दरअसल इन्फोसिस नारायण मूर्ति का दूसरा वेंचर था। इससे पहले उन्होंने 1970 के दशक में पहला वेंचर शुरू किया था लेकिन यह आगे नहीं बढ़ पाया। इसके बाद उन्होंने पटनी कम्प्यूटर (Patni Computer) में भी नौकरी की लेकिन वहां उनका मन नहीं लगा। उन्होंने एक बार फिर कोशिश करने की सोची। लेकिन इसके लिए उनके पास पैसा नहीं था। नारायण मूर्ति का कहना है कि उनके लिए उनकी पत्नी सुधा मूर्ति सबसे बड़ी ताकत हैं। हर मुश्किल में वो उनके साथ खड़ी रहीं। इन्फोसिस के लिए उन्होंने अपनी पत्नी सुधा मूर्ति से 10 हजार रुपये उधार मांगे। एक इंटरव्यू में सुधा मूर्ति ने बताया कि कैसे उनके पति ने उन्हें पैसे देने के लिए मनाया।
मां की सीख
सुधा से जब पूछा गया कि 10 हजार रुपये देते समय क्या आपको इसे लेकर चिंतित नहीं थी, तो उन्होंने कहा, ‘जब मेरी शादी हुई तो मेरी मां ने मुझे सीख दी थी कि अपने पास कुछ पैसे रखने चाहिए और उनका इस्तेमाल केवल एमरजेंसी में करना चाहिए। इसका इस्तेमाल साड़ी, सोना या कुछ और खरीदने में नहीं होना चाहिए। इसे केवल एमरजेंसी में यूज करना है। मैं हर महीने मूर्ति और अपनी सैलरी में से कुछ पैसे अलग रखती थी। मूर्ति को इसकी जानकारी नहीं थी। ये पैसे में एक बॉक्स में रखती थी। इस बॉक्स में 10,250 रुपये थे।’
सुधा मूर्ति ने कहा, ‘मूर्ति ने सॉफ्टवेयर क्रांति के बारे में बताया। उन्होंने इतिहास का हवाला देते हुए कहा कि हम क्यों पिछड़ गए। जब मैंने उनसे पूछा कि इसमें क्या एमरजेंसी है तो उन्होंने कहा कि मेरा एक सपना है। यह पूरा होगा किया नहीं, मैं नहीं जानता। मैं जानती थी कि वह मेहनती आदमी हैं। अगर मैं यह पैसा नहीं देती को उन्हें ताउम्र इसका मलाल रहता। यह नाकामी से ज्यादा बदतर होता। अगर वह फेल होते तो फिर नौकरी कर लेते। लेकिन मुझे इसका जो मलाल होता वह ज्यादा बदतर होगा। इसलिए मैंने उन्हें केवल 10,000 रुपये दिए और 250 रुपये अपने पास रख लिए।’
तीन लाख से ज्यादा कर्मचारी
नारायण मूर्ति के साथ नंदन निलेकणी, एन एस राघवन, एस गोपालकृष्णन, एस डी शिबूलाल, के दिनेश और अशोक अरोड़ा इन्फोसिस के को-फाउंडर थे। ये सभी लोग पटनी कम्प्यूटर में साथ काम करते थे। इन लोगों ने सीमित संसाधनों के दम पर देश की सबसे सफल आईटी कंपनियों में से एक इन्फोसिस की नींव रखी। 31 मार्च, 2022 को इन्फोसिस का रेवेन्यू 16.3 अरब डॉलर था और इसमें 314,000 से अधिक कर्मचारी काम करते हैं। एक अगस्त 2014 को कंपनी ने सभी को चौंकाते हुए विशाल सिक्का को अपना सीईओ बनाया। पहली बार कंपनी का बागडोर किसी आउटसाइडर को सौंपी गई थी। हालांकि उनका कार्यकाल विवादों से भरा रहा और तीन साल बाद उन्होंने पद छोड़ दिया।