जानिए क्यों पाकिस्तान को दर्द से तड़पा देगा गहरे समंदर से मिला यह छोटा सा टुकड़ा

नई दिल्ली: कितने गाजी आए, कितने गाजी गए… लेफ्टिनेंट जनरल के.जे.एस. ‘टाईनी’ ढिल्‍लों की किताब का यह टाइटल पाकिस्तान को रह-रहकर दर्द देता है। दरअसल में युद्ध की तस्वीर बदलने वाला असली फैक्टर भारत का आईएनएस विक्रांत था। इस लड़ाई में पाकिस्तान ने आईएनएस विक्रांत को डुबोने के लिए अपनी नेवल सबमरीन गाजी को भेजा था, जिसे आईएनएस राजपूत ने 3 और 4 दिसंबर 1971 की मध्यरात्रि को डुबो दिया था। आज बरसों बाद फिर से गाजी के डूबने के दर्द से पाकिस्तान कराह रहा है। दरअसल भारतीय नौसेना ने अपनी नई अंडरवाटर खोज और बचाव तकनीक ‘डीप सबमरजेंस रेस्क्यू व्हीकल’ की मदद से विशाखापत्तनम शहर के तट के पास पाकिस्तानी पनडुब्बी पीएनएस-गाजी के मलबे का पता लगाया है। आइए जानते हैं गाजी और उसको नेस्तनाबूद होने की पूरी कहानी। जब गाजी के कप्तान के पास आया वो मैसेज…पाकिस्तान के पास गाजी एक ऐसी पनडुब्बी थी जिसमें समुद्री एरिया में जाकर टारगेट को निशाना बनाने की क्षमता थी। पाकिस्तान को भी यह पता था कि यदि वो विक्रांत को नुकसान पहुंचाने में कामयाब हुआ तो वह भारत पर युद्ध में बढ़त बना लेगा। 8 नवंबर 1971 को पीएनएस गाजी के कप्तान के पास यह मैसेज पहुंचता है कि आईएनएस विक्रांत को तबाह करने की जिम्मेदारी उन्हें दी गई है। 1971 स्टोरीज ऑफ ग्रिट एंड ग्लोरी फ्रॉम इंडो पाक वॉर में लिखा गया है कि बंबई से एक पाकिस्तानी जासूस ने अपने हैंडलर्स आईएनएस विक्रांत की जानकारी दी। 8 नवंबर 1971 को जब भारतीय मेजर की ओर से ढाका और कराची के बीच जाने वाले संदेशों को सुनने की कोशिश की गई और अचानक उस दिन कई मैसेज जा रहे थे। भारत को इसका आभास तो हो गया कि कुछ बड़ा होने वाला है लेकिन बात पूरी तरह डिकोड नहीं हो पा रही थी कि आखिर पाकिस्तान की चाल क्या है। 10 नवंबर को वो कोड डिकोड हो गया। वहीं पहली बार यह पता चला कि पाकिस्तानी नौसेना कैसे भारतीय पोत आईएनएस विक्रांत को डुबो देना चाहता है। … और समंदर में ‘कब्रगाह’ बन गई गाजीभारत को जब यह पता चल गया तो उसकी ओर से भी पाकिस्तान को चकमा देने की तैयारी की गई और उसे ऐसा जख्म दिया गया जिसे वो आज तक भूल नहीं पाया है। भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान को चकमा दिया और आईएनएस राजपूत को आईएनएस विक्रांत बनाकर पेश किया। पाकिस्तानी पनडुब्बी गाजी आईएनएस राजपूत को भी तबाह नहीं कर पाया उसके विपरीत गाजी ही तबाह हो गया। पाकिस्तानियों को यह इनपुट था कि विक्रात विशाखापट्टनम में खड़ा है। भारत को यह पूरी जानकारी हो गई थी कि पाकिस्तान आखिर चाहता क्या है। पाकिस्तान को चकमा देने के लिए ऐसी तैयारी भारत ने बहुत जल्द की जिसकी उसकी भनक भी नहीं लगी। 1971 की भारत-पाक जंग के दौरान 4 दिसंबर को पाकिस्तानी पनडुब्बी PNS-गाजी डूब गई। इस पनडुब्बी में 93 लोग सवार थे, जिसमें 11 अधिकारी और 82 नाविक सवार थे। यह घटना तब हुई जब पनडुब्बी विशाखापत्तनम के तट के पास थी, जिसे विज़ाग के नाम से भी जाना जाता है। इस हादसे के बाद छोटा सा मछली पकड़ने वाला शहर विजाग दुनियाभर में चर्चा में आ गया था। इस घटना को उस युद्ध का एक महत्वपूर्ण मोड़ माना जाता है, जिसके परिणामस्वरूप 1972 में बांग्लादेश का निर्माण हुआ था। विजाग ने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाया था। पाकिस्तानी पनडुब्बी PNS गाजी के डूबने को भारत की पहली बड़ी और निर्णायक सैन्य जीत के तौर पर देखा जाता है। कराची से चुपके-चुपके विशाखापत्तनम पहुंची गाजीपाकिस्तान ने अमेरिका से बनी पनडुब्बी गाजी को भारत के पूर्वी तट पर माइन बिछाने और भारतीय युद्धपोत INS विक्रांत को नष्ट करने के लिए भेजा था। गाजी ने 14 नवंबर, 1971 को कराची से चलकर चुपके से भारतीय प्रायद्वीप के चारों ओर 4,800 किलोमीटर की यात्रा की और विज़ाग तट पर पहुंची। भारतीय नौसेना ने अपने विध्वंसक INS राजपूत को भेजा, जिसने गाजी का पीछा किया और उस पर गहराई के बम गिराए, जिससे वह डूब गई। भारतीय नौसेना के विशेष पनडुब्बी बचाव यान, DSRV ने PNS गाजी के मलबे को लगभग 100 मीटर की गहराई में और विशाखापत्तनम तट से करीब 2 से 2.5 किलोमीटर दूर खोज निकाला है। हालांकि, भारतीय नौसेना के जवान भारतीय नौसेना की परंपराओं के अनुसार और शहीदों के सम्मान में मलबे को नहीं छूते हैं।समंदर की गहराई में दूसरे विश्व युद्ध के निशान बंगाल की खाड़ी में सिर्फ पाकिस्तानी पनडुब्बी पीएनएस गाजी ही नहीं है, जो विशाखापत्तनम के पास समुद्र तल पर पड़ी है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान (12 फरवरी, 1944) जापानी नौसेना की एक पनडुब्बी (आरओ-110) को भी अविभाजित विशाखापत्तनम जिले के रामबिल्ली इलाके के पास ही डुबो दिया गया था। उस जहाज को ऑस्ट्रेलियाई जहाज एचएमएएस लाउंसेस्टन और भारतीय जहाज एचएमआईएस जुमना ने गहराई में विस्फोटक फेंककर डुबोया था। अनुभवी नौसेना के जवानों ने बताया कि विशाखापत्तनम के तट के पास समुद्र तल पर दो पनडुब्बियां पड़ी हैं। हालांकि, नौसेना ने जापानी पनडुब्बी को नहीं छुआ है क्योंकि जवान मानते हैं कि यह उन बहादुरों की अंतिम विश्राम स्थली है और उन्हें शांति से रहने देना चाहिए। उन्होंने बताया कि अब तक डीएसआरवी ने केवल पाकिस्तानी पनडुब्बी पीएनएस-गाजी के मलबे का पता लगाया है। एक गलती पाकिस्तान को पड़ गई भारी!71 में पूर्वी कमान के चीफ वाइस एडमिरल एन कृष्णन ने अपनी आत्मकथा अ सेलर्स स्टोरी में लिखा है कि आईएनएस राजपूत को विशाखापट्टनम से 160 KM की दूरी पर ले जाया गया और आईएनएस विक्रांत के कॉल साइन का प्रयोग करे। विक्रांत की रेडियो फ्रीक्वेंसी पर उससे भारी मात्रा में रसद की मांग करने को कहा गया जो एक बड़े जहाज के लिए जरूरी होता है। आईएनएस राजपूत को पाकिस्तान INS विक्रांत समझने की गलती कर बैठा। गाजी को लेकर अलग-अलग दावे भी किए जाते हैं। एक बात यह भी है कि भारत-पाकिस्तान का युद्ध शुरू होने से पहले ही भारत ने गाजी को तबाह कर दिया। 3 दिसंबर 1971 को भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो चुका था। इंडियन नेवी भी इसमें शामिल थी। 4 दिसंबर को इंडियन नेवी की ओर पाकिस्तान नेवी पर हमला किया गया। 4 दिसंबर को आईएनएस निर्घट ने पाकिस्तान के जहाज पीएनएस खैबर पर मिसाइल दागी। एक हमले से अभी कुछ समझ पाते कि दूसरी मिसाइल से खैबर डूब गया। पीएनएस शाहजहां पर भी हमला किया गया और उसे भी बहुत नुकसान पहुंचा। नेवी ने इस पूरे ऑपरेशन को ऑपरेशन ट्राइटेंड का नाम दिया। भारत को इस ऑपरेशन में कोई नुकसान नहीं पहुंचा लेकिन पाकिस्तान की ओर भारी तबाही हुई।