देश के पांच राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, मध्यप्रदेश और झारखंड के स्कूलों में नामांकित कुल बच्चों में से औसतन लगभग एक तिहाई छात्रों के वर्ष 2022-23 की तीन तिमाही के दौरान मध्याह्न भोजन योजना के दायरे से बाहर रहने पर कड़ा संज्ञान लेते हुए केंद्र सरकार ने इन राज्यों से कवरेज बढ़ाने के लिए व्यवस्था तैयार करने को कहा है।
साथ ही शिक्षा मंत्रालय ने कुछ राज्यों से योजना के आंकड़ों की प्रमाणिकता की जांच करने और विसंगतियां दूर करने के लिए सुधारात्मक कदम उठाने को कहा है।
वर्ष 2023-24 के लिए शिक्षा मंत्रालय के अधीन पीएम पोषण योजना की वार्षिक कार्य योजना एवं बजट पर, कार्यक्रम मंजूरी बोर्ड (पीएबी) की बैठक के कार्यवृत (मिनट्स) से यह जानकारी मिली है। यह बैठक मार्च से मई महीने के बीच हुई थी।
कार्यवृत में अप्रैल से दिसंबर 2022 तक राज्यों में मध्याह्न भोजन के प्रदर्शन की समीक्षा का लेखाजोखा प्रस्तुत करते हुए कहा गया है कि स्कूलों में दाखिले की तुलना में मध्याह्न भोजन प्राप्त करने वाले छात्रों का औसत प्रतिशत इन पांच राज्यों में भी सबसे ज्यादा खराब बिहार (57 प्रतिशत) और उत्तर प्रदेश (57.37 प्रतिशत) है जबकि दिल्ली(60 प्रतिशत), मध्यप्रदेश (68.81 प्रतिशत), झारखंड (69 प्रतिशत) की स्थिति थोड़ी बेहतर है।
इसके अलावा, दाखिले की तुलना में मध्याह्न भोजन प्राप्त करने वाले छात्रों का औसत तेलंगाना में 79 प्रतिशत, असम में 82 प्रतिशत, उत्तराखंड में 83 प्रतिशत, त्रिपुरा में 86 प्रतिशत, पंजाब और मणिपुर में 87 प्रतिशत, तमिलनाडु में 88 प्रतिशत, मेघालय में 89 प्रतिशत दर्ज किया गया।
कार्यक्रम मंजूरी बोर्ड (पीएबी) ने इन राज्यों में दाखिले की तुलना में कम संख्या में छात्रों के मध्याह्न भोजन मिलने पर संज्ञान लेते हुए इन राज्यों से ऐसी कोई व्यवस्था तैयार करने को कहा जिससे अधिक संख्या में नामांकित छात्रों को इस कार्यक्रम के दायरे में लाया जा सके।
वहीं, मध्याह्न भोजन उपलब्ध कराने को लेकर पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, केरल, मध्यप्रदेश सरकार के आंकड़ों पर केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने सवाल भी उठाया है। मंत्रालय ने इन राज्यों से आंकड़ों की प्रमाणिकता की जांच करने और विसंगतियां दूर करने के लिए सुधारात्मक कदम उठाने को कहा है।
कर्नाटक में दाखिले की तुलना में मध्याह्न भोजन प्राप्त करने वाले छात्रों का औसत प्रतिशत प्राथमिक कक्षा के स्तर पर 95 प्रतिशत और उच्च प्राथमिक स्तर पर भी 95 प्रतिशत दर्ज किया गया।
इस पर, स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के सचिव ने कहा कि कर्नाटक के सभी जिलों में 95 प्रतिशत का कवरेज असंगत एवं त्रुटिपूर्ण लग रहा है। उन्होंने राज्य सरकार से इन विसंगतियों पर ध्यान देने और उपयुक्त उपचारात्मक कदम उठाने का सुझाव दिया है।
