Opinion : दशरत रावत पर रहम करो, पीड़ित को राजनीति चमकाने का हथियार न बनाओ

भोपाल : मध्यप्रदेश की सीधी का आदिवासी दशमत रावत पहले पेशाब कांड का विक्टिम था। अब राजनीति ने उसे तमाशा बना दिया है। मध्यप्रदेश के सीएम ने पहले पैर धोकर दशमत को सुदामा बना दिया, फिर कांग्रेस वाले उसे पवित्र करने निकल पड़े। गांव लौटते ही कांग्रेस के नेता गंगाजल लेकर उसके घर पहुंचे। सीधी के कांग्रेस जिलाध्यक्ष ने पहले गंगाजल छिड़का, फिर तौलिए से चेहरा साफ किया। इसके बाद चंदन-तिलक लगाए। इस दौरान वह कांग्रेस नेता यह बताना नहीं भूले कि वह गंगाजल से दशमत के चेहरे को शुद्ध कर रहे हैं। सवाल भी कर दिया कि प्रवेश शुक्ला ने पेशाब चेहरे पर किया था तो शिवराज सिंह चौहान ने पैर क्यों धोए? इस दौरान आदिवासी दशमत मंदिर के उस बुत की तरह बैठा रहा, जिस पर आप फूल चढाएं या पानी, फर्क नहीं पड़ता। निर्विकार भाव से, हाथ जोड़कर। उसे शायद पता नहीं चला कि वह अब ऐसा मोहरा बन गया है, जिसे आने वाले विधानसभा चुनाव तक नेता राजनीतिक बिसात पर ढाई घर आगे और पीछे चलाते रहेंगे। एसटी उत्पीड़न के हजारों विक्टिम को कौन पूछेगा ?सवाल यह है कि क्या मध्यप्रदेश में अकेला दशमत रावत इकलौता आदिवासी नहीं है, जिस पर जुल्म हुए हैं। दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अपराध के बारे में जानना है तो नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े को खंगाल लें। दो साल पहले 2021 में एससी/एसटी एक्ट के तहत 2627 दर्ज हुए थे। 2020 में 2401 केस दर्ज हुए थे। 2022 में मध्यप्रदेश के आदिवासियों पर जुल्म के कई मामले सामने आए थे। तब भी राजनीतिक दलों ने तपिश की आंच में राजनीतिक रोटियां सेकीं थीं। मगर अब उन मामलों की खोज खबर कौन ले रहा है ? जुलाई 2022 की घटना है। देवास में आदिवासी महिला को जूते की माला पहनाकर घुमाया गया था। एक साल बाद कोई नेता उस महिला को पूछने नहीं गया कि अब उसके क्या हाल हैं ? मंडला में तीन आदिवासियों की हत्या कर दी गई । अब उनका परिवार किस हाल में, किसी ने जानने की कोशिश नहीं की। सिवनी और महू की घटना को नेता क्यों भूल गए ? मई 2022 में सिवनी के दो आदिवासियों को गोकशी के शक में पीट-पीटकर मार डाला था। गुना के बामोरी में एक आदिवासी महिला जिंदा जला दी गई। उनका हाल-चाल कौन पूछेगा? मार्च 2022 की घटना भूल गए होंगे। भगोरिया मेले में दो लड़कियों के साथ खुलेआम सेक्सुअल असॉल्ट किया गया था। 2023 फरवरी में हरदा के जूनापानी में पीट-पीटकर मारे गए आदिवासी युवक के परिवार की सुध भी किसी ने नहीं ली। मार्च 2023 में महू में आदिवासी युवती के गैंगरेप और हत्या के बाद बवाल हुआ था। खूब राजनीति चमकाई गई थी। तीन महीने बाद किसी नेता को यह घटना याद भी है। शुद्धिकरण कर नेताओं ने दशमत को क्या दिया ?सीधी में प्रवेश शुक्ला ने आदिवासी दशमत के साथ जो किया, उसके लिए कड़ी सजा मिलनी चाहिए। मगर जो अब दशमत के बहाने राजनीति चमकाने की कोशिश कर लगातार उसके सम्मान से खेल रहे हैं, उनका क्या? किसी ने यह जानने की कोशिश नहीं की कि मेंटल टॉर्चर से गुजरने के बाद शुद्धिकरण का यह नाटक से उस पर क्या बीत रही है? राजनीतिक नौटंकी से उसके परिवार की हालत समाज में कैसी छीछलेदर हो रही है। चार महीने बाद मध्यप्रदेश में चुनाव होने हैं, दशमत को आदिवासी के खिलाफ अन्याय का चेहरा बनाने की कोशिश चलती रहेगी। मगर राजनेताओं को आदिवासी और दलित बिरादरी के उन लोगों को भी जवाब देना होगा, जिनके नाम पर हंगामा बरपा, टीवी चैनलों पर राजनीतिक बहस हुई और भूला दिए गए। शुद्धिकरण और पैर धोने वाले नेताओं को इसका जवाब देगा होगा। फिलहाल दशमत पर रहम कीजिए, राजनेताओं के ड्रामे में उसकी गरिमा का ध्यान रखना जरूरी है।