पटना: वो दिखने में साधारण से व्यक्तित्व के हैं। गरीबों के लिए काम करते हैं। हमेशा सर्वहारा के लिए आवाज उठाते हैं। सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के पहली बार विधायक बने मनोज मंज़िल ने हत्या के एक मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद बिहार विधानसभा की सदस्यता खो दी है। वे राज्य में सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के 12 विधायकों में से एक हैं। 40 वर्षीय दलित नेता, मंज़िल 2020 के विधानसभा चुनावों में भोजपुर जिले के अगिआंव निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए थे। को आरा के एमपी/एमएलए कोर्ट ने हाल ही में जेपी सिंह नाम के एक व्यक्ति की हत्या के 2015 के एक मामले में 22 अन्य लोगों के साथ आजीवन कारावास की सजा सुनाई। मंज़िल, जो 30 अन्य मामलों का भी सामना कर रहे हैं। उन्होंने कोर्ट के फैसले को पटना हाई कोर्ट में चुनौती दी है। मनोज मंजिल की कहानीजिस हत्या के मामले के कारण उन्हें विधायक के रूप में अयोग्य घोषित किया गया, वह 2015 के विधानसभा चुनावों के अभियान से जुड़ा था। कहा जाता है कि सीपीआई (एमएल) लिबरेशन की एक सार्वजनिक बैठक, जो उस समय अज़ीमाबाद के पास बड़गांव गांव में हो रही थी, पार्टी सदस्यों को एक पार्टी कार्यकर्ता सतीश यादव की हत्या के बारे में पता चला था। माले नेता आरोप लगाते हैं कि प्रतिशोध में, सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के सदस्यों पर स्थानीय उच्च जाति के राजपूतों ने जेपी सिंह की हत्या का आरोप लगा दिया। सीपीआई (एमएल) लिबरेशन ने मंज़िल की सजा को “न्यायिक नरसंहार का कार्य और सामंतवादी साजिश का हिस्सा” कहा है।सड़क पर उतरेगी पार्टी ‘इंडियन एक्सप्रेस’ से बातचीत में सीपीआई (एमएल) लिबरेशन के बिहार मीडिया प्रभारी कुमार परवेज ने कहा है कि हमें अभी भी और आज तक ये यकीन नहीं है कि वो शव जेपी सिंह का था भी या नहीं। गरीबों के लिए मंज़िल की सक्रियता के कारण उनके खिलाफ अन्य मामले चलाए जा रहे हैं। ये सब राजनीति से प्रेरित है। वहीं इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में माले के बिहार सचिव कुणाल ने कहा कि उनकी पार्टी के कार्यकर्ता अदालत के फैसले के विरोध में और मंजिल के लिए न्याय की मांग करेंगे। 19 फरवरी से 25 फरवरी के बीच भोजपुर के सभी गांव का दौरा करेंगे।शिक्षा को लेकर चलाया अभियानअखबार की ओर से अपनी रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षों में, भोजपुर बिहार में कई समाजवादी और किसान आंदोलनों से जुड़ा हुआ है। मंजिल की शुरुआत भी छात्र राजनीति की सक्रियता से हुई। जब वे आरा के वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय में पढ़ रहे थे, तब वे ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा) से जुड़े थे। 2006 से, मंज़िल ने भोजपुर में अपनी पकड़ बनानी शुरू कर दी और अपने काम के कारण स्थानीय निवासियों के बीच लोकप्रिय हो गए। उनका “सड़क पर स्कूल” अभियान भी उसी समय शुरू हुआ था। मनोज मंजिल बिहार की शिक्षा प्रणाली पर गंभीर सवाल खड़े करते रहे हैं। उनका बिहार में कक्षा-विहीन, भवन-विहीन और शिक्षक की कमी वाले अभियान पर नीतीश कुमार ने भी संज्ञान लिया था।पत्नी भी पार्टी की सदस्य अपनी सक्रियता के कारण, मंजिल ने राज्य में “खराब शिक्षा प्रणाली” के खिलाफ “योद्धा” होने की प्रतिष्ठा हासिल की। भोजपुर में सीपीआई (एमएल) लिबरेशन का समर्थन आधार होने के कारण, मंजिल जल्द ही एक लोकप्रिय पार्टी फायरब्रांड के रूप में उभरने लगे और उन्हें चुनाव में उतारा गया। जेपी सिंह की हत्या में जांच के प्रारंभिक चरण में उनकी गिरफ्तारी के बावजूद, मंज़िल को 2015 के विधानसभा चुनाव में अगिआंव से मैदान में उतारा गया। लेकिन उन्हें केवल 30,000 वोट मिले और हार गए। बाद में उन्होंने 2020 का चुनाव जदयू के प्रभुनाथ प्रसाद से 37,000 से अधिक मतों के अंतर से जीता। उनके 2020 के चुनावी हलफनामे के अनुसार, मंज़िल जिन मामलों का सामना कर रहे हैं उनमें हत्या, हत्या का प्रयास, आपराधिक धमकी और धोखाधड़ी जैसे मामले शामिल हैं। उनके पास 3 लाख रुपये से ज्यादा की संपत्ति है। मंजिल की पत्नी शीला कुमारी भी सीपीआई (एमएल) लिबरेशन की सक्रिय सदस्य हैं।