मॉस्को : पृथ्वी पर सबसे गहरे कृत्रिम छेद को ‘नरक का दरवाजा’ कहा जाता है। 40 हजार फीट से अधिक गहरे इस होल को खनिकों ने खोदा था। हम बात कर रहे हैं रूस के कोला सुपरडीप बोरहोल जिसका निर्माण सोवियत संघ ने कराया था। यह छेद एक साइंस प्रोजेक्ट का हिस्सा था। वैज्ञानिकों ने धरती में उस जगह तक खुदाई की जहां इससे पहले कोई नहीं पहुंचा था। वह जानना चाहते थे कि ‘हमारे पैरों के नीचे क्या है?’ लेकिन 12,200 मीटर की गहराई तक जाने के बाद वैज्ञानिकों ने इसकी खुदाई रोक दी थी।
1970 के दशक में मरमंस्क के पास इस होल की खुदाई शुरू हुई थी। दो दशकों के बाद इस छेद की गहराई 40,026 फुट तक पहुंच गई थी। 1992 में नीचे का तापमान वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी से कहीं ज्यादा, 180 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने के बाद ड्रिलिंग बंद कर दी गई। दावा किया जाता है कि उस होल से एक शोर रिकॉर्ड किया गया था जिसे ‘साउंड ऑफ हेल’ यानी ‘नरक की आवाज’ कहा गया।
डेलीस्टार की खबर के अनुसार, आज यह छेद सिर्फ जंग लगे धातु के एक ढक्कन से ढका हुआ है। वैज्ञानिकों ने होल में कई ऊष्मा प्रतिरोधी (Heat-Resistant) माइक्रोफोन का इस्तेमाल करके 17 सेकेंड के एक मेमो को रिकॉर्ड किया था। इस प्रोजेक्ट से हमें पता चला कि अगर वैज्ञानिक पृथ्वी के केंद्र की खोज करना जारी रखना चाहते हैं तो उन्हें तापमान की समस्याओं को दूर करने का कोई तरीका खोजना होगा।
विफल होने के बावजूद यह ड्रिलिंग बेकार नहीं थी और वैज्ञानिकों ने इससे कई महत्वपूर्व खोजें कीं। वैज्ञानिकों को खुदाई में 2.7 अरब साल पुरानी चट्टानें मिलीं। होल पर काम कर रहे वैज्ञानिकों के एक समूह को एक ऐसी जगह पर पानी मिला जहां माना जाता था कि क्रस्ट की मोटी परत है। वैज्ञानिक यह जानकर हैरान रह गए कि नीचे ठोस और सूखी चट्टानों के बजाय भारी मात्रा में पानी मौजूद है।