मानहानि मामले में दो साल कैद की सजा सुनाए जाने के बाद की लोकसभा सदस्यता रद्द होना कांग्रेस और विपक्षी दलों के लिए कम से कम शुरुआती तौर पर पॉजिटिव नतीजा लाता दिख रहा है। इस फैसले के बाद रविवार को कांग्रेस ने देश भर में सत्याग्रह और धरना-प्रदर्शन का कार्यक्रम चलाया। तब तक अन्य विपक्षी दलों के नेता भी इस मसले पर राहुल गांधी के पक्ष में बयान दे चुके थे। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के चैंबर में सोमवार को बुलाई गई बैठक में तृणमूल कांग्रेस के भी नेता शामिल हुए, जो कुछ समय पहले तक विपक्षी एकजुटता के नाम पर समाजवादी पार्टी और बीजेडी जैसे गैर-कांग्रेस दलों को साथ लाने की कोशिश में जुटी थी। संसद में गांधी प्रतिमा से लेकर विजय चौक तक पैदल मार्च में भी विपक्षी दलों के नेता साथ नजर आए। इस पूरे घटनाक्रम में ही संभवत: उस सवाल का भी जवाब छुपा है जो कानून के जानकार सदस्यता रद्द होने के बाद से ही पूछ रहे हैं कि आखिर कांग्रेस सूरत अदालत के फैसले को तत्काल ऊपरी अदालत में चुनौती क्यों नहीं दे रही। असल में राहुल गांधी की सांसदी रद्द होने को चाहे जितना भी बड़ा राजनीतिक मसला बनाने की कोशिश की जाए, जानकारों के मुताबिक इसमें कानून के उल्लंघन का कोई आरोप ठहरना मुश्किल है। ऐसे में स्वाभाविक ही कांग्रेस कानूनी लड़ाई को प्राथमिकता देती नहीं दिखना चाहती। वह देर-सबेर इसे अदालत में चुनौती दे भी देगी, पर उससे पहले इसका पूरा राजनीतिक लाभ लेना चाहती है। लेकिन क्या सचमुच उसे इस मामले का राजनीतिक लाभ मिलने वाला है? इसका साफ-साफ जवाब तत्काल नहीं दिया जा सकता। सच है कि आप, बीआरएस, तृणमूल और समाजवादी जैसे दल जो कांग्रेस से दूरी बरत रहे थे, आज उसके साथ दिख रहे हैं। लेकिन उनका समर्थन राहुल गांधी की सांसदी रद्द होने के खास मुद्दे पर है। जब साथ मिलकर चुनाव लड़ने की बात आएगी और उसमें सीटों के बंटवारे का सवाल उठेगा तब तक यह विपक्षी एकजुटता कितनी बनी रहेगी, कहना मुश्किल है। उससे पहले इसे कई राज्यों के विधानसभा चुनावों की अग्निपरीक्षा से भी गुजरना है। सबसे बड़ी बात यह कि इस पूरी कवायद के बाद अगर कांग्रेस बनाम बीजेपी या राहुल बनाम मोदी का ही सीन बनना है तो इसके लिए विपक्ष कितना तैयार है। यह बात सत्तारूढ़ दल के नेता ही नहीं, तृणमूल जैसे विपक्षी दल भी उठाते रहे हैं कि राहुल बनाम मोदी की लड़ाई बीजेपी के हित में है। मगर समय के साथ चीजें बदलती हैं। राहुल भी आज वह राहुल नहीं जो भारत जोड़ो यात्रा से पहले थे। ऐसे में देखने वाली बात यह होगी कि कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव के बाद उनकी क्या और कैसी छवि उभरती है। उसके बाद ही अगले आम चुनावों में विपक्षी गठबंधन की तस्वीर साफ हो सकेगी।