लखनऊ: सपा ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए तैयारियां तेज कर दी हैं। पिछले अनुभवों से सबक लेते हुए सपा प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया को अधिक समावेशी बनाने में लगी है। इसलिए, लोकसभा प्रत्याशी के लिए आवेदन की जगह जिला संगठन के जरिए नाम मांगे जाएंगे। सपा मुखिया अखिलेश यादव ने जिलाध्यक्षों को इसके लिए जमीन पर काम शुरू करने के निर्देश दिए हैं।लोकसभा चुनाव में अब एक साल से भी कम समय बचा है। 2014 से ही लोकसभा से लेकर विधानसभा और स्थानीय निकाय तक के चुनावों में सपा को लगातार झटका लगा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन का कार्ड भी काम नहीं आया। 2022 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने अपने वोट शेयर में काफी इजाफा किया, लेकिन उसे वह प्रभावी नतीजों में नहीं बदल सकी। ऐसे में 2024 का चुनाव सपा के लिए अस्तित्व और अखिलेश यादव के लिए स्वयं को राष्ट्रीय राजनीति में प्रासंगिक बनाए रखने का चुनाव है। इसलिए, पार्टी पुरानी गलतियों को सुधारने और जमीन पर संगठन का मनोबल बनाने में जुट गई है।जमीनी फीडबैक होगा अहमविधानसभा चुनाव के दौरान सपा ने हर सीट से प्रत्याशियों के लिए आवेदन मांगे थे और प्रदेश कार्यालय में बॉयोडेटा जमा करने को कहा था। इसमें कुछ नामों को जगह भी मिली, वहीं समीकरण व प्रभाव के आधार पर भी चेहरे चुने गए। हालांकि, टिकट को लेकर कई जगह अंतर्विरोध भी उपजा, जिसका नुकसान पार्टी को हुआ। हाल में हुए निकाय चुनाव में भी प्रत्याशियों के चयन को लेकर सवाल उठे और कई जगह मुखर विरोध भी सामने आया। पार्टी के विधायकों सहित वरिष्ठ चेहरों ने अलग-अलग जिलों में या तो उदासीनता दिखाई या फिर घोषित प्रत्याशी के खिलाफ असहयोग का रवैया अपनाया। इन अनुभवों को देखते हुए प्रत्याशी के चयन में स्थानीय संगठन की भागीदारी बढ़ाने का फैसला हुआ है। पार्टी के एक पदाधिकारी का कहना है कि जिलाध्यक्षों की बैठक में नेतृत्व ने कहा है कि इस बार टिकट के लिए आवेदन नहीं लिए जाएंगे। जिला संगठन व स्थानीय नेता आपस में समन्वय कर जमीनी समीकरण और जिताऊपन की संभावनाओं के आधार पर नाम भेजेंगे। उसमें से ही प्रत्याशियों का चयन किया जाएगा।सभी सीटों पर तैयारी के निर्देशसूत्रों के अनुसार अखिलेश ने कहा है कि पार्टी के गठबंधन का मौजूदा स्वरूप ही आगे बढ़ाया जाएगा। बड़े दलों को जोड़ने के पक्ष में पार्टी नहीं है। इसलिए, अपनी तैयारी हर सीट पर मजबूत बनाएं। जहां गठबंधन में हैं उन जगहों पर सहयोगी दलों के साथ भी समन्वय बनाएं। अभियानों-कार्यक्रमों को साझा करें। लेकिन, हर सीट पर अपनी तैयारी पूरी रखनी है, जिससे भाजपा की रणनीति या सेंधमारी की कोशिशों का जवाब दिया जा सके। दरअसल, निकाय चुनाव के दौरान पार्टी को शाहजहांपुर में झटका लगा था, जब प्रत्याशी ने ही पाला बदल लिया था। इसके पहले स्थानीय निकाय कोटे की विधान परिषद सीटों के चुनाव में कुछ उम्मीदवारों ने पैर खींच लिए थे। इसलिए, लोकसभा में सपा का फोकस पार्टी की रीति-नीति में रचे और टिकाऊ चेहरों को आगे बढ़ाने पर है, जिससे लड़ाई मजबूती से लड़ी जा सके।