पटना: मुख्यमंत्री () की राजनीति की थाती रही है सिर्फ तीन शब्द। क्राइम ,करप्शन और कम्युनलिज्म। और जब कभी अपनी कमीज को ज्यादा सफेद साबित करना होता है तो इस कोशिश में विपक्ष क्या अपने गठबंधन के साथी के दागदार चेहरे को भी नीतीश कुमार दिखाते रहे हैं। और जब यह प्रक्रिया बार-बार रिपीट हो होती है तो समय गवाह रहा है यह नीतीश कुमार के पलटी मारने के फार्मूले की शुरुआत साबित हुई है। यह नीतीश कुमार का गठबंधन के साथियों पर दबाव की राजनीति से अक्सर प्रेरित रहता है।लालू के सामने आलोचना क्यों कर गए नीतीश?बिहार की राजनीति में आलोचना के जरिए अपने गठबंधन दल के साथियों को उनकी जमीन दिखाने का मौका 15 अगस्त को दिखा। यह वह समय था जब स्वंतत्रता दिवस पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सूबे के लोगों को संबोधित करते हुए विकास का पहाड़ा पढ़ रहे थे। इस विकास के व्याख्यान में नीतीश कुमार समालोचना करते-करते कुछ ऐसे उदाहरण दे गए जो कहीं न कहीं आरजेपी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के कार्यकाल को कठघरे में खड़ा कर गया। बखान करते-करते नीतीश कुमार कह गए कि बिहार में लालू-राबड़ी राज में विकास रुक गया था। जानिए नीतीश ने क्या कहा?नीतीश कुमार अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाते हुए संबोधन के दौरान बताया कि कैसे बिहार में साल 2005 के बाद महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में काम हुआ है। पुलिस सेवा में महिलाओं को 30 फीसदी का आरक्षण देकर आगे बढ़ाया। इसी का नतीजा है कि महिलाएं बिहार के विकास में अपना योगदान कर रही हैं। उन्होंने जीविका योजना का जिक्र करते हुए कहा कि महिलाएं आज सशक्त हुई हैं। इसमें जीविका योजना की अहम भूमिका रही है। पहले महिलाएं घर से बाहर नहीं निकलती थी लेकिन अब हर क्षेत्र में बिहार की महिलाएं आगे बढ़ती दिख रही हैं। जब नीतीश कुमार अपनी उपलब्धियां बताते अपरोक्ष रूप से आरजेडी सरकार की आलोचना कर रहे थे तब राजद सुप्रीमो और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव वहीं मौजूद थे। नीतीश के इस दांव ये है असल वजहदरअसल ऐसा करने के पीछे नीतीश कुमार का मकसद आम आवाम को यह बताना रहता है कि हम किसी दबाव से गठबंधन में नहीं है। आरजेडी के साथ गठबंधन है तो क्राइम और करप्शन से समझौता नहीं है। विकास की जिस नीति पर वो टिके रहे हैं और सबसे ज्यादा वर्षों तक सीएम रहे हैं उसकी बागडोर ढीली नहीं पड़ी है। ऐसा इसलिए कि उनकी इमेज पर कोई खरोंच नहीं आए।बीजेपी को भी घेरते रहे हैं नीतीशनीतीश कुमार जब एनडीए के नेतृत्व वाली सरकार के मुखिया हुआ करते तब भी वे यह बताने में थोड़ा भी नहीं सकुचाते कि सब कुछ मेरे नियंत्रण में है। गाहे-बगाहे वो बीजेपी को जब घेरना होता तो मुस्लिम तुष्टिकरण, विशेष राज्य का दर्जा और जनगणना पर घेरने का काम करते। कभी-कभी तो करप्शन के मुद्दे को भी बीजेपी के सामने रख कर भाजपा को डिमोरेलाइज करते रहे हैं। इसी फार्मूले के तहत अक्सर वे अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के बरक्स नरेंद्र मोदी और अमित शाह का चेहरा उजागर करते रहे। बेहतर साबित करने के टूल्स हैं क्राइम, करप्शन और कम्युनलिज्मराजनीतिक गलियारों में यह अक्सर चर्चा होती है कि अपने पूरे राजनीतिक कैरियर में नीतीश कुमार ने सबसे ज्यादा क्राइम, करप्शन और कम्युनलिज्म का इस्तेमाल किया है। ये शब्द उनके लिए एक पटरी की तरह है। जब आरजेडी के साथ राजनीति करना चाहते हैं तो कम्युनलिज्म का सहारा लेकर आरजेडीय की पटरी पर जेडीयू की गाड़ी दौड़ा लेते हैं। वहीं जब बीजेपी के साथ रहते थे तो क्राइम और करप्शन की पार्टी पर दौड़ा कर बीजेपी के संग हो जाता हैं। ऐसा दो-दो बार हुआ जब बीजेपी को छोड़ आरजेडी के साथ गए और दो बार आरजेडी को छोड़ बीजेपी साथ आए थे।क्या कहते हैं राजनीतिक विश्लेषक?राजनीतिक विश्लेषक राकेश प्रवीर कहते हैं कि नीतीश कुमार राजनीति में मौकापरस्त हैं। वे हमेशा अपनी सुविधा की राजनीति के साथ तर्क गढ़ते हैं। अगर कुछ विशेष परिस्थिति उत्पन्न हो जाए तो पल्ला झाड़ने से भी कोताही नहीं करते। आश्चर्य तो यह है कि एक तरफ जेडीयू लगातार बीजेपी को आरजेडी के विरुद्ध कागजात भी उपलब्ध कराता रहा है। यही नहीं बाद में उसी के साथ सरकार में शामिल भी हो गए। ऐसा दो बार हुआ। मेरे हिसाब से नीतीश कुमार मौकापरस्त राजनीति के तहत सत्ता समीकरण बनाते रहते हैं।