हमने शुरुआत नोएडा से सटे न्यू अशोक नगर से की। दिल्ली की सीमा में दाखिल होते ही माहौल अलग था। ई-रिक्शों पर बैनर-झंडे के साथ लाउडस्पीकर से प्रचार। चाहे बीजेपी हो या AAP, कांग्रेस हो या निर्दलीय ताल ठोक रहा उम्मीदवार…प्रचार गाड़ी ई-रिक्शा ही है। ज्यादातर में सिर्फ ड्राइवर हैं और लाउडस्पीकर पर वोट की रिकॉर्डेड अपील गूंज रही या फिर फिल्मी गानों की धुन पर बना प्रचार गीत बज रहा। वोटरों के दिल में क्या है, ये जानने के लिए हमने रैंडम लोगों से बातचीत का सिलसिला शुरू किया। बहुत से लोग कैमरे पर बोलने के लिए तैयार नहीं दिखे लेकिन कुरेंदने पर जब एक बार शुरू हुए तो खुलकर बोले।
लोकल चुनाव मगर मोदी, केजरीवाल के चेहरे पर वोट
चुनाव भले ही एमसीडी का हो लेकिन लोगों के जेहन में राष्ट्रीय चेहरे हैं। लोकल चुनाव भी नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल के ईर्द-गिर्द घूमता दिख रहा। एक जूस की दुकान पर कुछ युवा दिखे। मुद्दें क्या हैं? सियासी बयार कैसी है? जैसे ही सवाल हुआ, एक युवा बोल उठा- ‘हवा तो एक ही आदमी की चल रही है…मोदी की। मुखिया मजबूत होता है तो घर मजबूत होता है। डबल इंजन क्या तीनों इंजन, चारों इंजन, जितने इंजन हों, एक दिशा में चलेंगे तभी तो विकास होगा। एमसीडी में फिर बीजेपी आएगी।’ राष्ट्रीय मुद्दों पर एमसीडी चुनाव क्यों, इस सवाल पर रुपेश राणा नाम के एक अन्य युवक ने कहा, ‘आम जनता देश को देख रही है, एमसीडी या विधायक को नहीं। मोदी ने राष्ट्रीय एकता को संजोया है, देश को मजबूत किया है।’
मुफ्त बिजली-पानी: आम आदमी को सुविधा या रेवड़ी?
‘इस बार तो बदलाव की हवा बह रही है…’ पास में खड़े एक अन्य युवक ने कहा कि अरविंद केजरीवाल ने राजनीति बदली है। आम लोगों के लिए काम कर रहे हैं। मुफ्त बिजली, मुफ्त पानी, महिलाओं के लिए बस में मुफ्त यात्रा…गरीब का बच्चा भी सरकारी स्कूलों में अच्छा एजुकेशन ले रहा, अस्पतालों की हालत सुधरी है। इस बार एमसीडी में भी AAP आएगी। तभी एक बुजुर्ग भी आ गए। उन्होंने भी युवक के सुर में सुर मिलाते हुए कहा- परिवर्तन आना चाहिए। भ्रष्टाचार खत्म होना चाहिए। अगर आम लोगों को मुफ्त में सुविधाएं मिल रही हैं तो किसी को क्या दिक्कत है, दूसरी पार्टियां फ्री का रोना रो रही हैं जो गलत है। वहीं, कुछ लोगों ने कहा कि मुफ्त बिजली का फायदा तो बस मकान मालिकों को मिल रहा, किरायेदारों को नहीं। नियम के मुताबिक किरायेदारों को भी मुफ्त बिजली की सुविधा मिल सकती है लेकिन मकान मालिक उन्हें कागज ही नहीं देता, मीटर ही नहीं लगवाने देता।
‘स्वास्थ्य और शिक्षा तो यूक्रेन में भी चकाचक थी, देश मजबूत हो ये जरूरी’
‘मुफ्त की रेवड़ी’ का मुद्दा छिड़ते ही पास से गुजर रहा हेमंत सोरेन नाम का युवक खुद को रोक नहीं पाया। उसने दलील दी, ‘स्वास्थ्य और शिक्षा तो यूक्रेन में तो बहुत थी, हमारे यहां से लोग वहां पढ़ने जाते थे। आज उनके यहां जख्मों पर पट्टी बांधने के लिए लोग नहीं हैं। देश कमजोर होगा और किसी और का गुलाम होगा तब न डॉक्टर बचेगा और न मास्टर बचेगा। इसलिए मोदी का हाथ और मजबूत करेंगे।’
‘एमसीडी में भी इस बार झाड़ू चलेगी…’
