कोका-कोला प्लांट मालिक के बेटे की किडनैपिंग, 5 करोड़ की फिरौती, फिर एनकाउंटर में मारा गया श्रीप्रकाश शुक्ला का ये शागिर्द

लखनऊ: दिन शनिवार, तारीख थी 8 नवंबर 1997। शाम का करीब छह बजा था। कोका-कोला बॉटलिंग प्लांट के मालिक और डिस्ट्रीब्यूटर लक्ष्मण दास लधानी का बेटा विवेक महानगर स्थित अपने दफ्तर से घर के लिए निकला। कार कुछ ही आगे बढ़ी कि लाल रंग की एस्टीम कार ने ओवरटेक कर रास्ता रोक लिया। स्टीम से चार युवक तेजी से उतरे और पिस्टल के बल पर विवेक को खींचकर अपनी गाड़ी में बैठा लिया। विवेक के ड्राइवर ने विरोध करने पर अपहरण करने वाले हवाई फायरिंग करते हुए भाग निकले। गोली की आवाज सुन कर कुछ लोग दफ्तर से बाहर आए, लेकिन तब तक अपहरणकर्ता फरार हो चुके थे। विवेक के अपहरण की जानकारी होते ही एसएसपी लखनऊ अरुण कुमार सहित पुलिस के आला अफसर मौके पर पहुंच गए। छानबीन शुरू करने के साथ ही ड्राइवर से पूछताछ हुई। शहर की सीमाओं को सील करने के साथ ही लाल रंग की एस्टीम की तलाश शुरू की गई। अपहरण के चार घंटे ही बीते थे कि लक्ष्मण दास के घर का फोन बच उठा। लक्ष्मण के फोन उठाते ही कॉल करने वाले ने खुद को श्रीप्रकाश शुक्ला बताते हुए विवेक को छोड़ने के लिए पांच करोड़ रुपये मांगे और यह कह कर फोन काट दिया कि फिर बात करूंगा।हटाए गए एसएसपीअपहरण करने वालों का पता लगाने के लिए पुलिस ने लधानी के दफ्तर और घर के फोन टेप करने शुरू किए। लेकिन, दोबारा कोई फोन नहीं आया। उधर, विवेक का सुराग नहीं मिलने से व्यापारियों में आक्रोश बढ़ने लगा। धरना-प्रदर्शन शुरू हो गए। डीजीपी से लेकर प्रमुख सचिव गृह तक ने लखनऊ पुलिस पर जल्द से जल्द खुलासे का दबाव बनाना शुरू कर दिया। चार दिन बीतने के बावजूद पुलिस खाली हाथ थी। आक्रोश कम करने के लिए शासन ने 12 नवंबर 1997 को एसएसपी लखनऊ अरुण कुमार को हटा दिया। …और लौट आया विवेक पुलिस तो कुछ पता नहीं लगा सकी, लेकिन हफ्ते भर बाद विवेक घर लौट आया। जानकारी होते ही पुलिस अधिकारी उसके घर पहुंचे और अगवा करने वालों के बारे में पूछताछ शुरू कर दी। सीओ कैसरबाग के पद पर तैनात रहे राजेश कुमार पाण्डेय बताते हैं कि विवेक बेहद डरा हुआ था। काफी पूछताछ के बाद बताया कि एस्टीम में बैठाते ही बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया था। होश आने पर खुद को एक कमरे में पाया। मिली जानकारी से पुलिस ने अंदाजा लगाया कि दिल्ली में किसी फ्लैट में बंधक बनाकर रखा गया था। उधर, पुलिस से बचने के लिए अपहरणकर्ताओं ने लधानी के रिश्तेदारों से फोन पर संपर्क किया था और फिरौती की रकम मिलने के बाद विवेक को लखनऊ की सीमा पर छोड़ा था। फोन नंबरों की जानकारी जुटाने पर सभी दिल्ली के निकले।