दिल्ली के बाद AAP की अगली परीक्षा, जानिए केजरीवाल के सामने क्या है इम्तहान

लेखक: राज कुमार सिंहदिल्ली की सत्ता गंवाने के कारण AAP को समाप्त मान लेना विरोधियों का उतावलापन ही होगा। लेकिन दिल्ली से पंजाब तक चुनौतियां बेहद गंभीर हैं। बेशक, अतीत में कुछ दल और नेता चुनावी पराजय के कोहरे के बाद फिर सत्ता-राजनीति में चमकने में कामयाब रहे हैं। लेकिन AAP की स्थितियां अलग हैं। उसका भविष्य सबसे ज्यादा संस्थापक-राष्ट्रीय संयोजक केजरीवाल के राजनीतिक आचरण पर निर्भर करेगा।वादों पर अमलजन लोकपाल की मांग को लेकर अन्ना हजारे के आंदोलन से सुर्खियों में आए अरविंद केजरीवाल और उनके साथियों द्वारा गठित AAP को 2013 और फिर 2015 में दिल्ली की सत्ता बिना ज्यादा कुछ किए, तश्तरी में रखी मिल गई। उसमें अन्ना आंदोलन से बनी श्रीमान ईमानदार की छवि और देश को दिखाए गए वैकल्पिक राजनीति के सपनों की बड़ी भूमिका रही। हां, 2020 के विधानसभा चुनाव में AAP की जीत में अवश्य चुनावी वायदे पूरे करने की निर्णायक भूमिका रही। बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में केजरीवाल ने जो भी लोक-लुभावन वायदे किए, उन पर अमल किया। उससे ज्यादा की न तो उन्होंने बात की और न ही मतदाताओं ने अपेक्षा।सीमाएं उजागर हुईं2020 के बाद कोरोना समेत बदले हालात से उत्पन्न चुनौतियों ने आंदोलन से जनमी इस पार्टी की राजनीति और मुफ्त रेवड़ी के शासन-मॉडल, दोनों की सीमाएं उजागर कर दीं। यमुना सफाई और स्वच्छ पेयजल सप्लाई जैसे अधूरे वादों का कारण केजरीवाल भले ही कोरोना और फिर जेल के खेल को बताएं, सच यही है कि उनके और केंद्र सरकार के बीच निरंतर तकरार से दिल्ली जरूरी विकास कार्यों तक से वंचित रही।मतदाताओं को मोहभंग27 साल बाद सत्ता में वापसी के लिए BJP ने केजरीवाल के ‘मुफ्त रेवड़ी कल्चर’ का भी सहारा लिया, लेकिन AAP की हार के पीछे मतदाताओं का मोहभंग सबसे बड़ा कारण रहा। इसीलिए BJP का मत प्रतिशत तो 3.6 ही बढ़ा, लेकिन AAP का 10 प्रतिशत कम हो गया। पिछले दो चुनाव में खाता खोलने में नाकाम कांग्रेस का भी मत प्रतिशत 2.8 बढ़ गया। केजरीवाल की अग्निपरीक्षा यही होगी कि मतदाताओं के मोहभंग के बीच वह अपनी विश्वसनीयता कैसे बहाल कर पाते हैं।साख पर सवालहमारी व्यवस्था में सच की तलाश भूसे के ढेर में सुई खोजने जैसा है। इसीलिए राजनीति में अक्सर सच से ज्यादा प्रभावी जनता की धारणा साबित होती है। शराब घोटाले और शीश महल का सच पता नहीं कब सामने आएगा, लेकिन फिलहाल उनसे केजरीवाल की साख पर लगे सवालिया निशान उनकी चुनावी पराजय सुनिश्चित कर गए। मतदाताओं का विश्वास गंवा कर वापस पाना हमेशा मुश्किल होता है, पर उसके अलावा AAP के पास कोई विकल्प नहीं।भगदड़ मचने का डरचुनाव पूर्व दलबदल भारतीय राजनीति का स्थायी चरित्र बन गया है, लेकिन AAP में ऐसी भगदड़ पहले कभी नहीं दिखी। दिल्ली की सत्ता गंवाने और केजरीवाल के खुद भी चुनाव हार जाने के बाद भगदड़ और भी तेज हो सकती है। अगर कैलाश गहलोत मंत्री पद छोड़कर दलबदल कर सकते हैं तो अब पूर्व मंत्री और विधायक क्यों नहीं? आठ फरवरी को दिल्ली के चुनाव परिणाम आए और 11 फरवरी को केजरीवाल ने पंजाब के आप विधायकों की दिल्ली में बैठक बुला ली। 117 सदस्यीय विधानसभा में 92 विधायकों के साथ पंजाब में AAP की प्रचंड बहुमत वाली सरकार है। अगर वहां उसे टूट का डर सता रहा है, तो दिल्ली को कौन बचा सकता है?दिल्ली का मेयर कौनदरअसल, केजरीवाल के समक्ष अब चुनौतियां अपार हैं और समय एवं संसाधन बेहद सीमित। उन्हें कानूनी मोर्चे पर भी कई लड़ाई लड़नी हैं, लेकिन सबसे अहम होंगी राजनीतिक चुनौतियां। 22 विधायकों में टूट की आशंका के बीच AAP के समक्ष पहली चुनौती दिल्ली नगर निगम में सत्ता बचाने की होगी। इस बीच 11 पार्षदों की खाली सीटों के लिए उपचुनाव होंगे। अगर AAP उपचुनाव के जरिये बहुमत बरकरार रखने में सफल नहीं रही तो पहला झटका मेयर चुनाव में ही लग जाएगा।पंजाब मॉडल कितना कारगरदूसरी बड़ी चुनौती 2027 में होने वाले पंजाब विधानसभा चुनाव हैं। बेशक 2022 के विधानसभा चुनाव में मतदाताओं ने AAP को ऐतिहासिक बहुमत दिया था, लेकिन उसका आधार बहुप्रचारित दिल्ली मॉडल था। अब जबकि दिल्ली मॉडल को दिल्ली में ही मतदाताओं ने खारिज कर दिया है, पंजाब को देश भर में मॉडल की तरह पेश करना होगा। लगभग तीन साल में मुख्यमंत्री भगवंत मान अच्छी छाप नहीं छोड़ पाए हैं। एक हजार रुपये मासिक महिला सम्मान का वायदा अभी तक अधूरा है तो राज्य पर कर्ज का बोझ बढ़ता जा रहा है। सीमावर्ती राज्य में खराब कानून-व्यवस्था भी गंभीर चिंता का विषय है।नेतृत्व परिवर्तन के खतरेपंजाब में नेतृत्व परिवर्तन का दांव जोखिम भरा है, इसलिए केजरीवाल को पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक की भूमिका में ही पंजाब सरकार के शासन-मॉडल को ‘चुनाव जिताऊ’ बनाना होगा, वरना लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अपनी वापसी का संकेत दे चुकी है।मजबूत जमीन की दरकारबदलती राजनीतिक परिस्थितियों में BJP और शिरोमणि अकाली दल में दोबारा गठबंधन से भी इनकार नहीं किया जा सकता। इसलिए आने वाले वक्त में दिल्ली से पंजाब तक असली परीक्षा केजरीवाल की होनी है, जिसके परिणाम पर उनके साथ ही AAP का भी भविष्य निर्भर करेगा। जाहिर है, अपने पैरों के नीचे मजबूत जमीन के बगैर विपक्षी ब्लॉक I.N.D.I.A. में भी उन्हें कोई नहीं पूछेगा।(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं)