मैडम जी, सैलरी पर गुजारा करने वालों का दर्द समझिए! इनकम टैक्स पर दे दीजिए ये 7 राहत

नई दिल्ली : इस बार वेतनभोगी लोगों को वित्त मंत्री (Finance Minister Nirmala Sitharaman) से कई उम्मीदें हैं। वित्त मंत्री एक फरवरी को आम बजट (Budget 2023) पेश करने जा रही हैं। यह अगले साल होने वाले आम चुनावों (General Elections) से पहल मौजूदा सरकार का आखिरी पूर्ण बजट होगा। इसलिए वित्त वर्ष 2023-24 के बजट से लोगों को काफी उम्मीदें हैं। वेतनभोगी लोग इनकम टैक्स () के मोर्चे पर कुछ राहत की उम्मीद कर रहे हैं। पिछले बजटों में वित्त मंत्री इन लोगों के लिए कई बदलाव लेकर आई थीं। इनमें नई कर व्यवस्था और स्टैंडर्ड डिडक्शन में वृद्धि शामिल हैं। आइए जानते हैं कि इस बजट 2023 में आयकर के मोर्चे पर लोगों की क्या-क्या मांगें हैं।

बढ़े बेसिक छूट की लिमिट

बजट में लोगों की सबसे बड़ी मांग यह है कि नई और पुरानी दोनों कर व्यवस्थाओं के तहत सालाना बेसिक छूट सीमा को बढ़ाया जाए। इसे मौजूदा 2.5 लाख से बढ़ाकर 5 लाख रुपये किया जाए। कई फैक्टर्स को ध्यान में रखते हुए इस लिमिट को बढ़ाया जा सता है। इनमें जीवन जीने की लागत में इजाफा, महंगाई, करदाताओं की संख्या और कर राजस्व आदी शामिल हैं।

बढ़े 80 सी के तहत छूट की लिमिट

आयकर अधिनियम 1961 की धारा 80C के तहत डिडक्शन की सीमा वित्त वर्ष 2014-15 से 1.5 लाख रुपये है। धारा 80सी के तहत अधिकतर डिडक्शंस निवेशकों को लॉन्ग टर्म सेविंग्स में निवेश के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इनमें पीपीएफ, एनपीएस और एफडी आदी शामिल हैं। ये निवेश विकल्प देश में इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स के लिए लॉन्ग टर्म फाइनेंस प्रदान करते हैं। इसके अलावा टैक्सपेयर्स होम लोन रिपेमेंट, इंश्योरेंस और बच्चों की शिक्षा पर काफी रकम खर्च करते हैं। इसलिए बड़े स्तर पर यह मांग की जा रही है कि इस लिमिट को 1.5 लाख से बढ़ाकर 3 लाख रुपये किया जाए।

स्टैंडर्ड डिडक्शन की लिमिट बढ़े

वित्त वर्ष 2018-19 से स्टैंडर्ड डिडक्शन लागू करके टैक्स-फ्री मेडिकल रीइंबर्समेंट और यात्रा भत्ता छूट वापस ले ली गई थी। तब से डिडक्शन की मात्रा स्थिर बनी हुई है। लेकिन चिकित्सा पर खर्च और फ्यूल की कीमत में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। ऐसे में स्टैंडर्ड डिडक्शन को 50,000 रुपये की मौजूदा सीमा से बढ़ाकर 1 लाख रुपये करने पर विचार किया जा रहा है। इसके अलावा नई वैकल्पिक टैक्स व्यवस्था को चुनने वाले करदाताओं को स्टैंडर्ड डिडक्शन का लाभ प्रदान करने के बारे में भी सोचा जा सकता है। क्योंकि ये खर्चे किसी भी वेतनभोगी टैक्सपेयर्स के लिए जरूरी होते हैं।

चिकित्सा खर्च के लिए डिडक्शन की लिमिट बढ़े

वर्तमान में स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम के लिए डिडक्शन की सीमा 25,000 रुपये है। इसमें स्वयं, पति/पत्नी और बच्चों के लिए चेकअप भी शामिल है। इसके अलावा माता-पिता के लिए डिडक्शन की सीमा 50,000 रुपये है। हालांकि,इनमें से कम से कम एक वरिष्ठ नागरिक हो। पिछले कुछ वर्षों से अस्पताल में भर्ती होने की लागत और चिकित्सा खर्च में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। इसलिए इन सीमाओं को क्रमशः 50,000 रुपये और 1 लाख रुपये तक बढ़ाया जा सकता है।

चाइल्ड एजुकेशन भत्ते के लिए डिडक्शन की सीमा बढ़े

चाइल्ड एजुकेशन भत्ता वर्तमान में बच्चों की शिक्षा और छात्रावास व्यय के लिए क्रमशः 100 रुपये और 300 रुपये प्रति बच्चा प्रति माह (अधिकतम दो बच्चों तक) की सीमा तक छूट प्राप्त है। छूट की ये रकम करीब दो दशक पहले तय की गई थी। इसलिए हाल के दिनों में शिक्षा की लागत में वृद्धि को देखते हुए इन छूट की सीमा को क्रमशः कम से कम 1,000 रुपये और 3,000 रुपये प्रति बच्चे प्रति माह तक बढ़ाई जानी चाहिए

होम लोन ब्याज के लिए डिडक्शन की सीमा बढ़े

होम लोन ब्याज के लिए डिडक्शन की सीमा इस समय 2 लाख रुपये है। ब्याज दरों में वृद्धि के साथ अब इसकी सीमा में भी इजाफा होना चाहिए। घर खरीदने के लिए बड़ी रकम की जरूरत होती है, इसलिए कई कर्जदार भारी भरकम होम लोन लेते हैं। नतीजतन, उनकी आय का एक बड़ा हिस्सा होम लोन पर ब्याज चुकाने में चला जाता है। कई लोगों के लिए होम लोन पर सालाना ब्याज भुगतान डिडक्शन की उस ऊपरी सीमा से बहुत अधिक होता है, जिसका वे क्लेम कर सकते हैं। इस साल रेपो रेट में 2.25 फीसदी का इजाफा हो चुका है। इससे होम लोन पर ब्याज दरें भी काफी बढ़ गई है। नतीजतन ग्राहकों को भारी ब्याज चुकाना होगा। इसलिए घर खरीदारों की मांग है कि ब्याज भुगतान के लिए डिडक्शन की सीमा बढ़ाई जाए। इस सीमा को बढ़ाकर 5 लाख किया जा सकता है।

होम लोन मूलधन के पुनर्भुगतान पर अलग से डिडक्शन

यह मांग लंबे समय से लंबित मांग है। धारा 80सी के तहत डिडक्शन की सीमा 1.5 लाख रुपये तक है। लेकिन इस डिडक्शन में आने वाले निवेश और खर्चों की टोकरी लगभग 10 आइटम्स से भरी हुई है। इनमें से एक होम लोन के मूलधन का पुनर्भुगतान भी है। ज्यादातर मामलों में लोग ईपीएफ और बच्चों की ट्यूशन फीस में अनिवार्य योगदान के साथ 80सी की लिमिट को पूरा कर देते हैं। यदि कुछ गुंजाइश बची हो, तो जीवन बीमा पॉलिसियों पर प्रीमियम उसे भर देता है। इसलिए इसमें होम लोन की मूलधन पर डिडक्शन के लिए मुश्किल से ही जगह बचती है।