देश की पहली महिला फॉरेंसिक साइंटिस्‍ट खोल देती हैं हर अपराधी का कच्‍चा चिट्ठा

नई दिल्‍ली: वह बोलती हैं तो कानों में शहद घुल जाता है। पारंपरिक साड़ी। गले में मोतियों का नेकलेस। माथे पर बिंदी। मांग में सिंदूर। उम्र और पहनावा-ओढ़ावा देखकर कोई अंदाजा तक नहीं लगा सकता कि वह क्राइम एक्‍सपर्ट हैं। जिनका काम शातिर अपराधियों की कुंडली खोलना है।

रुक्‍मण‍ि कृष्‍णमूर्ति 72 साल की हो चुकी हैं। देश के जाने-माने क्राइम इंवेस्टिगेटर्स में उनका नाम शुमार है। वह देश की पहली महिला फॉरेंसिक साइंटिस्‍ट हैं। पहली प्राइवेट फॉरेंसिक लैब की संस्‍थापक होने की उपलब्धि भी रुक्‍मणि के नाम दर्ज है। उनकी सादगी महिलाओं को इस फील्‍ड में करियर बनाने के लिए इंस्‍पायर करती है।

रुक्‍मणि ने फॉरेंसिक जांच के क्षेत्र में मर्दाना दबदबे को चुनौती दी है। न सिर्फ उन्‍होंने इस क्षेत्र में अलग मुकाम हासिल किया है। बल्कि अपनी विशेषज्ञता का लोहा भी मनवाया है। कई बड़े केस सुलझाने में उनका नाम जुड़ा रहा है। इनमें 26/11 का मुंबई आतंकी हमला शामिल है।

भारतीय क्रिमिनल फॉरेंसिक्‍स में रुक्‍मणि कृष्‍णमूर्ति जाना-पहचाना नाम हैं। उन्‍होंने कई जटिल केसों को सुलझाने में मदद की है। इनमें 1993 मुंबई बम ब्‍लास्‍ट, तेलगी स्‍टैंप घोटाला, 26/11 आतंकी हमला, नागपुर नक्‍सली मर्डर केस, किंगफिशर एयरलाइन घोटाला शामिल हैं। इसके अलावा उन्‍होंने न जाने कितने दहेज हत्‍या, रेप और मर्डर के केस सुलझाए हैं।

करीब 50 साल पहले रुक्‍मणि‍ ने फॉरेंसिक्‍स में अपने करियर की शुरुआत की थी। इसके लिए उन्‍होंने एनालिटिकल केमेस्‍ट्री में पोस्‍ट ग्रेजुएशन किया। फिर पीएचडी की। फॉरेंसिक जगत की दुनिया में वह धीरे-धीरे एक के बाद एक पायदान चढ़ती गईं। महाराष्‍ट्र के फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरीज निदेशालय की डायरेक्‍टर बनीं।

कृष्‍णमूर्ति ने बताया कि 1993 में हुए ब्‍लास्‍ट की जांच के नतीजे इंटरपोल से मेल खाए थे। महाराष्‍ट्र सरकार से रिटायर होने के बाद उन्‍होंने अपनी फोरेंसिक लैब शुरू की। इसका नाम था हेलिक एडवाइजरी। यह देश की पहली ऐसी लैब थी।

इस बारे में कृष्‍णमूर्ति ने बताया कि सरकारी फॉरेंसिक लैब्‍स केवल पुलिस और अन्‍य जांच एजेंसियों से ही केस लेती हैं। लेकिन, वह सुनिश्‍चित करना चाहती थीं कि कंपनियां और लोग पुलिस से संपर्क किए बिना फॉरेंसिक सर्विसेज का लाभ ले सकें।

फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरीज निदेशालय की डायरेक्‍टर रहते हुए रुक्‍मणी ने 2002 से 2008 तक महाराष्‍ट्र के तमाम शहरों में छह वर्ल्‍ड-क्‍लास फॉरेंसिक लैब का निर्माण कराया। इनमें मुंबई, नागपुर, पुणे, औरंगाबाद, नासिक और अमरावती शामिल थे। इन लैब्‍स में डीएनए, साइबर फॉरेंसिक, स्‍पीकर आइडेंटिफिकेशन से लेकर टेप ऑथेंटिकेशन, लाई डिक्‍टर, नार्को एनालिसिस और ब्रेन सिग्‍नेचर तक की सुविधा थी। इसका मकसद हाई-टेक क्राइम को फैलने से रोकना था।

रुक्‍मणी ने ही टीवी शो और फिल्‍म निर्माताओं को सलाह दी थी कि वे डीएनए टेस्‍ट और क्राइम इंवेस्टिगेशन के तरीकों को दिखाना बंद करें। उन्‍हें लगता था कि ये पूरी तरह भ्रामक और सच से दूर थे। इसके बाद ओटीटी शो सैक्रेड गेम्‍स ने अपने सभी क्राइम सीन्‍स के लिए उन्‍हें फोरेंसिक एडवाइजर के तौर पर लिया।

रुक्‍मणि‍ कृष्‍णमूर्ति के 110 रिसर्च पेपर पब्लिश हो चुके हैं। वह सभी केंद्रीय फॉरेंसिक समितियों की सदस्‍य रही हैं। उन्‍हें फॉरेंसिक्‍स के क्षेत्र में 12 राष्‍ट्रीय और अंतरराष्‍ट्रीय पुरस्‍कारों से नवाजा जा चुका है। सरकार ने बेस्‍ट फॉरेंसिक डायरेक्‍टर और लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड भी दे चुकी है।

इसके अलावा उन्‍होंने गृह मंत्रालय की नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनवर्सिटी के साथ सहयोग में मुंबई में कॉरपोरेट फॉरेंसिक ट्रेनिंग सेंटर की भी स्थापना की। इसका मकसद कॉरपोरेट संगठनों और एसएमई को घरलू खतरों और आंतरिक विवादों से निपटने में मदद मुहैया कराना है।

ऐक्‍टर-डायरेक्‍टर हरमन बावेजा बता चुके हैं कि वह जल्‍द ही रुक्‍मणि कृष्‍णमूर्ति की जिंदगी पर फिल्‍म बनाने वाले हैं। बावेजा स्‍टूडियो को इसके राइट्स भी मिल चुके हैं। अगले कुछ महीनों में स्‍क्र‍िप्‍ट का काम पूरा कर लिया जाएगा। 2023 की अंतिम तिमाही में शूटिंग शुरू की जा सकती है।