क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
एक्सपर्ट्स कहते हैं कि इस बारे में दिल्ली नगर निगम एक्ट काफी साफ है। इसका अनुच्छेद 35 कहता है कि मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव हर साल होगा। यह एक अप्रैल से शुरू होगा। लिहाजा, ताजा हालात में निर्वाचित सदस्यों की पहली बैठक अप्रैल में ही हो सकती है। यह और बात है कि इसमें एक प्रावधान है जो इस मुश्किल को आसान कर सकता है। जब तीनों निगमों को एक किया गया तो एक्ट में यह संशोधन किया गया था। इसके अनुसार, दिक्कत आने पर केंद्र सरकार आदेश निकालकर उस समस्या को खत्म कर सकती है। उस स्थिति में एक्ट में संशोधन की जरूरत नहीं होगी। केंद्र सरकार के पास यह शक्ति दो साल के लिए है। वैसे, इन आदेशों को लोकसभा और राज्यसभा में पेश करना होगा।
कैसे होता है चुनाव?
दिल्ली नगर निगम के मेयर के चुनाव में निर्वाचित 250 पार्षदों के अलावा 13 विधायक, दिल्ली के लोकसभा सांसद, तीन राज्यसभा सदस्य मतदान कर सकते हैं। जिसके पास मेजॉरिटी होती है वही जीतता है। मनोनीत दस सदस्यों को इसमें मतदान का अधिकार नहीं होता है। इसमें उपराज्यपाल सदन बुलाने की तारीख बताते हैं। उससे कम से कम 10 दिन पहले निगम सचिव कार्यालय मेयर और डिप्टी मेयर पद के प्रत्याशियों के नामांकन की तारीखों का ऐलान करता है।
राज्य चुनाव आयोग जीते हुए प्रत्याशियों की अधिसूचना जारी करता है। फिर दिल्ली नगर निगम के आयुक्त को इसे भेजा जाता है। आयुक्त इसे निगम सचिव को भेजते हैं। निगम सचिव इस सूची के साथ एक पत्र उपराज्यपाल को लिखते हैं। इसमें जीतकर आए सदस्यों की बैठक की तारीख तय करने का अनुरोध किया जाता है। इसके अलावा यह भी कहा जाता है कि मेयर का चुनाव कराने के लिए पीठासीन अधिकारी नियुक्त किया जाए। इसके बाद उपराज्यपाल एक्ट को देखते हैं। यह अप्रैल महीने की पहली बैठक में होता है। वह मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव कराने की अनुमति देते हैं। यह काम केंद्र सरकार से सलाह लेकर किया जाता है।