पुरुलिया ड्राफ्ट की एके 47 बरामदसीनियर क्राइम रिपोर्टर विष्णु मोहन बताते हैं कि विवेक को दिल्ली में रखने की जानकारी पर तत्कालीन एडिशनल एसपी सत्येंद्र वीर सिंह के नेतृत्व में एक टीम भेजी गई। दिल्ली पुलिस की मदद से लखनऊ पुलिस उस पीसीओ तक पहुंची जहां से फोन किए गए थे। पीसीओ मालिक से पता चला कि फोन करने आने वाला युवक पड़ोस में स्थित दिलशाद गार्डन के एक फ्लैट में रहता था। फ्लैट में ताला लगा मिलने पर पुलिस ने एक मुखबिर को निगरानी का जिम्मा सौंपा। दूसरे ही दिन पता चला कि एक युवक फ्लैट में आया है। सत्येंद्र वीर सिंह की टीम ने तुरंत मौके पर पहुंच युवक को दबोच लिया। हत्थे चढ़ने वाला युवक श्रीप्रकाश शुक्ला का साथी आनंद पाण्डेय था, जो उस समय तक श्रीप्रकाश के साथ हर वारदात में शामिल था। आनंद की निशानदेही पर नरूला रोड स्थित झुग्गी-झोपड़ी के जर्जर मकान से बैग में रखी एक एके 47 रायफल, दो पिस्टल और सौ कारतूस बरामद किए। एके 47 पुरुलिया ड्राफ्ट असलहों में थी, जो आनंद को बिहार के एक तत्कालीन विधायक ने एक हत्या के एवज में छह लाख रुपये के साथ दी थी।आनंद पाण्डेय ने किया था अपहरणआनंद ने बताया कि उसी ने विवेक का अपहरण करने के बाद फिरौती श्रीप्रकाश के नाम पर वसूली की थी। पूछताछ के दौरान ही पता चला कि श्रीप्रकाश से अलग हो चुका है। 25 मई 1997 को कुणाल रस्तोगी के अपहरण की फिरौती मिलने के बाद वह और श्रीप्रकाश बाकी साथियों के साथ कुछ दिन के लिए नेपाल चले गए थे। नेपाल में ही आनंद को पता चला कि श्रीप्रकाश उसकी बहन से फोन पर काफी बात करता था। इसको लेकर दोनों में विवाद हुआ। जानकारी पर बिहार के माफिया सूरजभान उर्फ दादा ने दोनों को अलग-अलग कर दिया था। साथ ही चेताया था कि दोनों एक-दूसरे के काम में पैर नहीं अड़ाएंगे। आनंद ने बताया कि विवेक के अपहरण में उसके साथ राजन तिवारी, बबलू तिवारी और सत्यव्रत राय शामिल थे।24 घंटे तक कार में ही रखापूछताछ में पुलिस को पता चला कि आनंद ने अगवा करने के बाद विवेक को इंजेक्शन लगाकर बेहोश कर दिया था। इसके बाद कार विवेक के दफ्तर से आगे मोड़ पर सड़क के किनारे पार्क की और शीशे खोल कर उस पर कवर डाल दिया था। विवेक बेहोशी की हालत में पिछली सीट पर पड़ा रहा और आनन्द अपने साथियों के साथ इंदिरा नगर स्थित सत्यव्रत राय के घर चला गया। दूसरे दिन दोपहर में चारों फिर मौके पर पहुंचे और कार से कवर हटाकर पीछे डिकी में रखा। विवेक तब तक बेहोश ही था। इसके बाद चारों विवेक को लेकर दिल्ली चले गए। यानी, लखनऊ पुलिस सीमाएं सील कर जिस लाल स्टीम की तलाश में जुटी थी वह मौके से दो सौ मीटर दूरी पर ही खड़ी थी। दूसरे दिन चेकिंग में ढील का फायदा उठाकर अपहरणकर्ता विवेक को लेकर निकल गए थे।मारा गया आनंद पाण्डेयआनंद पाण्डेय से लखनऊ पुलिस पूछताछ कर ही रही थी कि दिल्ली पुलिस भी पहुंच गई। दोनों पुलिस अफसरों की मुलाकात का फायदा उठा कर आनंद ने एक सिपाही की पिस्टल छीनी और भाग निकला। पुलिस ने पीछा किया और मुठभेड़ में आनंद मारा गया। पूछताछ में आनंद से पुलिस को जानकारी मिल गई थी कि श्रीप्रकाश के डर से अपने परिवार को दिल्ली ले आया था और एक फ्लैट खरीदकर रखे था। फ्लैट की तलाशी में पुलिस को विवेक को छोड़ने के बदले में वसूली गई काफी रकम भी बरामद हो गई थी। मुठभेड़ के बाद श्रीप्रकाश शुक्ला ने लखनऊ के कुछ सीनियर क्राइम रिपोर्टर को फोन करके बताया था कि आनंद ने उससे बगावत की थी, इसलिए पुलिस के हाथों मरवा दिया।