नई दिल्ली: अडानी संकट पर सियासत गरम हो गई है। समूचा विपक्ष इस मसले पर एकजुट हो गया है। वह अडानी संकट के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमलावर है। पीएम मोदी के साथ गौतम अडानी के रिश्तों का हवाला दिया जा रहा है। यह और बात है कि अडानी ग्रुप के मुखिया गौतम अडानी के संबंध तमाम और राजनीतिक शख्सीयतों के साथ रहे हैं।
राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत और ममता बनर्जी भी इनमें शामिल हैं। सार्वजनिक रूप से इन्हें एक-दूसरे के साथ देखा गया है। और तो और गौतम अडानी एक इंटरव्यू में खुद यह कह चुके हैं कि उनकी शुरुआती सफलता का श्रेय राजीव गांधी की सरकार को जाता है। जब इन तमाम राजनीतिक हस्तियों के साथ उनके अच्छे ताल्लुकात हैं तो आखिर प्रधानमंत्री मोदी को ही निशाना क्यों बनाया जा रहा है।
कहीं अडानी संकट के बहाने मोदी पर हमला राजनीतिक बदला तो नहीं हैं? 24 जनवरी को अमेरिकी शॉर्ट-सेलर फर्म हिंडनबर्ग रिसर्च आने के बाद हड़कंप मचा है। इसने अडानी ग्रुप पर कई आरोप लगाए हैं। इनमें मनी लॉन्ड्रिंग और अकाउंटिंग फ्रॉड तक शामिल हैं। यह भी कहा गया है कि समूह पर जरूरत से ज्यादा कर्ज है। अडानी की अप्रत्याशित ग्रोथ को उसने कॉरपोरेट जगत में सबसे बड़ा घोटाला करार दिया है।
हालांकि, ये सिर्फ आरोप हैं। वह भी उस फर्म के जिसका काम ही शेयरों को लुढ़काकर चोखा मुनाफा कमाना है। अडानी मामले में वह पहले ही नुकसान करने में कामयाब रही है। उसकी रिपोर्ट आने के बाद से अडानी ग्रुप की कंपनियों के शेयरों में तेज गिरावट आई है। इस गिरावट ने गौतम अडानी से एशिया के सबसे दौलतमंद व्यक्ति का ताज भी छीन लिया है।
आरबीआई ने बैंकों से मांगा है ब्योरा
आरबीआई ने बैंकों के अडानी के साथ कारोबारी रिश्तों का ब्योरा मांगा है। नैतिकता की बात कहकर अडानी एंटरप्राइजेज ने 20 हजार करोड़ रुपये का अपना एफपीओ भी वापस ले लिया। वह तब जब यह पूरी तरह सब्सक्राइब हो चुका था। 27 जनवरी को इसे लाया गया था। वहीं, एक फरवरी को इसे वापस लेने का फैसला ले लिया गया। हिंडबनर्ग के हर एक आरोप का सिलसिलेवा तरीके से अडानी ग्रुप ने जवाब दिया है।
मसलन रिपोर्ट में कहा गया कि ग्रुप ने टैक्स का बेजा इस्तेमाल किया। जवाब में कहा गया यह आरोप निराधार है। इसमें सिर्फ अटकलबाजी है। रिपोर्ट कहती है कि 8 साल में 5 सीएफओ बदले। अकाउंटिंग में गड़बड़ी की आशंका है। तो, जवाब आया कि ज्यादातर सीएफओ कंपनी के साथ हैं। वे अलग-अलग भूमिकाओं में हैं। अडानी ने कर्ज की चिंता को भी खारिज किया है। कहा है कि ग्रुप की कंपनियों में नकदी का अनुपात इंडस्ट्री बेंचमार्क के मुताबिक ही है।
पूरे मामले को विपक्ष ने दे दी है हवा
हालांकि, विपक्ष इस पूरे मामले को हवा देने में लगा है। अडानी के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट किया जा रहा है। मामले में ज्वाइंट पार्लियामेंटरी कमिटी (जीपीसी) की जांच की मांग की गई है। दूसरा विकल्प सुप्रीम कोर्ट के जज से जांच का दिया गया है। इस मसले पर हंगामा चरम पर है। विपक्ष संसद नहीं चलने दे रहा है।
राजनीतिक विश्लेषक अमिताभ सिन्हा ने कहा कि ये पूरा खेल भारत को अस्थिर करने के लिए हो रहा है। सरकार के बजट से पहले उन्होंने यह किया है। उन्होंने इसे बहुत संवेदनशील मुद्दा बताया। विपक्ष अगर अडानी को मोदी का दोस्त बता रहा है। फिर कुछ महीने पहले ममता से उनकी मुलाकात का क्या मकसद था। यह शब्द ममता के ही हैं -‘अंबानी-अडानी भी चाहिए, कृषि भी चाहिए।’ इसी के बाद अडानी पश्चिम बंगाल में ममता से मिलने पहुंच गए थे। इसी तरह राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी गौतम अडानी के साथ मंच साझा करते देखा गया था।