पटना: बिहार में हाल के सियासी उठा-पटक के बाद अब दलों-गठबंधनों का ध्यान लोकसभा चुनाव पर आ गया है। बिहार में दो प्रमुख गठबंधन- इंडी अलायंस और एनडीए हैं। इनमें शामिल सभी दलों ने सीटों की दावेदारी अपने-अपने गठबंधन के आला नेताओं के सामने पेश कर दी है। बिहार में पहली बार एनडीए की कमान भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने अपने हाथ में रखी है। हर बार को बड़े भाई की भूमिका में होने का दावा करने वाला जेडीयू बैकफुट पर है। वह अब पूरी तरह भाजपा की मर्जी पर केंद्रित है।सीट बंटवारे का ये रहा है पुराना रिकॉर्डबिहार में लोकसभा चुनाव का रिकॉर्ड दशक भर से उल्लेखनीय रहा है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में जब 2014 का पहला लोकसभा चुनाव लड़ा गया तो एनडीए खेमे में तीन दल- लोजपा, आरएलएसपी और भाजपा एक साथ थे। दूसरी ओर बाकी दलों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। भाजपा ने 30 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे और उसे 22 सीटों पर कामयाबी मिली थी। एलजेपी ने सात सीटों पर लड़ कर छह सीटें जीत ली थीं। उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व वाली तत्कालीन आरएलएसपी ने तीन सीटों पर चुनाव लड़ा और तीनों ही जीत ली थी। सबसे बुरी हालत एनडीए विरोधी दलों की हुई, जिन्होंने अलग-अलग जोरआजमाइश की थी। जेडीयू ने 38 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे, लेकिन जीत सिर्फ दो सीटों पर ही मिली। कांग्रेस ने 12 पर भाग्य आजमाया तो कामयाबी दो पर ही मिली। आरजेडी ने 27 सीटों पर लड़ कर महज चार पर कामयाबी हासिल की। एनसीपी का इकलौता उम्मीदवार मैदान में था और वह जीत गया।2019 में बदल गया सियासी समीकरणवर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बिहार का सियासी समीकरण बदल गया। जेडीयू भी बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए में शामिल हो गया। हालांकि अधिक सीटों की मांग पर उपेंद्र कुशवाहा की आरएलएसपी ने अलग राह पकड़ ली। एनडीए में बीजेपी, जेडीयू और एलजेपी ही बच गए। नीतीश को बिहार में बड़ा भाई का दबाव बना कर जेडीयू ने बीजेपी के बराबर सीटें ले लीं। दोनों 17-17 सीटों पर चुनाव लड़े। भाजपा ने अपनी सभी सीटें जीत लीं, जबकि जेडीयू को 16 पर जीत मिली। एलजेपी ने अपने हिस्से की छह सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन उसने अपनी सभी सीटें निकाल लीं। महागठबंधन में आरजेडी का खाता ही नहीं खुला, जबकि कांग्रेस किसी तरह एक सीट जीतने में कामयाब हो गई। आरजेडी ने तब 20 और कांग्रेस ने नौ सीटों पर चुनाव लड़ा था। बाकी सीटें उसने अपने सहयोगियों के लिए छोड़ दी थी। एनडीए ने 39 सीटें जीत कर महागठबंधन की पार्टियों का सफाया कर दिया था।एनडीए में नीतीश को खुश करने के लिये बाहर वाला फॉर्मूला!भाजपा के दिल्ली में हुए मंथन कार्यक्रम में सीटों के बंटवारे पर विचार-विमर्श हुआ। बिहार की बात करें तो भाजपा ने एनडीए के सभी सहयोगी दलों को संतुष्ट करने का फॉर्मूला बना लिया है। भाजपा खेमे से जो जानकारी निकल कर सामने आई है, उसमें सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि जेडीयू को पिछली बार की तरह इस बार भी 16-17 सीटें तो मिलेंगी, लेकिन बिहार में 12-13 से अधिक सीटें नहीं दी जाएंगी। बाकी सीटें यूपी, झारखंड, नार्थ ईस्ट में देकर जेडीयू कोटे की संख्या पूरी की जाएगी। बिहार में एनडीए के सहयोगियों को मिलेंगी कितनी सीटें?एलजेपी के दोनों धड़ों ने भले ही अलग-अलग अपनी तैयारी की है, लेकिन दोनों को छह से अधिक सीटें भाजपा नहीं देगी। उपेंद्र कुशवाहा के लिए बीजेपी ने दो सीटों का प्रवाधान रखा है, लेकिन उन्होंने अधिक जिद की तो 2014 की तरह ही उन्हें तीन सीटों से संतोष करना पड़ेगा। जीतन राम मांझी की पार्टी हम (HAM) के लिए गया की एक सीट तो कन्फर्म है, पर जिद करने पर एक और सीट उन्हें मिल सकती है। बाकी बची सीटों पर भाजपा खुद लड़ेगी। यानी भाजपा अपनी 17 सीटें नहीं छोड़ने वाली है।