नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने आबकारी नीति कथित घोटाले से संबंधित मामलों में आम आदमी पार्टी के नेता मनीष सिसोदिया को जमानत देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा है कि नकदी बरामद न होना प्रथम दृष्टया इस बात का सबूत नहीं हो सकता कि कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ है क्योंकि अपराधी अपराध के लिए नई तकनीकों का इस्तेमाल कर सकता है ताकि कोई सुराग बाकी न रहे। उच्च न्यायालय ने कहा कि वह जांच के दौरान दर्ज किए गए कुछ हवाला डीलरों और अन्य गवाहों के बयानों के मद्देनजर सिसोदिया की इस दलील को स्वीकार नहीं कर सकता कि उनके पास से नकदी बरामद नहीं हुई। न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने कथित आबकारी घोटाले के संबंध में क्रमशः सीबीआई और ईडी द्वारा दर्ज भ्रष्टाचार व धन शोधन मामलों में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री सिसोदिया की जमानत याचिका खारिज कर दी। दोनों याचिकाएं मंगलवार को खारिज कर दी गई थीं, लेकिन विस्तृत आदेश बुधवार को उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर डाला गया। उच्च न्यायालय ने कहा, ‘इस अदालत का मानना है कि अभियोजन पक्ष ने मनीष सिसोदिया के खिलाफ पीएमएलए की धारा 3 के तहत धनशोधन का मामला बनाया है। ध्यान दिया जाना चाहिए कि कई आरोपियों की मिलीभगत वाली साजिश का हिस्सा होने के आरोपी व्यक्ति के पास से नकदी बरामद होना धनशोधन मामले में अनिवार्य आवश्यकता नहीं है।’कोर्ट ने क्या कहा? उच्च न्यायालय ने कहा, ‘इस अदालत की राय में, नकदी बरामद न होना प्रथम दृष्टया इस बात का प्रमाण नहीं हो सकता है कि कोई भ्रष्टाचार नहीं हुआ है क्योंकि अपराधी अपराध करने के लिए नयी तकनीक का उपयोग करता है ताकि अपराध का कोई सुराग बाकी न रहे।’ सिसोदिया ने अधीनस्थ न्यायालय के 30 अप्रैल के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें 2021-2022 के लिए आबकारी नीति के निर्माण व कार्यान्वयन में कथित अनियमितताओं के संबंध में सीबीआई और ईडी द्वारा दर्ज क्रमशः भ्रष्टाचार और धन शोधन मामलों में उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी गई थी। सीबीआई ने आबकारी “घोटाले” में 26 फरवरी, 2023 को सिसोदिया को गिरफ्तार किया था। ईडी ने उन्हें नौ मार्च, 2023 को सीबीआई की प्राथमिकी से जुड़े धनशोधन मामले में गिरफ्तार किया था। उन्होंने 28 फरवरी, 2023 को दिल्ली कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था।