भारत का अंतरिक्ष का सपना साकार करने वाले साइंटिस्ट, विक्रम साराभाई के बारे ये बातें जानते हैं

नई दिल्ली : गुजरात के अहमदाबाद में साल 1919 में एक बच्चे का जन्म हुआ। यह बच्चा जब दो साल का था तब इनके यहां गुरुदेव रविंद्र नाथ टैगोर पहुंचे थे। उन्होंने जब इस इस छोटे बालक को देखा तो यह भविष्यवाणी की थी कि यह भविष्य में एक प्रसिद्ध व्यक्ति बनेगा। घर का माहौल ऐसा था कि इस बच्चे के व्यक्तित्व पर देश के महान व्यक्तियों का प्रभाव पड़ा। इन लोगों में गुरुदेव रविंद्रनाथ से लेकर सरोजिनी नायडू, मौलाना आजाद, सीवी रमन, जे. कृष्णमूर्ति, वीएस श्रीनिवास शामिल थे। ये लोग जब भी अहमदाबाद आते तो इस बच्चे के घर पर जरूर पहुंचते थे। इसकी वजह थी कि इस बच्चे के पिता अंबालाल साराभाई अहमदाबाद के मशहूर उद्योगपति और सामाजिक क्षेत्र में काफी सक्रिय थे। साइकिल से करतब दिखाते थे विक्रम बचपन से ही साहसी और रचनात्मक प्रवृत्ति के थे। 8 साल की उम्र में इन्होंने साइकिल चलाना सीख लिया था। इसके बाद वे साइकिल के अपने करतब से लोगों को आश्चर्यचकित कर देते थे। विक्रम जब पांच साल के थे तब पूरा परिवार शिमला चला गया। वहां उन्होंने देखा कि उनके पिता के ऑफिस में कई लेटर रोज आते थे। इसके बाद उन्होंने अपने पिता के ऑफिस से कुछ लिफाफे ले लिए। उनपर अपने घर का नाम, पता लिखकर पोस्टऑफिस में छोड़ आते। इसके बाद उनके पास रोज लेटर आने लगे। पिता ने जब देखा तो उनसे इस बारे में पूछा। इस पर विक्रम ने कहा कि वह खुद ही अपने को लेटर लिखते हैं। कश्मीर का पीएचडी कनेक्शनविक्रम का परिवार गर्मियों की छुट्टियों में हमेशा कश्मीर जाया करता था। विक्रम गर्मियों की छुट्टियों के दौरान भी अपने कॉस्मिक किरणों का रिसर्च का काम जारी रखते थे। विक्रम साराभाई 1945 में कैंब्रिज गए। खास बात है कि उन्होंने तीन साल पहले से ही इसकी पढ़ाई शुरू कर दी थी। कश्मीर में अल्पथारी झील के किनारे समुद्री तट से करीब 13 हजार फीट की ऊंचाई पर साराभाई ने अपने रिसर्च काम किया। यहां यूज में लाए साधन, सामग्री की फोटो को पूरी डिटेल के साथ उन्होंने अपने पीएचडी की थीसिस में शामिल किया। कैंब्रिज से अहमदाबाद आने के बाद उन्होंने फिजिकल रिसर्च लैबोरेट्री स्थापित की। पहले रंगीन कपड़ों का था शौकविक्रम साराभाई को अपने जीवन के शुरुआती समय में रंगीन कपड़ों का बड़ा शौक था। वे अक्सर हरा, गाढ़ा नीला, लाल रंग को तवज्जो देते थे। वे हर दिन अलग-अलग रंग के कपड़े पहनते थे। हालांकि, बाद में उनका यह शौक जाता रहा। वे बाद में पायजामा और सादा कुर्ता के साथ खड़ाऊ पहनने लगे। उनकी वेशभूषा हमेशा सादा ही रहने लगी। बुद्धि का सारविक्रम साराभाई हमेशा दो बातों पर बहुत जोर देते थे। ये वाक्य ही उनकी बुद्धिमत्ता का सार हैं। विक्रम का मानना था कि मात्र अनुभव को अधिक महत्व नहीं दिया जाना चाहिए। विक्रम का कहना था कि जो शोर के बीच में भी संगीत सुन सकता है, वह मूल्यवान उपलब्धि हासिल कर सकता है। विक्रम साराभाई ने आईआईएम अहमदाबाद, कम्युनिटी साइंस सेटर, अहमदाबाद, विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर, तिरुवनंतपुरम, फास्टर ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर, कलपक्कम समेत कई बड़े संस्थानों की नींव रखी। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन () की स्थापना उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक थी। उन्होंने रूसी स्पुतनिक प्रक्षेपण के बाद भारत जैसे विकासशील देश के लिए अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्व के बारे में सरकार को सफलतापूर्वक आश्वस्त किया। भाभा के उत्तराधिकारीन्यूक्लियर पावर कमिशन के अध्यक्ष होमी जहांगीर भाभा का 1966 में देहांत हो गया। उनका उत्तराधिकारी ढूंढना बहुत मुश्किल काम था। ये सवाल था कि अब भाभा के बाद उनका उत्तराधिकारी कौन होगा। आखिरकार इस सवाल का जवाब विक्रम साराभाई के रूप में मिला। विक्रम साराभाई ने ना केवल न्यूक्लियर आयोग का काम जारी रखा बल्कि भाभा के सपने को पूरा करने में भी अहम भूमिका निभाई। 29 दिसंबर 1971 को साराभाई त्रिवेंद्रम में रॉकेट छोड़ने के लिए थुंबा केंद्र पर मौजूद थे। यहीं उनका निधन हो गया। साराभाई का नाम भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के साथ हमेशा लिया जाता रहेगा।। यह साराभाई ही थे जिन्होंने अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में भारत को अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर स्थापित किया। उन्होंने अन्य क्षेत्रों में समान रूप से अग्रणी योगदान दिया। उन्होंने कपड़ा, फार्मास्यूटिकल्स, परमाणु ऊर्जा, इलेक्ट्रॉनिक्स और कई अन्य क्षेत्रों में लगातार काम किया।