औरंगजेब के समय शिवलिंग को हटाने की लाख कोशिशें हुईं बेकार, आज मंदिर-दरगाह की एक दीवार

शुजालपुर जटाशंकर महादेव मंदिर जमधड नदी के किनारे शुजालपुर सिटी से 1 किलोमीटर दूर स्थित है. इस मंदिर को एक खासियत यह भी है कि यहाँ हिंदू- मुस्लिम एकता की मिसाल नजर आती है. मंदिर और शिवराज सिंह चौहान ने मंदिर के कायाकल्प व परिसर को प्रदेश का प्रमुख पर्यटन स्थल बनाने के लिए दो दरगाह एक ही दीवार से लगे हुए हैं. दोनों धर्म के स्थलों का पर्यटन परिपथ विकसित कर ग्रामीण पर्यटन लोग श्रद्धा से यहां पहुंचते हैं. मंदिर करीब 400 साल से रोजगार विस्तार के नवाचार को साकार करने की पहले बनाया गया था. वर्ष 2010 में मुख्यमंत्री योजना शासन को सौंपी है.
वहीं पास में स्थित दरगाह जो कि हजरत सय्यद जानपाक की है दरगाह करीब 400 साल पुरानी बताई जा रही है कहा जाता है कि मंदिर और दरगाह दोनों का निर्माण एक साथ हुआ था बरसों पुरानी याद आएगा अपने आप में एक ऐतिहासिक चीज है लोग बड़ी ही मनोकामना लेकर यहां पर आते हैं और दिल से हजरत सय्यद जानपाक बाबा से मन्नतें मांगते हैं कहा जाता है कि यहां पर जो भी मन्नत मांगते हैं वह पूरी होती है.
क्या है दरगाह का इतिहास
आप हिंदी में अकबर बादशाह के वक्त में लोगों की खिदमत करते थे और लोग उनसे अपनी बीमारियां और आपसी मामला तो के लिए दूर-दूर से मिलने आते थे. आपने अपनी खिदमत से लोगों का दिल जीता इसी वजह से आपको सैयद जानपाक वली रहमतुल्लाह अलेह का दर्जा हासिल हुआ. आपने खिदमत के लिए जब भारत के बंटवारे नहीं हुए थे तब मालवा हिंद में रहना पसंद किया. और आपने अपने विशाल के वक्त इस दुनिया ए फानी से जाते वक्त जमधड़ नदी के किनारे शुजालपुर में अपना स्थान जमी दोस्त किया. आज भी आप का मजार वहां मौजूद है, जहां सैकड़ों लोग अपनी परेशानियां और बीमारियां दूर करने के लिए दुआओं की दरखास्त के लिए आते हैं.
8 पीढ़ियां बाबा की खिदमत करती आ रही
खादिम अनवर बाबा ने बताया कि हमारी 8 पीढ़ियां बाबा की खिदमत करती चली आ रही है हमारे पास माधवराव सिंधिया के पूज्य पिताजी शिवाजी राव सिंधिया और उनके पिता जीवाजी राव सिंधिया जी सनद मौजूद है. करोड़ की घोषणा की थी, प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि पर या बताया जाता है कि मंदिर की स्थापना औरंगजेब भव्य मेला लगता है. वर्तमान में शासनकाल के पूर्व 16 वी शताब्दी में हुई थी.
क्या है निर्माण की कहानी
तप करते हुए समाधिस्थ हुए थे और उन्हों की समाधि पर यह मंदिर बनाया गया ऐसी भी मान्यता है कि उन्ही तपस्वी की जटाये खुदाई में निकली थी. करीब 10 साल पहले ब्रह्मचारी पंडित कृष्ण चैतन्य संस्कृत पाठशाला के प्रधान का पद व उड़ीसा निवासी परिवार को छोड़कर शुजालपुर आये. उन्होंने संस्कृत पाठशाला की शुरुआत की. दूर-दूर से विद्यार्थी यहाँ संस्कृत सीखने आते हैं. कुछ वर्ष पूर्व दिव्य ज्योति में लीन हुए कृष्ण चैतन्य जी को जमधड नदी के किनारे पंचतत्व में विलीन किया गया.
यहां औरंगजेब भी हारा
इतिहासकार रहे शांतिलाल अग्रवाल बताते थे कि औरंगजेब ने मंदिर की खुदाई करवाई थी, ताकि शिवलिंग को निकाला जा सके. हालांकि वह शिवलिंग को नहीं हटा सके, खुदाई के दौरान शिवलिंग का सिरा पाने के स्थान पर उनके हाथ केवल जटाएं लगी. तभी से स्थान जटाशंकर महादेव के नाम से जाना जाता है.