मगध सम्राट जरासंध के बारे में जानिए सबकुछ
नालंदा के राजगीर में मौजूद महाभारत कालीन मगध सम्राट जरासंध का अखाड़ा ऐतिहासिक है। इसी अखाड़े में जरासंध और भीम के बीच 13 दिन तक लगातार मल्ल युद्ध चला था। 14वें दिन जरासंध पराजित हुए। कहा जाता है कि इस मल्लयुद्ध की भूमि को दूध, हल्दी चंदन और घी से हर दिन पटवन किया जाता था। उजले रंग की जो मिट्टी वहां मौजूद है वह दूध और जो पीले रंग की मिट्टी है उसे हल्दी चंदन और घी से देखरेख की जाती था। योद्धा जब मल्ल युद्ध में उतरते थे, उसी मिट्टी को अपने बदन में लगाकर उतरते थे। राजगीर के लोगों की मानें तो ऐसी मिट्टी सिर्फ यहीं है।
कृष्ण के मामा कंस के ससुर थे जरासंध
मगध सम्राट जरासंध राजा बृहद्रथ के पुत्र थे। इनके पास सबसे विशाल सेना थी और वह बेहद क्रूर-अत्याचारी भी था। जरासंध कृष्ण के मामा कंस के ससुर थे। कंस ने उसकी दो पुत्रियों ‘अस्ति’ और ‘प्राप्ति’ से विवाह किया था। जरासंध के जन्म से जुड़ी अनूठी कहानी प्रचलित है। कहा जाता है कि मगध के सम्राट बृहद्रथ की दो पत्नियां थीं। दोनों से कोई संतान नहीं हुई तो एक दिन वे महात्मा चण्डकौशिक के पास गए। चण्डकौशिक ने एक फल देकर कहा कि इसे पत्नी को खिला देंगे तो संतान प्राप्त हो जाएगी।
ऐसे हुआ जरासंध का जन्म
ऐसा कहा जाता है कि राजा बृहद्रथ ने फल काटा और दोनों ही पत्नियों को खिला दिया। फल लेते समय राजा यह पूछना भूल गए कि उसे दोनों पत्नियों को खिलाना था या एक को। इधर फल खाने से दोनों पत्नियां गर्भवती हो गईं, लेकिन शिशु जन्मा तो वह आधा-आधा था, यानी आधा पहली रानी के गर्भ से और आधा दूसरी रानी से। डर के मारे दोनों रानियों ने शिशु के दोनों जीवित टुकड़े को फिंकवा दिए। तभी वहां से एक राक्षसी गुजरी, जिसने जीवित शिशु के दो टुकड़े देखकर अपनी माया से उन्हें जोड़ दिया। इससे शिशु एक हो गया और तेज आवाज में रोने लगा।
जरासंध को कोई हरा नहीं सकता था
जैसे ही बच्चे के रोने की आवाज आई तो उसे सुनकर रानियां बाहर निकलीं और राक्षसी के हाथ में बालक को देखकर हैरान रह गईं। एक रानी ने बच्चे को गोद में ले लिया, तभी वहां राजा बृहद्रथ आ गए। उन्होंने राक्षसी से परिचय पूछा तो उसने सारी बात बताई। राक्षसी ने अपना नाम जरा बताया, इससे खुश होकर राजा ने बालक का नाम उसके नाम पर ही जरासंध रख दिया। जरासंध इतने बलवान थे कि वह युद्ध में हारते नहीं थे। उन्हें मल्ल युद्ध या द्वंद्व युद्ध लड़ने का शौक था।
जब कृष्ण के इशारे पर भीम ने किया जरासंध का अंत
बाद में भगवान श्रीकृष्ण ने जरासंध के वध की योजना बनाई। भीम और अर्जुन ब्राह्मण के साथ तपस्वी के वेष में जरासंध के पास पहुंचे और कुश्ती के लिए ललकारा। फिर जरासंध और भीम के बीच 13 दिनों तक लगातार मल्ल युद्ध चला। इस दौरान भीम ने जरासंध को जांघ से उखाड़कर कई बार दो टुकड़े कर दिए, लेकिन हर बार जुड़कर वह फिर जिंदा हो जाता और फिर से भीम पर टूट पड़ता। भीम थककर बेदम हो गए तो 14वें दिन कृष्ण ने एक तिनके को बीच से तोड़कर दोनों भाग विपरीत दिशाओं में फेंक दिया। भीम यह इशारा समझ गए और उन्होंने जरासंध के शरीर का दो टुकड़ा किया तो एक टुकड़ा एक दिशा में और दूसरा विपरीत दिशा में फेंक दिया। इसके चलते वह जुड़ नहीं पाया और उसका अंत हो गया।
पास में है जरादेवी मंदिर
जिस जरा नामक राक्षसी ने जरासंध को जोड़कर जीवनदान दिया था। उनका मंदिर भी उनके अखाड़ा से पहले बना हुआ है। यहां लोग पूजा अर्चना करने आते हैं। लोगों में इनके प्रति ऐसी आस्था है कि भगवान की तरह पूजते हैं। यह स्थल जरादेवी मंदिर के नाम से जाना जाता है।