ओमप्रकाश अश्क, कोलकाता: पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी कभी अपने स्टैंड पर कायम नहीं रहतीं। राजनीतिक गंठजोड़ की बात हो या घुसपैठ का सवाल, ममता का स्टैंड बदलता रहा है। कभी वे बीजेपी के करीब रहीं तो अब कांग्रेस के प्रति उनका प्रेम उमड़ा है। वह भी तब, जब हाल ही में सागरदिगी उपचुनाव में कांग्रेस और वाम दलों के गठबंधन ने उनके उम्मीदवार को धूल चटा दी थी। इससे खफा होकर उन्होंने ऐलान भी किया था कि लोकसभा का चुनाव उनकी पार्टी टीएमसी अकेले लड़ेगी।
बंगाल में जब वाम मोर्चा का शासन था तो ममता कहती थीं कि बड़े पैमाने पर बांग्लादेशी घुसपैठ हो रही है। वाम मोर्चा सरकार घुसपैठ को बढ़ावा दे रही है। 4 अगस्त 2005 को लोकसभा में उन्होंने इस मुद्दे पर कहा था, ‘बंगाल में होने वाली घुसपैठ अब त्रासदी बन गई है। मेरे पास बांग्लादेशी और भारतीय वोटर्स दोनों की लिस्ट है। यह बेहद गंभीर मामला है। मैं यह जानना चाहूंगी कि सदन में इस पर कब चर्चा होगी।’ हालांकि जब नरेंद्र मोदी की सरकार ने घुपैठ के सवाल पर एनआरसी की बात की तो इसकी मुखर विरोधी बन कर सबसे पहले ममता बनर्जी ही सामने आई थीं। घुसपैठ पर लोकसभा में गुस्से में दिखीं थीं ममता बनर्जी2005 में ममता बनर्जी बीजेपी के साथ थीं।
लोकसभा में 4 अगस्त 2005 को ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में बांग्लादेशी घुसैठ को लेकर स्थगन प्रस्ताव का नोटिस दिया था। सोमनाथ चटर्जी तब लोकसभा के स्पीकर थे। हालांकि जिस समय ममता ने अपना रौद्र रूप दिखाया, उस वक्त चेयर पर डेप्युटी स्पीकर चरणजीत सिंह अटवाल बैठे थे। जब ममता को बताया गया कि उनके नोटिस को स्पीकर ने रिजेक्ट कर दिया है, तब उन्होंने हंगामा शुरू कर दिया। बोलते हुए वह वेल की तरफ बढ़ गईं। ममता ने अपने हाथ के पेपर्स स्पीकर के चेयर की तरफ उछाल दिये। इस प्रकरण के बाद उन्होंने अपनी सदस्यता से इस्तीफे की पेशकश भी कर दी थी।
पश्चिम बंगाल में बांग्लेदेशी घुपैठिये सत्ताधारी दलों के ही वोटर बनते रहे हैं। ये कभी वाम सरकार के वोटर थे तो अब थोक भाव से ममता की पार्टी टीएमसी के समर्थक बन गये हैं। इन घुसपैठियों में मुसलमानों की तादाद अधिक है। यही वजह है कि बंगाल में अब मुसलमानों की आबादी 30 प्रतिशत आंकी जाती है। 2021 में हुए विधानसभा चुनाव के पहले तक बंगाल में मुसलमानों के वोट तीन ध्रुवों में बंटते रहे। कुछ हिस्सा वाम दलों के साथ रहता था, कुछ कांग्रेस को अपना हित चिंतक मानता रहा। ममता को भी इनके कुछ वोट मिलते रहे हैं।
2021 के विधानसभा चुनाव में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी को 48 प्रतिशत वोट मिले थे, तो माना गया कि मुसलमानों के वोट थोक में ममता बनर्जी के खाते में गये। कांग्रेस और वाम दलों का सफाया हो गया। ऐसा इसलिए हुआ कि भाजपा बंगाल में आक्रामक अंदाज में चुनाव लड़ रही थी। मुसलमानों को इस बात का भय था कि भाजपा आयी तो एनआरसी लागू करेगी। ऐसे में घुपैठियों का क्या होगा। यही वजह है कि ममता घुसपैठ के मुद्दे पर खामोश रहती हैं या एनआरसी जैसी बात आने पर उसके विरोध में खड़ी हो जाती हैं।
स, नहीं जा रहा मोहबीजेपी को अपने वोट बैंक का खूब एहसास है। उसका मानना है कि बहुसंख्यक हिन्दू वोटर उसके साथ हैं। सिर्फ मुस्लिम वोटरों के भरोसे ममता मजबूत बनी हुई हैं। विधानसभा चुनाव में ममता के 48 प्रतिशत वोट में सिर्फ 18 प्रतिशत वोट ही हिन्दुओं के हैं। अगर भयमुक्त चुनाव हो तो इन्हें भी अपने पाले में किया जा सकता है। यही वजह है कि भाजपा बंगाल का मोह नहीं छोड़ रही है।
ममता का मिजाज अब कांग्रेस के प्रति नरम है। उन्हें लग रहा है कि राहुल गांधी को अगर कोर्ट से राहत नहीं मिली तो पीएम पद के लिए विपक्षी दलों को मौका मिल सकता है। ममता ने केंद्र सरकार के विरोध में कोलकाता में हुई रैली में सारे विपक्षी दलों को एकजुट होने की अपील की। उनका फोकस इसी बात पर था कि 2024 में लोकसभा का चुनाव आम जनता बनाम बीजेपी होगा। वर्षों बाद ममता ने मोदी सरकार के खिलाफ इतने तल्ख तेवर में हमला बोला। उन्होंने कहा कि बीजेपी का घमंड चकनाचूर करने के लिए समूचे विपक्ष को एकजुट होकर लड़ाई लड़नी होगी। लोकतंत्र की रक्षा के लिए ‘दुर्योधन’ को हटाना ही होगा। राहुल गांधी के मुद्दे पर टीएमसी अब कांग्रेस के साथ खड़ी है तो इसके पीछे ममता का स्वार्थ है। उन्हें लगता है कि इसी बहाने विपक्ष उनको पीएम उम्मीदवार घोषित कर सकता है। राहुल गांधी के मैदान में न रहने पर उनकी लाटरी लग सकती है।