पटना: नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़ कर एनडीए की सरकार बनाई। महागठबंधन का नेतृत्व करने वाले आरजेडी के नेता लालू यादव और तेजस्वी को यह बात चुभनी चाहिए थी। चुभी भी होगी, पर वे इसका इजहार करने से बच रहे हैं। उन्हें नीतीश कुमार पर हमलावर होना चाहिए था। कुछ हद तक वे हमलावर हैं भी। पर, उस तेवर में नहीं, जैसा ऐसी स्थिति में होना चाहिए। एनडीए का सीएम बनने पर तेजस्वी यादव ने नीतीश को शुभकामनाएं दीं। स्पीकर पद पर नंद किशोर यादव बैठे तो तेजस्वी ने उनके पैर छुए। विधानसभा में तेजस्वी ने नीतीश पर हमले तो किए, लेकिन शालीनता की दिव्य मिसाल उन्होंने कायम की। लालू यादव भी पहले जैसे ही उनसे मिले। उन्होंने तो यहां तक कह दिया कि नीतीश के लिए महागठबंधन का दरवाजा बंद नहीं हुआ है। इसके बावजूद नीतीश कुमार के मन में आरजेडी नेताओं के प्रति न जाने ऐसा कौन-सा गुस्सा या टीस है, जो वे उसकी खाट खड़ी करने में तनिक भी कोताही नहीं कर रहे।खास इशारे पर चल रहे हैं नीतीशसवाल उठता है कि जब इतनी भद्रता और शालीनता आरजेडी के नेता दिखा रहे हैं तो नीतीश उनके पीछे हाथ धोकर क्यों पड़े हैं। क्या भाजपा के इशारे पर वे ऐसा कर रहे हैं। यह बात सभी जानते हैं कि भाजपा को बिहार में किसी से खतरा है तो वह है आरजेडी। आरजेडी व्यावहारिक तौर पर पारिवारिक पार्टी है। लालू यादव के परिवार के हाथ में ही आरजेडी की कमान है। आरजेडी का आरोप भी है कि केंद्रीय एजेंसियां लालू परिवार के लोगों को इसलिए तंग-तबाह करती हैं कि उनकी राजनीति खत्म हो जाए। लालू परिवार की राजनीति खत्म होने का सीधा मतलब है कि आरजेडी का अस्तित्व खत्म हो जाना। भाजपा को यह भी मालूम है कि लालू के जेल जाने के बाद किस तरह आरजेडी हाशिए पर चला गया था। वर्षों तक उसे सत्ता का स्वाद नहीं मिला। लालू यादव की सियासत पराभव की ओर है। तेजस्वी यादव सितारा बन कर उभर रहे हैं। भाजपा की पूरी कोशिश होगी कि किसी तरह तेजस्वी यादव को भी इतना उलझा दिया जाए कि उनकी पार्टी ही बिखर जाए।लालू परिवार से खुन्नस हैलालू यादव के परिवार से नीतीश की खुन्नस भी कम नहीं है। समय रहते वे नहीं चेतते तो उनकी कुर्सी तो खतरे में पड़ ही गई थी, जेडीयू का भी सफाया होना तय था। नीतीश ने एनडीए में वापसी भी अनायास नहीं की। जेडीयू विधायकों को तोड़ने की आरजेडी ने जिस तरह की व्यूह रचना की थी, उसे भेद पाना नीतीश के बूते की बात नहीं थी। ललन सिंह पर तोहमत लगी कि वे जेडीयू विधायकों को तोड़ने की साजिश रच रहे हैं। इसी सिलसिले में यह भी बात सामने आई कि दर्जन भर जेडीयू विधायकों की गोलबंदी भी हो रही है। भनक लगते ही नीतीश ने पहले ललन सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटाया और जिन विधायकों की गोलबंदी की सूचना थी, उनसे बारी-बारी बात की। किसी तरह जेडीयू बड़ी टूट से बचा।निशाने पर थे नीतीशआरजेडी पहली कोशिश में नाकाम हुआ तो नीतीश को सबक सिखाने का दूसरा रास्ता अपनाया। जेडीयू और बीजेपी के कुछ विधायकों से सांठगांठ कर आरजेडी ने फ्लोर टेस्ट में नीतीश को मात देने की योजना बनाई। उसे इस दिशा में काफी हद तक कामयाबी मिल भी गई थी। भाजपा के चुनावी चाणक्य अमित शाह ने अपनी बुद्धि नहीं भिड़ाई होती तो नीतीश कुमार सदन में बहुमत साबित नहीं कर पाते। अब जाकर नीतीश कुमार की तंद्रा टूटी। वे भी बदला लेने की फिराक में लग गए। पहले उन्होंने अपने ही विधायकों को दुरुस्त करने का काम किया। बीमा भारती के पति-बेटे की गिरफ्तारी नीतीश की उसी दिशा में बढ़ा एक कदम था। चेतन आनंद के अपहरण का मामला दर्ज कराना या दो विधायकों के लापता होने की प्राथमिकी जैसे कदम भाजपा की बुद्धि से ही नीतीश द्वारा उठाए कदम थे।मंत्रियों के विभागों की जांचमहागठबंधन का सीएम रहते नीतीश कुमार को इतना तो पता था ही कि आरजेडी कोटे के मंत्री कौन-सा गलत-सही काम कर रहे हैं। संभव है कि उन्हें इसकी भी भनक हो कि मंत्रियों ने ज्यादातर काम गलत किए हैं। इसलिए अब उन्होंने आरजेडी कोटे के पूर्व मंत्रियों के कामों की जांच के आदेश दिए हैं। भाजपा का भी इसके लिए दबाव था। आने वाले दिनों में पता चलेगा कि आरजेडी कोटे के किन-किन पूर्व मंत्रियों पर गाज किस रूप में गिरती है। आरजेडी को भी शायद इस बात का अंदाजा है। शायद यही वजह है कि तेजस्वी यादव अपने बोल-वचन और आचार-व्यवहार में अतिरिक्त शालीनता बरत रहे हैं। आरजेडी सुप्रीमो पूरब पश्चिम फिल्म के गाने की तर्ज पर नीतीश के लिए कह रहे हैं- जब कोई तेरा हृदय तोड़ दे, तड़पता हुआ जब कोई छोड़ दे, मेरा दर खुला है, खुला ही रहेगा तुम्हारे लिए।