जनधन खातों की संख्या 50 करोड़ के पार, प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- यह अहम पड़ाव है

नयी दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा जन धन, आधार और मोबाइल फोन ने वित्तीय लेन-देन में क्रांति ला दी है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा हम कृत्रिम मेघा आधारित अनुवाद मंच भाषिणी तैयार कर रहे हैं, यह भारत की विविध भाषाओं के डिजिटल समावेश को सहयोग देगा। भारत का डिजिटल सार्वजनिक आधारभूत ढांचा वैश्विक चुनौतियों के लिए सुरक्षित और समावेशी समाधान पेश करता है। इसे भी पढ़ें: G20 Digital Economy Ministers Meeting | प्राचीन परंपराओं से लेकर आधुनिक तकनीक तक भारत में सब कुछ है, जी20 मीटिंग में बोले पीएम मोदी  जनधन खातों की संख्या 50 करोड़ के पारप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनधन खातों की संख्या 50 करोड़ के पार पहुंचने को एक अहम पड़ाव करार दिया और इस उपलब्धि की सराहना की।
प्रधानमंत्री ने शनिवार को सोशल मीडिया मंच एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, यह देखकर खुशी हुई कि इनमें से आधे से अधिक खाते महिलाओं के हैं।
केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने शुक्रवार को कहा था कि देश में जनधन खातों की कुल संख्या 50 करोड़ के आंकड़े को पार कर गई है, जिनमें से 56 फीसदी खाते महिलाओं के हैं।इसे भी पढ़ें: ब्राजील में आठ जनवरी को हुए दंगों के मामले में सात वरिष्ठ सैन्य पुलिस अधिकारी गिरफ्तार 
प्रधानमंत्री मोदी ने कहा- 67 फीसदी खाते ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में खोले गए हैंमंत्रालय ने एक बयान में कहा कि इनमें से लगभग 67 फीसदी खाते ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में खोले गए हैं।
इस उपलब्धि को एक अहम पड़ाव करार देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, यह देखकर खुशी हो रही है कि इनमें से आधे से अधिक खाते हमारी नारी शक्ति के हैं। 67 फीसदी खाते ग्रामीण और अर्ध-शहरी क्षेत्रों में खोले गए हैं। हम यह भी सुनिश्चित कर रहे हैं कि वित्तीय समावेश का लाभ हमारे देश के हर कोने तक पहुंचे। जनधन खातों में कुल जमा राशि 2.03 लाख करोड़ रुपये से अधिक है वित्त मंत्रालय की ओर से जारी बयान के मुताबिक, जनधन खातों में कुल जमा राशि 2.03 लाख करोड़ रुपये से अधिक है, जबकि इन खातों के साथ लगभग 34 करोड़ रुपे कार्ड मुफ्त जारी किए गए हैं।
मोदी सरकार ने 2014 में वित्तीय समावेश को बढ़ावा देने के लिए जनधन बैंक खाते खोलने के वास्ते बड़े पैमाने पर राष्ट्रव्यापी अभियान प्रारंभ किया था, जिसका उद्देश्य प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) सहित कई वित्तीय सेवाओं को गरीबों के लिए सुलभ बनाना था।