मुकदमों का पहाड़ छोड़कर लंबी-लंबी छुट्टियों पर जाते हैं कोर्ट… राज्यसभा में सांसद बोले- खत्म हो यह औपनिवेशिक परंपरा

नई दिल्ली: उच्च अदालतों में जजों की नियुक्ति के लिए को लेकर सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच ठनी हुई है ही, अब संसद में एक नया मुद्दा उठ गया। राज्यसभा में कुछ सांसदों ने अदालतों की महीने भर की छुट्टी पर आपत्ति जताते हुए इसे औपनिवेशिक परंपरा का प्रतीक बताया है। नई दिल्ली इंटरनैशनल आर्बिट्रेशन सेंटर (अमेंडमेंट) बिल पर बहस के दौरान सांसदों ने अदालतों के लंबी छुट्टी पर जाने का मुद्दा उठाया। सांसदों ने कहा कि एक ओर उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में मुकदमों की बाढ़ है और दूसरी ओर अदालतें लंबी-लंबी छुट्टियों पर चली जाती हैं। यह कहां की नैतिकता है?

मुकदमों का पहाड़ और लंबी-लंबी छुट्टियों पर जाती हैं अदालतें

बीजेपी सांसद ने उच्च अदालतों में लंबी-लंबी छुट्टियों का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट में मुकदमों का पहाड़ खड़ा हो गया है, फिर भी अदालतें गर्मियों में करीब 47 दिन और सर्दियों में करीब 20 दिन के लिए छुट्टियों पर चली जाती हैं। मुकदमों को नजरअंदाज करते हुए अदालतें तब इतनी लंबी-लंबी छुट्टियां लेती हैं जबकि सामान्य सेवाओं के दफ्तरों का पूरे साल कामकाज चलता है। सुशील मोदी ने कहा, ‘कुछ लोग कह सकते हैं कि छुट्टियों में भी वैकेशन बेंच तो काम करती ही है… लेकिन हमें पता है कि वैकेशन बेंच कितना काम करती है।’ उन्होंने कहा, ‘मैं अदालतों की छुट्टियां खत्म करने की मांग करता हूं।’ उन्होंने कहा कि जिस तरह आम सरकारी दफ्तर काम करते हैं, वही सिस्टम अदालतों को भी पालन करना चाहिए।

कॉलेजियम सिस्टम पर पहले से ही चल रही है भिड़ंत

ध्यान रहे कि सरकार हाई कोर्ट्स और सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम सिस्टम पर उंगली उठा रही है। पहले केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठाया, फिर उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राज्यसभा चेयरमैन के तौर पर हैरानी जताई कि संसद में सर्वसम्मति से पास राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) कानून को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया। राज्यसभा के सभापति ने कहा कि ऐसा उदाहरण दुनिया में कहीं नहीं देखा जाता है कि संसद के बनाए कानून को अदालत खारिज कर दे। दिलचस्प बात है कि सुप्रीम कोर्ट के लिए नया मोर्चा भी राज्यसभा से ही खुला है।