नई दिल्ली: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई वाली समिति की सिफारिश सामने आ गई है। समिति ने अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंप दी है। समिति ने पहले चरण के तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की, फिर 100 दिनों के भीतर एक साथ स्थानीय निकाय चुनाव कराने की सिफारिश की है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपी गई 18 हजार से ज्यादा पन्नों की रिपोर्ट में समिति ने कहा है कि एक साथ चुनाव कराए जाने से विकास प्रक्रिया और सामाजिक एकजुटता को बढ़ावा मिलेगा, लोकतांत्रिक परंपरा की नींव गहरी होगी और देश की आकांक्षाओं को साकार करने में मदद मिलेगी। इसका सत्ता पक्ष ने स्वागत किया तो विपक्ष के कई नेताओं ने विरोधी सुर में बात की। आइए जानते हैं कि आखिर समिति ने रिपोर्ट में ‘एक देश, एक चुनाव’ की जरूरत को लेकर क्या दलीलें दी हैं और यह व्यवस्था लागू करने की क्या रूपरेखा बताई है।हमेशा चुनावी मोड में रहता है देशरिपोर्ट में कहा गया है कि ‘बार-बार चुनाव… अनिश्चितता पैदा करते हैं… सरकारी मशीनरी को धीमा कर देते हैं।’ इसमें कहा गया है, ‘जब बार-बार चुनाव होते हैं तो अक्सर पांच साल का आधा समय चुनाव प्रचार में बीत जाता है।’ इसके खिलाफ तर्क नहीं दिया जा सकता। साथ ही, चूंकि लगभग हर पार्टी के पास केवल कुछ ही स्टार प्रचारक होते हैं, इसलिए एक साथ चुनाव उन्हें हमेशा चुनाव प्रचार मोड में रहने से बचाते हैं। एक साथ चुनाव से सरकारों को ज्यादा से ज्यादा वक्त तक काम करने का मौका मिलेगा।संवैधानिक बदलावों की जरूरतराज्य विधानसभाओं की अवधि और नगर पालिकाओं और पंचायतों की अवधि को बदलने के लिए दो प्रमुख संवैधानिक संशोधन सुझाए गए हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि पहले के लिए केवल संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता है, लेकिन दूसरे के लिए राज्यों के अनुमोदन की भी आवश्यकता होगी।आपके मन में भी उठ रहे होंगे ये सवालएक देश, एक चुनाव के तहत एक साथ चुनाव कैसे करवाए जा सकेंगे?पैनल रिपोर्ट के अनुसार, 2 चरणों मेंचरण 1: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराए जाएंगे। इसके लिए संविधान में संशोधन की आवश्यकता होगी, लेकिन राज्यों द्वारा अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी।चरण 2: लोकसभा और विधानसभा चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाएंगे। इसके लिए संशोधन के लिए कम-से-कम आधे राज्यों द्वारा अनुमोदन की आवश्यकता होगी।कटऑफ डेट कैसे तय की जाएगी और अलग-अलग विधानसभा कार्यकाल को कैसे समायोजित किया जाएगा?राष्ट्रपति एक अधिसूचना के जरिए आम चुनाव के बाद लोकसभा के पहले सत्र की तिथि पर एक साथ चुनाव लागू करेंगे। यह ‘अपॉइटेंड डेट’ बन जाती है। इस तिथि के बाद जिन विधानसभाओं के लिए चुनाव होते हैं, उनके कार्यकाल केवल अगले लोकसभा चुनावों (जो एक साथ होंगे) तक होंगे।क्या होगा यदि सदन में गतिरोध हो या सत्ताधारी दल का विश्वास मत खत्म हो जाए?पांच साल के कार्यकाल की शेष अवधि के लिए चुनाव कराए जाएंगे।एक साथ चुनाव कब शुरू होंगे?संवैधानिक संशोधन किए जाने के बाद राष्ट्रपति नवनिर्वाचित लोकसभा के पहले दिन ‘अपॉइंटेड डेट’ का नोटिफिकेशन जारी करेंगे।बीच कार्यकाल में ही गिर गई सरकार तो?यदि कोई राज्य सरकार अपने 5 साल के कार्यकाल के बीच में गिर जाती है, तो दो स्थितियां होंगी। पहला, नए चुनाव के बिना नई सरकार बनाई जा सकती है। उस सरकार का कार्यकाल तब समाप्त होगा जब अगला चुनाव होगा। दूसरा, कोई सरकार नहीं बनाई जा सकती। इसका मतलब है कि या तो विधानसभा का चुनाव होगा या राष्ट्रपति शासन लागू होगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि क्या होना चाहिए, यह तय करना चुनाव आयोग पर निर्भर है। यहां तक कि एक नवनिर्वाचित सरकार का कार्यकाल भी ‘एक देश, एक चुनाव’ के होने पर समाप्त हो जाएगा।भारी संख्या में ईवीएम बढ़ाने की दरकार’एक देश, एक चुनाव’ का लागू किया जाना एक बड़ा काम होगा। एक साथ चुनावों में सबसे बड़ी चुनौतियां सैनिकों की तैनाती और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) की खरीद को लेकर पैदा होंगी। परामर्श के दौरान एक सुझाव यह था कि मांग को पूरा करने के लिए ईवीएम निर्माण को मजबूत करने तक ग्रामीण क्षेत्रों में पेपर बैलेट से मतदान हों।यूनिफाइड वोटर लिस्ट और वोट आईडीरिपोर्ट में कहा गया है कि ‘समिति ने पाया कि राज्य चुनाव आयोग ज्यादातर मतदाता सूची तैयार करने के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त (CEC) से जानकारियां लेते हैं… कभी-कभी, इस दोहराव से त्रुटियां भी सामने आती हैं।’ चुनाव आयोग के पास डिजिटलाइजेशन प्रॉजेक्ट्स के तहत पहले से ही एक एकीकृत मतदाता सूची UNPER है।सरकार के सभी स्तरों – लोकसभा, राज्यों और नगर पालिकाओं/पंचायतों – के लिए यूएनपीईआर की बहुत जरूरत है। अधिकांश राज्यों में पंचायत चुनावों के लिए अलग-अलग सूचियां हैं।रिपोर्ट में सभी चुनावों में एकल मतदाता सूची (UNPER) और एकल मतदाता फोटो पहचान पत्र (EPIC) को सक्षम करने के लिए संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की गई है। इसमें कहा गया है, ‘केंद्रीय निर्वाचन आयोग, राज्य चुनाव आयोग/आयोगों के परामर्श से मतदाता सूची बनाएगा…’ऐसी मतदाता सूची और वोटर आईडी ‘पहले तैयार की गई किसी भी वोटर लिस्ट और वोटर आईडी की जगह लेंगे’। राज्यों को इसे अनुमोदित करने की आवश्यकता है, जिससे निर्वाचन आयोग वोटर लिस्ट पर अंतिम मध्यस्थ बन जाएगा।चुनावों से चौतरफा विकास पर नकारात्मक असरजीडीपी ग्रोथ, सरकारी घाटा, महंगाई, प्राथमिक विद्यालयों में बच्चों के नामांकन जैसे प्रमुख आंकड़ों पर चुनावों के असर के आंकड़े आते रहते हैं। के बाद इसमें क्या बदलाव होगा, एक्सपर्ट्स इसका विश्लेषण करेंगे। लेकिन अच्छी बात यह है कि समिति ने चुनावों के बारे में सोचने और बात करने नए तरीके सुझा दिए हैं। इससे अर्थशास्त्रियों के लिए नए और ज्यादा उपयोगी शोध करने का अवसर मिला है।जितने ज्यादा चुनाव, उतनी ज्यादा परेशानीरिपोर्ट के जरिए और जिन लोगों से सलाह ली गई उनकी तरफ से भी यह तर्क बार-बार दिया गया है कि बार-बार चुनाव प्रशासन और सुरक्षा कर्मियों का बहुत अधिक समय बर्बाद करते हैं। रिपोर्ट में शुरू में कहा गया है, ‘राजनीतिक दलों और उनके नेताओं, व्यवसायों, श्रमिकों, शिक्षाविदों, सरकारों और सभी कर्तव्यनिष्ठ मतदाताओं ने बार-बार और रुक-रुक कर होने वाले चुनावों के अभिशाप पर प्रकाश डाला है।’ सभी ने समय की बर्बादी पर चिंता जताई। उन्होंने ‘सामान्य जीवन में व्यवधान’, आचार संहिता के कारण ‘नीतियां बनाने में रुकावट और शासन-प्रशासन के चौपट होने’ पर गंभीरता से बात की। सुझाव देने वाले एक निकाय ने बताया कि राजनीतिक रैलियों के आयोजन से सड़क यातायात बाधित होती है और ध्वनि प्रदूषण होता है।मतदाता की परेशानी और मतदानरिपोर्ट में कहा गया है कि एक साथ चुनाव ‘मतदाताओं की परेशानी’ भी कम करेंगे और मतदान में सुधार करेंगे। रिपोर्ट में दलील दी गई है कि एक देश, एक चुनाव अधिक मतदाताओं को अपने मताधिकार का प्रयोग करने के लिए प्रेरित करेगा क्योंकि उन्हें पता होगा कि हर पांच साल में उन्हें सिर्फ दो बार ही वोटिंग का मौका मिलने वाला है। इससे वोटिंग पर्सेंटेज में काफी इजाफा होगा। रिपोर्ट में उन राज्यों के चुनावों के आंकड़े भी साझा किए जहां विधानसभा और साथ हुए।प्रवासियों के मतदान प्रतिशत बढ़ने की आसीरिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि रोजगार या किसी अन्य कारण से अपने गृहनगर से दूर रहने वाले अक्सर वोट देने के लिए घर नहीं जा सकते हैं। समिति का कहना है कि अगर प्रवासी हर बार वोट डालने के लिए घर जाते हैं तो मौजूदा व्यवस्था में उन्हें बार-बार इसकी नौबत आती है। एक साथ चुनाव की व्यवस्था हो जाने पर प्रवासियों को पांच वर्ष में एक बार घर जाने की जरूरत पड़ेगी जो उनके लिए एक त्योहार सा हो जाएगा। प्रॉडक्टिविटी के लिहाज से यह बेहतर स्थिति है। लेकिन इसमें एक लोचा है। रिपोर्ट में सुझाए गए एक साथ चुनाव कार्यक्रम में दूसरे चरण का चुनाव (नगर पालिकाएं/पंचायतें), पहले चरण के चुनाव (लोकसभा, राज्य विधानसभा चुनाव) के 100 दिनों के भीतर होने चाहिए। ऐसे में सवाल उठता है कि कौन सा प्रवासी घर में रुककर स्थानीय चुनावों के लिए तीन महीने तक इंतजार करेगा या फिर वो 100 दिन के अंदर दोबारा घर आएगा।