दस्तावेज के अनुसार, मध्यप्रदेश में दाखिले की तुलना में मध्याह्न भोजन प्राप्त करने वाले छात्रों का औसत प्रतिशत प्राथमिक कक्षा के स्तर पर 68.78 प्रतिशत और उच्च प्राथमिक कक्षा के स्तर पर 68.86 प्रतिशत दर्ज किया गया। राज्य में नामांकन की तुलना में औसतन कुल 68.81 प्रतिशत छात्रों ने मध्याह्न भोजन प्राप्त किया।
स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के सचिव ने कहा कि राज्य में अनेक जिलों में एक समान कवरेज 65 प्रतिशत सामने आना कृत्रिम और असंगत लग रहा है। उन्होंने राज्य सरकार को इन विसंगतियों पर ध्यान देने और उपयुक्त उपचारात्मक कदम उठाने का सुझाव दिया है।
इसी प्रकार, केरल में पीएबी ने पाया कि राज्य सरकार ने दाखिला लेने वाले पंजीकृत छात्रों में से प्राथमिक कक्षा के स्तर पर 99 प्रतिशत के मध्याह्न भोजन मिलने और उच्च प्राथमिक स्तर पर 95 प्रतिशत छात्रों के कवरेज की बात कही है जो काफी अधिक है।
पीएबी ने सुझाव दिया है कि राज्य सरकार आंकड़ों की प्रमाणिकता की जांच के लिए विशेष कदम उठाए और इस बारे में की गई कार्रवाई को लेकर रिपोर्ट पेश करे।
वहीं, बैठक में पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा पेश आंकड़े में बताया गया कि दाखिले की तुलना में मध्याह्न भोजन प्राप्त करने वाले छात्रों का औसत प्रतिशत प्राथमिक कक्षा के स्तर पर 97 प्रतिशत और उच्च प्राथमिक स्तर पर 96 प्रतिशत रहा। इस प्रकार से कुल कवरेज 96 प्रतिशत रहा।
पीएबी ने पाया कि मध्याह्न भोजन प्राप्त करने वाले छात्रों के आंकड़े को बढ़ाचढ़ा कर पेश किया गया प्रतीत होता है। राज्य ने शिक्षा मंत्रालय को पेश की गई योजना में 1.16 करोड़ छात्रों की संख्या पेश की जबकि जिलों की तिमाही प्रगति रिपोर्ट (क्यूपीआर) में वर्ष 2022-23 की पहली तीन तिमाही में कवरेज केवल 1.01 करोड़ ही था।
इसमें कहा गया है कि इस प्रकार से जिलों की तिमाही प्रगति रिपोर्ट (क्यूपीआर) की तुलना में योजना में दर्शाये गए आंकड़ों में 14.80 लाख बच्चे अधिक थे, यह बहुत गंभीर मुद्दा है।
पीएबी ने 13वीं ‘संयुक्त समीक्षा मिशन’ (जेआरएम) की कुछ बातों पर चिंता व्यक्त की थी। मिशन ने 30 जनवरी से सात फरवरी 2023 के दौरान पश्चिम बंगाल के आठ जिलों का दौरा किया था।
राज्य की वार्षिक कार्य योजना एवं बजट (एडब्ल्यूपी एंड बी) में दावा किया गया कि वर्ष 2022-23 के दौरान 1.21 करोड़ पंजीकृत छात्रों में से 1.16 करोड़ छात्रों को इसके दायरे में लाया गया जो कुल संख्या का 96 प्रतिशत बनता है और वर्ष 2023-24 के लिए इतनी ही संख्या में छात्रों का प्रस्ताव किया गया।
दस्तावेज के अनुसार, पीएबी ने पाया कि ये दावे सही नहीं है क्योंकि जिला स्तरीय तिमाही प्रगति रिपोर्ट से यह प्रदर्शित होता है कि 1.01 करोड़ छात्र इसके दायरे में आए जो कुल पंजीकृत छात्रों का 84 प्रतिशत है और यह राज्य के दावे में 12 प्रतिशत की कमी को प्रदर्शित करता है।
शिक्षा मंत्रालय ने राज्य से उठाये गए सुधारात्मक कदमों के बारे में तथ्यों के आधार पर समग्र प्रतिक्रिया पेश करने का सुझाव दिया गया है।