BA, MA छोड़ लड़कियों में बढ़ा MMA का क्रेज, पहाड़ पर आखिर कैसे हो रहा ये बड़ा बदलाव?

देहरादून: बीए और एमए को छोड़कर लड़कियां अब मिक्स्ड मार्शल आर्ट (MMA) की तरफ बढ़ती दिख रही हैं। पहाड़ों में माहौल बदल रहा है। पहाड़ जैसी हिम्मत रखने वाली लड़कियां अब अपने करियर को भी नया आयाम देने में जुटी हैं। स्वाति बडवाल उदाहरण हैं। एमएमए खिलाड़ी के करियर की शुरुआत घर में ‘फाइट’ से हुई। उत्तराखंड के चमोली जिले के छोटे गोपेश्वर की 20 वर्षीय स्वाति को एमएमए खासा रास आया। एक सोशल मीडिया पोस्ट में एमएमए विशेषज्ञ अंगद बिष्ट के बारे में पढ़ा। इसके बाद इस खेल में रुचि पैदा हो गई। परिवार वालों को बताया। राजधानी देहरादून स्थित अकादमी में प्रशिक्षण शुरू करने की मंशा जाहिर की, तो परिवार में तरह-तरह की बातें होने लगी। स्वाति ने 2020 में अपने पिता को कोविड के कारण खो दिया था। उनकी मां एक सरकारी कर्मचारी हैं। वे चाहती थी कि बेटी कॉलेज खत्म करे और नौकरी हासिल करे। उनके परिवार के पुरुष सदस्य भी उनके प्रस्ताव के खिलाफ थे। स्वाति बताती हैं कि मेरे दादा और चाचा चिंतित थे। उन्हें जब पता चला कि एमएमए में पंचिंग और किकिंग शामिल है तो वे परेशान हो गए। उन्होंने मुझसे कहा कि तुमसे कोई शादी नहीं करेगा। अगर तुम्हारे चेहरे पर चोट लग गई तो क्या होगा?स्वाति के मन में एमएमए के प्रति जुनून सवार हो चुका था। वह इस खेल से जुड़ना ही चाहती थीं। उन्होंने अपनी मां को समझाना शुरू किया। आखिरकार, बेटी की जिद के आगे मां पिघल गईं। स्वाति बताती हैं कि मैंने उन्हें इस खेल के बारे में समझाया। उन्हें विश्वास दिलाया कि मैं इसमें अपना करियर बना सकती हूं। परिवार को गौरवान्वित कर सकती हूं। स्वाति का 11 साल का भाई और 14 साल की बहन फैसले के पीछे मजबूती से खड़े थे। स्वाति पिछले नवंबर में देहरादून आई। बीकॉम द्वितीय वर्ष की छात्रा ने बताया कि मुझे अपनी मां का समर्थन प्राप्त है। मुझे खुशी है कि मेरे छोटे भाई-बहनों को अपनी दीदी पर गर्व है।लड़कियां सीख रही हैं एमएमएअंगद के म्यूटेंट एमएमए प्रशिक्षण अकादमी में अभी करीब 7 लड़कियां प्रशिक्षण हासिल कर रही हैं। एमएमए अकादमी की अन्य शाखाओं में भी लड़कियां प्रशिक्षण ले रही हैं। क्या एमएमए में बॉक्सिंग, किकिंग और ग्रैपलिंग उन्हें विचलित नहीं करते? इस सवाल पर लड़कियों के चेहरे की मुस्कान जवाब दे देती है। टिहरी गढ़वाल की 18 वर्षीय सान्वी नेगी कहती हैं कि इसका विपरीत प्रभाव पड़ता है। अपने परिवार के साथ देहरादून में रहने वाली सान्वी कहती हैं कि मैं स्कूल में हमेशा आउटडोर खेलों में भाग लेती थी। मैं लड़कों के साथ फुटबॉल खेलती थी। स्कूल खत्म करने के बाद मैं खेलों में शामिल होना चाहती थी, लेकिन सामान्य खेलों में नहीं। मैं समाज में नाम कमाने के लिए कुछ अलग खोज रही थी। बीसीए प्रथम वर्ष की छात्रा कहती हैं कि एमएमए के पास वह है, जिसकी उसे तलाश थी। हालांकि, सान्वी को भी घर में प्रतिरोध का सामना करना पड़ा। सान्वी की मां एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता हैं। पहले तो उन्होंने एमएमए के लिए बेटी को प्रशिक्षित कराने से मना कर दिया। सान्वी जब पांच साल की थी, तब उनके पिता की टीबी रोग से मृत्यु हो गई थी। उनकी मां ने अपने दो बच्चों को अपने भाई की मदद से पाला था। जब सान्वी ने उन्हें अंगद की अकादमी को पास से दिखाया तो वह मान गई। वह दिन सान्वी के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था। वे कहती हैं कि मैंने अपने राज्य और देश के लिए सम्मान लाने के लिए एक पेशेवर फाइटर बनने के लिए प्रशिक्षण लेने का फैसला किया। कॉम्बैट स्पोर्ट ने पहले ही सान्वी के कॉलेज जीवन पर अपनी छाप छोड़ी है। वे कहती हैं कि लड़के अब मेरे या मेरे दोस्तों के साथ दुर्व्यवहार करने की हिम्मत नहीं करते। जब मैं कॉलेज के गलियारे में चलती हूं तो वे कहते हैं कि उसके साथ खिलवाड़ मत करो। वह एक एमएमए फाइटर है।