अमेरिका के जाने के बाद चुका रहे कीमत
पाकिस्तानी सेना के पूर्व ब्रिगेडियर एवं वरिष्ठ सुरक्षा विश्लेषक महमूद शाह ने कहा, ‘‘1980 के दशक में अफगानिस्तान से रूस से हटने के बाद अमेरिकियों ने मुजाहिदीन को छोड़ दिया, अमेरिकियों ने हमें भी छोड़ दिया और तब से हम इसकी कीमत चुका रहे हैं।’’ सत्ता की लड़ाई के लिए मुजाहिदीन ने अफगानिस्तान को गृह युद्ध में झोंक दिया। इस बीच पेशावर और एक अन्य पाकिस्तानी शहर क्वेटा में अफगान तालिबान ने पाकिस्तानी सरकार के समर्थन से अपने पैर पसारने शुरू कर दिए। आखिरकार 1990 के दशक के अंत में तालिबान ने अफगानिस्तान में सत्ता अपने हाथ में ली, जब तक कि अमेरिका में अल-कायदा के 9/11 के हमलों के बाद 2001 में अमेरिकी नेतृत्व ने उसे खदेड़ नहीं दिया।
पेशावर हुआ हमलों का शिकार
अफगानिस्तान में तालिबान विद्रोह के खिलाफ करीब 20 वर्ष तक अमेरिकी बलों की देश में मौजूदगी तक सीमा पर और पेशावर के आसपास पाकिस्तान के कबायली क्षेत्रों में आतंकवादी संगठन फले-फूले। सरकार विरोधी संगठन पाकिस्तानी तालिबान या तहरीक-ए तालिबान-पाकिस्तानी (टीटीपी) ने 2000 दशक के अंत और 2010 की शुरुआत में देशभर में क्रूर हिंसक गतिविधियों को अंजाम दिया। पेशावर 2014 में भी एक भयावह हमले से दहला, जब सेना द्वारा संचालित एक स्कूल पर टीटीपी के हमले में करीब 150 लोग मारे गए, जिनमें अधिकतर स्कूली बच्चे थे। पेशावर की भौगोलिक स्थित ने उसे मध्य एशिया और भारतीय उपमहाद्वीप के बीच एक महत्वपूर्ण क्षेत्र बना दिया है। एशिया के सबसे पुराने शहरों में से एक पेशावर खैबर दर्रे के प्रवेश द्वार पर स्थित है, जो दो क्षेत्रों के बीच का मुख्य मार्ग है। शाह ने कहा, ‘‘ अगर हमें पाकिस्तान में शांति चाहिए तो, हमें अफगान तालिबान की मदद से टीटीपी से बात करनी चाहिए। हिंसा से बचने का यह सबसे सही व व्यवहार्य समाधान है।