बिहार की ‘यात्रा’ पर फिर निकलेंगे नीतीश, खुद को दबाव से मुक्त करेंगे या मीडिया का मूड बदलेंगे?

पटना: राजनीतिक सामाजिक यात्राओं के बादशाह अगर कोई है तो वे हैं नीतीश कुमार। कोई संशय रहा या अनिर्णय की स्थितियां रही या फिर कोई दबाव में हों या मूल्यांकन के आग्रही जब कभी रहे नीतीश कुमार तो यात्रा पर निकल पड़े। यादाश्त गर ठीक है तो अबतक कुल 16 यात्राएं निकाल चुके हैं। मसलन 2005 में न्याय यात्रा, 2009 जनवरी में विकास यात्रा, जून 2009 में धन्यवाद यात्रा, सितंबर 2009 में प्रवास यात्रा, अप्रैल 2010 में विश्वास यात्रा, 9 नवंबर 2011 में यात्रा, सितंबर 2012 में अधिकार यात्रा, मार्च 2014 में संकल्प यात्रा, नवंबर 2014 मे संपर्क यात्रा, नवंबर 2016 में निश्चय यात्रा, दिसंबर 2017 में समीक्षा यात्रा, दिसंबर 2019 में जल-जीवन-हरियाली यात्रा, 2021 में समाज सुधार यात्रा और फिर एक यात्रा की शुरुआत आखिर क्यों?

राजनीतिक गलियारों में तैर रहे सवाल

दरअसल, प्रश्न तैर रहे हैं तो इसके कारण भी हैं। अभी तो महागठबंधन के साथ सरकार बने चंद माह हुए हैं। ऐसे में क्या अविश्वास जैसा कुछ है, जो विश्वास यात्रा पर निकलेंगे। कोई चुनाव भी नहीं है कि अधिकार यात्रा। चुनाव जीते भी दो साल से ज्यादा हो गए, इसलिए धन्यवाद यात्रा का समय भी नहीं। तो यात्रा के पीछे मकसद क्या है? अब तो राजद की तरफ से भी नीतीश कुमार के उस बयान पर साथ मिल गया, जिसमें उन्होंने तेजस्वी यादव के लिए 2025 के विधानसभा का नेतृत्वकर्ता या यूं कह लें अगला चुनाव तेजस्वी के नेतृत्व में। यानी ये कि तेजस्वी यादव पहले मैंडेट पाएं फिर गद्दी संभाले।

महागठबंधन के साथ जाने का आकलन करेंगे नीतीश?

फिलहाल कुछ नया हुआ है, वो है अक्टूबर माह में भाजपा को छोड़ राजद के साथ जाना। जबकि वे ये भी जानते हैं कि उन्हें मैंडेट भाजपा के साथ सरकार बनाने को मिला था। राजनीतिक गलियारों में इस जनमत का अपमान कहा गया था। ये जनता के मन-मिजाज पर चढ़ भी गया, ऐसा दिखता है। राज्य में हुए तीन उपचुनावों में उनका (नीतीश कुमार) आधार वोट उनसे दूर होते दिखा। हालांकि, मोकामा में अनंत सिंह की पत्नी जीतीं। मगर ये जीत अनंत सिंह की करार दी गई। तो इसके मद्देनजर अपने आधार वोटरों को समझाने निकलेंगे नीतीश?

दूसरी बात ये हो सकती है कि एक बार फिर वे राजद के साथ सरकार बनाकर असहज तो नहीं हैं? ऐसा इसलिए भी कि लगातार उन पर सीएम के पद को छोड़ने का दबाव बनाया जा रहा है। अब वे इस दबाव से मुक्त होने या जनता से सत्ता परिवर्तन पर रायशुमारी के लिए निकलें?

शराबबंदी की असफलता-सफलता की कहानी समझेंगे?

तो फिलहाल यात्रा की वजह शराबबंदी की असफलता तो नहीं? इस मुद्दे पर दबाव झेल रहे नीतीश कुमार सीधे-सीधे जनता के बीच शराबबंदी पर जनमत का संग्रह करेंगे? ऐसा इसलिए भी कि तमाम विरोध के बावजूद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस बात पर अड़े हैं कि जो शराब पिएगा वो मरेगा। उसे मुआवजा किसी भी हाल में नहीं। सो, सीधे जनता के बीच जाकर फीडबैक लेने जा रहे हैं नीतीश कुमार? ताकि विपक्ष की ओर से लगातार शराबबंदी की समीक्षा करने के दबाव से वे मुक्त हो सकें और आधी-आबादी का सच भी जान सकें कि उन्हें शराबबंदी चाहिए या नहीं?

मीडिया के साथ विपक्ष का ध्यान हटाने के लिए ये यात्रा?

इन दिनों नीतीश कुमार शराबबंदी पर मीडिया की धार पर लगातार चढ़े हैं। विपक्ष तो उनकी असफलता को जनता के बीच ले ही जा रहा है। वहीं, मीडिया भी शराबबंदी को लेकर थोड़ी तल्ख है। लगातार पुलिस-प्रशासन को कठघरे में खड़ा करने में लगी है। या फिर इधर नीतीश कुमार ऐसा कुछ नहीं कर पा रहे हैं जो उनका यूएसपी तय कर जाए। मसलन, बालिका पोशाक योजना, पंचायत चुनाव में महिलाओं को आरक्षण या फिर समाज सुधार के लिए शराबबंदी, दहेज प्रथा और बाल विवाह को लेकर भी कदम उठाया था। क्या इसलिए भी कुछ नया नहीं करने के कारण जनता के बीच जाने का निर्णय नीतीश कुमार ने किया?

क्या चल रहा है नीतीश कुमार के आसपास?

जदयू के सूत्र बताते हैं कि खरमास के बाद नीतीश कुमार बिहार की यात्रा पर निकलेंगे और जनता से सीधे संवाद करेंगे। वर्तमान सरकार पर सहमति-असहमति जानेंगे। जनता इसे मैंडेट का अपमान मानती है या समय की मांग? एक बात ये भी निकल कर आ रही है कि छपरा में हुए जहरीली शराबकांड के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार लोगों में जागरूकता फैलाने के लिए यात्रा पर निकलने वाले हैं। इस दौरान शराबबंदी सफल बनाने को लेकर वे जोरदार तरीके से लोगों के बीच अपील करेंगे। फिलहाल यात्रा को लेकर तैयारी की जा रही है। रूट पर कार्य हो रहा है। इसका पूरा रोडमैप बनाया जा रहा है। हालांकि ये अभी बिल्कुल शुरुआती दौर में है।

नीतीश की यात्रा को लेकर क्या कहती है बीजेपी?

भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल कहते हैं कि उनकी यात्रा के कई उद्देश्य होते रहे हैं। 2013 में उन्होंने भाजपा से नाता तोड़ा था, तब वे एक ऐसी ही यात्रा कर राजधानी पटना पहुंचे थे। तब यात्रा के दौरान खगड़िया में उन पर हमला भी किया गया था। इस बार का उनका उद्देश्य क्या है, ये तो वही बताएंगे। लेकिन इतना तो तय है कि जनता के मनोभाव को परखेंगे तो उन्हें इस इल्जाम को सुनना होगा कि मैंडेट का अपमान किया है। राजद के साथ असहज गठबंधन है। अगर शराबबंदी की असफलता से मुंह छिपाने के लिए निकले हैं तो कुछ नया हासिल नहीं होगा।