योग प्रशिक्षक से एमएमए फाइटर तकस्वाति और सान्वी के विपरीत शिवानी बरमारा पहले से एक वकील और योग प्रशिक्षक थीं। उन्होंने पिछले साल नवंबर में अंगद की अकादमी में एमएमए के लिए प्रशिक्षण लेने का फैसला किया। पौड़ी गढ़वाल जिले की 26 वर्षीय शिवानी का कहना है कि एमएमए ने हमारा आत्मविश्वास बढ़ाया है। प्रशिक्षण के दौरान सभी घूंसे और लात मारने से मैं शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत हो गई हूं। इसने जीवन के प्रति मेरे समग्र दृष्टिकोण को बदल दिया है। मैं अब किसी भी पुरुष प्रधान सार्वजनिक स्थान पर अपने लिए लड़ सकती हूं। दूसरों का बचाव भी कर सकती हूं।लड़कियों में होता है लड़ने का जज्बाएमएमए अकादमी चलाने वाले 27 वर्षीय अंगद इस बात से सहमत हैं कि खेल का लड़कियों पर जीवन बदलने वाला प्रभाव पड़ता है। उनके पास हमेशा जीवन के प्रति कभी हार न मानने वाला दृष्टिकोण होता है। उन्हें कोई नहीं रोक सकता। उनकी सफलता आंशिक रूप से उत्तराखंड की लड़कियों की एमएमए में बढ़ती रुचि का कारण है। स्वाति कहती हैं कि सोशल मीडिया पोस्ट में हमारे ट्रेनर के बारे में पढ़ने के बाद मुझे एमएमए के बारे में पता चला। फिर मैंने सोचा, क्यों न इस खेल के लिए प्रशिक्षण लिया जाए? पहाड़ियों से आज तक शायद ही कोई महिला एमएमए फाइटर्स हैं। बरेली की गीता अरियाल 32 साल की उम्र में अंगद की अकादमी में आई हैं। उनकी उम्र अधिक है, लेकिन वह एमएमए की वैश्विक अपील से प्रेरित हैं। इसे करियर के रूप में लेना चाहती हैं।गीता फाइटिंग फिट रहने के लिए अपनी डाइट को लेकर अतिरिक्त सावधानी बरतती हैं। वे कहती हैं कि जैसा कि यह एक पूरी तरह से मुकाबले वाला खेल है। हम जोरदार प्रशिक्षण वाली दिनचर्या के लिए पोषण और फिटनेस के महत्व को समझते हैं। हम अपने दैनिक आहार में प्रोटीन पर जोर देते हैं। हरी पत्तेदार सब्जियां, दुग्ध उत्पाद, मांस और सूखे मेवे इसके लिए बहुत जरूरी हैं।ऐसे मिलती है करियर ऑपरचुनिटीरुद्रप्रयाग जिले की 23 वर्षीय भूमि जगवान गंगहो कहती हैं कि लड़कियों ने बहादुरी से चुनाव किया है। लेकिन, क्या एमएमए एक व्यवहार्य करियर है? अकादमी के कैफे और सोशल मीडिया का प्रबंधन करने वाली भूमि कैश फ्लो को समझती हैं। एकाउंटेंट की नौकरी छोड़कर अकादमी से जुड़ने वाली भूमि कहती हैं कि एक बार जब कोई खिलाड़ी शौकिया स्पर्धाओं को जीतकर अपना नाम बना लेती हैं, तो उन्हें पेशेवर टूर्नामेंट में लड़ने का मौका मिलता है। वहां वह 50 हजार रुपए से लेकर 2.5 लाख रुपए के बीच कमाई कर सकती हैं। एमएमए प्रशिक्षण में प्रशिक्षुओं को रेडी टू फाइट तैयार किया जाता है।दुनिया भर में लोकप्रिय एमएमए को जापान जैसे देशों में बढ़ावा दिया जा रहा है। मार्शल इसमें प्रभावी भूमिका निभ्भाता है। एमएमए में कुछ नियमों के साथ प्रतियोगिताओं में विभिन्न युद्ध शैलियों के प्रतियोगियों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा किया जाता है। बाद के समय में इसमें कई नए प्रयोग हुए हैं। खिलाड़ियों ने कुछ नई तकनीकों को अपने आर्ट में शामिल किया। अब यह खेल पेशा का रूप ले चुका है। उत्तरी अमेरिका और दुनिया के कई हिस्सों में यह काफी लोकप्रिय है।