टाइप-1 डायब‍िटीज होने से रोकेगी दवा! जान‍िए पहली प्रिवेंटिव मेडिसिन कैसे करती है काम

नई दिल्‍ली: अमेरिकी दवा नियामक यूएसएफडीए ने टाइप-1 डायबिटीज के पहले प्रिवेंट‍िव ट्रीटमेंट को मंजूरी दी है। इस दवा को फार्मास्‍यूटिकल कंपनी प्रोवेंशनबायो और सनोफी ने बनाया है। इसका नाम है Tzield। इसे 8 साल और इससे ज्‍यादा उम्र के उन लोगों के लिए मंजूरी दी गई है जो बीमारी की स्‍टेज-2 में हैं। यह दवा टाइप-1 डायबिटीज होने से रोकती है। टाइप-1 डायबिटीज को ऑटोइम्यून रिऐक्‍शन माना जाता है। यह रिऐक्‍शन पैनक्रियाज (अग्‍नाशय) में उन कोशिकाओं को नष्ट कर देता है जो इंसुलिन बनाती हैं। इन्‍हें बीटा सेल्‍स कहा जाता है। यह प्रक्रिया लक्षण प्रकट होने से पहले महीनों या वर्षों तक चल सकती है। यह टाइप-2 डायबिटीज से अलग है। टाइप-2 डायबिटीज समय के साथ मुख्‍य रूप से लाइफस्‍टाइल के कारण डेवलप होती है। टाइप-1 डायबिटीज के लिए अब तक कोई प्रिवेंटिव ट्रीटमेंट नहीं था। बीते कुछ सालों में देश-दुनिया में डायबिटीज के मरीजों की संख्‍या तेजी से बढ़ी है। भारत को तो डायबिटीज कैपिटल तक कहते हैं। देश में 10 में से एक व्‍यक्ति को डायबिटीज ने चपेट में लिया हुआ है। अमेरिका का भी हाल बुरा है। अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन के अनुसार, अमेरिका में 2019 तक 19 लाख लोग टाइप-1 डायबिटीज से पीड़‍ित थे। इस तरह की डायबिटीज बचपन या किशोरावस्‍था में भी पकड़ लेती है। हालांकि, बड़े होने पर भी यह हो सकती है। ProventionBio और Sanofi ने इसके लिए Tzield नाम की दवा बनाई है। यह टाइप-1 डायबिटीज को बढ़ने से रोकती है। क्‍यों है उत्‍साहित करने वाला? एसोसिएशन के चीफ साइंटिफिक और मेडिकल ऑफिसर रॉबर्ट गैब्‍बे के मुताबिक, टाइप-1 डायबिटीज का अब तक कोई प्रिवेंटिव ट्रीटमेंट नहीं था। कम से कम अब टाइप-1 डायबिटीज को होने से कुछ समय के लिए टाला जा सकता है। यह बहुत उत्‍साहित करने वाला है। कैसे काम करती है दवा? दवा ऑटोइम्‍यून रेस्‍पॉन्‍स में हस्‍तक्षेप करती है। इस बीमारी में इम्‍यून सेल्‍स पैनक्रियाज में बनने वाली बीटा कोशिकाओं को नष्‍ट करते हैं। ये इम्‍यून सेल्‍स ही इंसुलिन बनाते हैं। इंसुलिन ब्‍लड शुगर को अन्‍य कोशिकाओं तक ले जाने में मदद करता है। फिर इसका इस्‍तेमाल ऊर्जा बनाने में होता है। ट्रायल्‍स में Tzield बीमारी को दो साल से अधिक तक रोकने में मदद करती है। हालांकि, कुछ मामले में इससे ज्‍यादा समय तक बीमारी होने से रोका जा सकता है। नवंबर में यूएसएफडीए ने इसे मंजूरी दी थी। जो लोग क्‍लीनिकट ट्रायल में शामिल हुए, उनकी प्रतिक्रिया लाजवाब है। उनका कहना है कि बिना इंसुलिन सामान्‍य जिंदगी ईश्‍वर के वरदान से कम नहीं है। वह मानते हैं कि इसने उम्‍मीद की किरण जगाई है। यह एक बड़ी उपलब्धि है। इसे सिर्फ वही समझ सकते हैं जो टाइप-1 डायबिटीज से गुजर रहे हैं।