एमसीडी चुनाव में सिर्फ राष्ट्रीय मुद्दों की गूंज है, ऐसा नहीं है। हम जहां भी गए, कूड़े के पहाड़ और साफ-सफाई के मुद्दा जरूर उठा। न्यू अशोक नगर से हम पांडवनगर पहुंचे और फिर लक्ष्मीनगर होते हुए दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस। हर जगह लोगों ने कूड़े की समस्या को बड़ा मुद्दा बताया। इस मुद्दे पर लोगों में बीजेपी के प्रति नाराजगी साफ दिखी जो एमसीडी की सत्ता में पिछले 15 साल से काबिज है। पांडवनगर में बुराड़ी से आई एक युवती बोली, ‘एमसीडी में भी झाड़ू चलनी चाहिए। हमारे यहां बीजेपी का पार्षद जीता था, एमसीडी में उनकी सरकार है लेकिन कोई काम नहीं किया। सड़कों और सीवर का बुरा हाल है। कूड़ा साफ नहीं होता। लेकिन केजरीवाल ने अच्छा काम किया है। स्कूल सुधरे हैं। हमारे घर के बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ते हैं, फर्क साफ दिख रहा।’
कमजोर दिख रही कांग्रेस
मुख्य मुकाबला बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच ही दिख रहा। कांग्रेस बेदम दिख रही है। पिछली बार यानी 2017 में आम आदमी पार्टी ने पहली बार एमसीडी चुनाव में खुद को आजमाया और कांग्रेस को तीसरे नंबर पर खिसका दिया। तीनों नगर निगमों के एकीकरण के बाद अब 250 वार्ड हैं। पिछली बार तीनों निगमों को मिलाकर 272 वार्ड थे। बीजेपी को 181 और AAP को 49 सीटों पर जीत मिली। कांग्रेस महज 31 सीटों पर सिमट गई। दिल्ली में आम आदमी पार्टी जैसे-जैसे मजबूत हुई, कांग्रेस कमजोर होती गईं। दोनों का सपोर्ट बेस तकरीबन एक है। एमसीडी चुनाव में कांग्रेस कहां है? जिनसे भी ये सवाल हुआ, उनका यही कहना था कि उसका कोई खास असर नहीं रहा। हालांकि, पार्टी शीला दीक्षित के दौर में दिल्ली में हुए विकास की याद दिलाकर ‘मेरी चमकती दिल्ली, शीला दीक्षित वाली दिल्ली’ अभियान शुरू किया है।
ज्यादातर को स्थानीय उम्मीदवारों का नाम तक नहीं पता, पार्टी अहम
लोकल चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दों का बोलबाला दिख रहा। पार्टियां अहम हैं, कैंडिडेट नहीं। कई जगहों पर लोगों को अपने स्थानीय उम्मीदवारों के नाम तक नहीं पता लेकिन पार्टी के आधार पर वह मन बना चुके हैं कि ईवीएम में बटन क्या दबाना है। कूड़े और साफ-सफाई के मुद्दे पर आम आदमी पार्टी बीजेपी पर हमलावर है। बीजेपी के कुछ समर्थक भी स्वीकार कर रहे कि कूड़े और साफ-सफाई के मोर्चे पर एमसीडी की बीजेपी सरकार नाकाम रही लेकिन वोट उसी को देंगे। ऐसे ही एक शख्स ने कहा, ‘केजरीवाल से 8 सालों में यमुना तो साफ हो न सकी, कूड़े के पहाड़ क्या खाक हटाएंगे।’
कूड़ा, सत्येंद्र जैन के तिहाड़ वाले वीडियो का कितना असर?
इसी तरह आम आदमी पार्टी समर्थकों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनकी पसंदीदा पार्टी पर टिकट बेचने के आरोप लग रहे हैं, कथित शराब घोटाले के कीचड़ उछल रहे हैं, तिहाड़ जेल में बंद मंत्री सत्येंद्र जैन के ‘ठाट-बाट’ के रोज नए-नए वीडियो आ रहे हैं। AAP समर्थकों के लिए पार्टी पर लग रहे करप्शन के आरोप मायने ही नहीं रखते। वो इसे बीजेपी की साजिश और बौखलाहट बता रहे। कनॉट प्लेस में मिले एक युवक के शब्दों में, ‘आम आदमी पार्टी के समर्थक किसी बहकावे में नहीं आने वाले हैं। अबकी बार तो एमसीडी में भी झाड़ू चलेगी।’ ऐसे ही बीजेपी समर्थकों के लिए महंगाई कोई खास मुद्दा नहीं। सीपी में एक बुजुर्ग ने जब तीखे लहजे में कहा, ‘आज पेट्रोल 105 रुपये लीटर हो गया लेकिन मोदीजी की आवाज नहीं निकल रही।’ तब पास में खड़े एक अन्य बुजुर्ग तपाक से बोल उठे, ‘महंगाई किस देश में नहीं हैं, लोगों की कमाई भी तो बढ़ी है। ये तो कोई मुद्दा ही नहीं है।’