाजपा के कद्दावर आदिवासी नेता करिया मुंडा डिप्टी स्पीकर बनाए जाते हैं। फिर 2014 में कमल खिलता है। मोदी लहर में भाजपा सरकार बनाती है। मीरा कुमार के बाद सुमित्रा महाजन यानी ताई लोकसभा स्पीकर बनती हैं और एम थंबीदुरई डिप्टी स्पीकर जो एआईएडीएमके के नेता थे। मनमोहन की दूसरी पारी के विपरीत पीएम मोदी 17वीं लोकसभा जीतने के बाद 2019 में इस पर ब्रेक लगा देते हैं। ओम बिरला स्पीकर लेकिन नो डिप्टी स्पीकर। 24 मई, 2019 से ये पद खाली है। जैसे सरकारी विभागों में लाखों पद खाली हैं। ओम बिरला ने नहीं दी तारीखसंविधान के अनुच्छेद 93 में डिप्टी स्पीकर के चयन, उनकी जिम्मेदारियों और अधिकारों का जिक्र है। इसे 10 पॉइंट में आसानी से समझा जा सकता है।1. स्पीकर यानी अध्यक्ष के चुनाव के ठीक बाद डिप्टी स्पीकर का चयन लोकसभा सदस्य करते हैं2. डिप्टी स्पीकर के चुनाव की तारीख स्पीकर तय करते हैं। यहां ये जानना अहम है कि स्पीकर के चुनाव की तारीख राष्ट्रपति तय करते हैं। लेकिन डिप्टी स्पीकर के चुनाव का ऐलान ओम बिरला कर सकते हैं3.स्पीकर और डिप्टी स्पीकर पद की शुरुआत 1919 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के तहत हुई4. स्पीकर का चुनाव नई लोकसभा की बैठक के तीसरे दिन होता है। पहले दो दिनों तक शपथ की प्रक्रिया चलती है। डिप्टी स्पीकर का चुनाव अगले सत्र में होने की परंपरा रही है। हालांकि वैधानकि अनिवार्यता नहीं है।5.अगले सत्र से ज्यादा की देरी नहीं की जाती है जो मौजूदा हालात में दिखाई दे रही है6. लोकसभा डिप्टी स्पीकर का चुनाव प्रॉसीजर एंड कंडक्ट ऑफ बिजनस के रूल नंबर आठ के तहत होता है।7. एक बार चुने जाने के बाद लोकसभा की अवधि खत्म होने तक वो पद पर बने रहते हैं।8.संविधान के अनुच्छेद 95 के मुताबिक स्पीकर का पद खाली रहने पर सारे अधिकार डिप्टी स्पीकर के पास आ जाते हैं।9. स्पीकर की गैर मौजूदगी में भी ये ताकत डिप्टी स्पीकर के पास आ जाती है10. स्पीकर की अनुपस्थिति में जॉइंट सेशन की अध्यक्षता डिप्टी स्पीकर करते हैं।