देहरादून: में 2013 में सलेक्शन हुआ। लेकिन बाद में उन्हें बर्खास्त कर दिया गया। इसके कुछ साल बाद 2019 में पड़ोसी राज्य उत्तराखंड की न्यायिक परीक्षा में पहली रैंक हासिल की। लेकिन अब उन्हें वहां से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। आखिर यह माजरा क्या है, आइए समझते हैं। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पूर्व जज राहुल सिंह की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने परीक्षा में टॉप किए जाने के बावजूद नियुक्ति से इनकार कर दिया गया था। हाई कोर्ट ने ऐसा इसलिए किया क्योंकि याचिकाकर्ता ने यूपी के ओरैया जिले में बतौर मजिस्ट्रेट अपने पूर्व कार्यकाल की अहम जानकारी को छिपाया था। दरअसल, राहुल सिंह का चयन 2013 में यूपी न्यायिक सेवा में हो गया था। वह ओरैया में ज्यूडिशल मजिस्ट्रेट के तौर पर कार्यरत थे। लेकिन अगले ही साल 2014 में उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। सितंबर 2014 में राहुल अपने साथी प्रोबेशनर्स के साथ लखनऊ के रिजॉर्ट में पार्टी करने आए थे, जहां शराब के नशे में एक सहयोगी प्रोबेशनर के साथ हाथापाई हो गई। इस घटना के बाद 11 प्रोबेशनर्स पर ऐक्शन लिया गया था। राहुल सिंह इसके बाद वकील के तौर पर प्रैक्टिस करने लगे। कुछ साल के बाद अप्रैल 2019 में उत्तराखंड हाई कोर्ट ने राज्य की उच्च न्यायिक सेवा के लिए भर्ती निकाली। सिंह ने अप्लाई किया। परीक्षा दिया और रिजल्ट में टॉप कर गए। उस समय उन्होंने इस बात का जिक्र किया कि यूपी में 4 जून 2013 से 27 सितंबर 2014 तक ज्यूडिशल मजिस्ट्रेट रह चुके हैं। उत्तराखंड हाई कोर्ट ने इस बारे में इलाहाबाद हाई कोर्ट से जानकारी तलब की। तब जाकर पता चला कि उनकी प्रोबेशन सेवा को टर्मिनेट कर दिया गया था। इसके बाद उत्तराखंड हाई कोर्ट ने भी उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसके बाद राहुल सिंह ने जून 2021 हाई कोर्ट का रूख किया। चीफ जस्टिस विपिन सांघी और जस्टिस राकेश थपलियाल की बेंच ने जरूरी जानकारी को छिपाने के लिए उत्तराखंड हाई कोर्ट के ऐक्शन को सही ठहराया। और राहुल की याचिका खारिज हो गई।